मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए जीवन बीमा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक सितंबर 1956 को लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना की गई थी.
1957 में 200 करोड़ रुपए से शुरू हुआ एलआईसी का कारोबार 1969-70 तक 1000 करोड़ रुपए हो गया. इसके बाद 10 सालों में ही एलआईसी का व्यापार बढ़कर लगभग दुगना हो गया.
फिर 80 के दशक में इसका पुर्नगठन किया गया, और नई पॉलिसियों की वजह से 1985-86 तक इसका बिजनेस बढ़कर 7000 करोड़ रुपए से ऊपर हो गया.
एक रिपोर्ट के अनुसार, एलआईसी को नए पॉलिसी प्रीमियम के रूप में वित्त वर्ष 2017-18 के लिए 1,34,552 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे. वहीं, वित्त वर्ष 2016-17 के लिए 1,24,451 करोड़ रुपए मिले थे.
नए व्यापार में हुई 8 प्रतिशत की ये वृद्धि बताने के लिए काफी है कि एलआईसी में कितनी बड़ी संख्या में नए ग्राहक निवेश कर रहे हैं.
बैंकों की माली हालत ठीक नहीं है, और नॉन परफॉर्मिंग असेट्स यानी एनपीए लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में सरकार लोगों की बीमा रकम को बैंकों की हालत सुधारने में इस्तेमाल कर रही है.
इससे एलआईसी और उसके ग्राहकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा आइए जानते हैं –
बीमा क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी के ऊपर संकट
बीमा के कुल कारोबार में 69 प्रतिशत की बड़ी हिस्सेदारी के साथ एलआईसी आज इंश्योरेंस सैक्टर में भारत की सबसे बड़ी कंपनी है.
2008-10 के दौरान, जब निजी बीमा कंपनियों ने अपने व्यापार और शाखाओं की संख्या को कम कर दिया था, खर्चों में कटौती कर दी, तब एलआईसी एकमात्र ऐसा निगम थी, जिसने कई एजेंट अपने साथ जोड़े.
आज निजी क्षेत्र में 9.5 लाख की तुलना में, इसके साथ सबसे ज्यादा 11.31 लाख एजेंट कार्यरत हैं. जिनकी पहुंच भारत के सुदूर ग्रामीण इलाकों तक है. जाहिर है इन्हीं के कारण आम लोगों का भरोसा आज एलआईसी में है, जो इसकी सबसे बड़ी ताकत है.
ज्यादा ग्राहक और भरोसे ने एलआईसी की पूंजी में बेतहाशा बढ़ोतरी की है. और इस बढ़ती पूंजी पर लगातार सरकार की नजर है.
ऐसे में ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आम लोगों के द्वारा जमा की गई रकम पर कहीं न कहीं खतरा मंडरा रहा है.
एनपीए के जाल में फंसा बैंकिंग सैक्टर
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि बैंकों की हालत ठीक नहीं है.
पिछले कुछ सालों में भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एनपीए और बैड लोन में वृद्धि हुई है, जो इस वित्त वर्ष की शुरुआत तक बढ़कर 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो चुके हैं.
इसी के साथ, एलआईसी जिस बैंक में हिस्सेदारी खरीदने जा रही है, उसकी स्थिति तो सबसे ज्यादा खराब है.
बहरहाल, केंद्र सरकार की 85 फीसदी हिस्सेदारी वाला आईडीबीआई सबसे ज्यादा एनपीए वाला बैंक भी है. ये कहा जा सकता है कि इस बैंक ने लोन तो दे दिया, लेकिन उसे वापस लेने की कोई जेहमत नहीं उठाई.
आईडीबीआई बैंक का सकल गैर-निष्पादित संपत्ति या एनपीए लगभग 55,000 करोड़ रुपए का है. इसके अलावा लगभग 60,000 करोड़ रुपए स्ट्रैस्ड संपत्ति के अंतर्गत है.
मार्च 2018 तक आईडीबीआई बैंक का एनपीए 55,588 करोड़ रुपए था. जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में लगभग 24.2 प्रतिशत बढ़ गया है. जो 21 प्राइवेट बैंकों के 93,209 करोड़ रुपए के कुल सकल एनपीए का 48.01 प्रतिशत है.
हालांकि केंद्र सरकार के 2,02,169 करोड़ रुपए के बैंक पुनर्पूंजीकरण कार्यक्रम के तहत आईडीबीआई बैंक को सात बार 21,023 करोड़ रुपए दिए गए हैं. बावजूद इसके बैंक मई, 2017 से भारतीय रिजर्व बैंक के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन फ्रेमवर्क के अधीन है.
इसके अलावा 31 मार्च, 2018 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में आईडीबीआई बैंक को 8,238 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा हुआ है. और उसकी कुल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां 28 प्रतिशत बढ़ गई हैं.
इससे आने वाले सालों में भी कुछ खास उम्मीद नहीं की जा सकती, सिवाय और नुकसान के.
ऐसे में, भारत सरकार एनपीए के बोझ से लगभग दम तोड़ चुके आईडीबीआई बैंक में एलआईसी द्वारा जान फूंकने की कोशिश कर रही है.
पीएसयू में जान फूंक रही एलआईसी
हालांकि, एलआईसी के लिए सार्वजनिक बैंकों और राज्य संचालित सामान्य बीमा कंपनियों में निवेश चिंता का विषय बनता जा रहा है. इससे पहले एलआईसी ने न्यू इंडिया एश्योरेंस और जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन में 8 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी खरीदी थी. इनमें इसे लगभग 10-20 प्रतिशत का नुकसान है.
सन 2017 में एलआईसी ने जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और न्यू इंडिया एश्योरेंस में लगभग 13000 करोड़ रुपए निवेश किए थे. वहीं, मार्च 2018 में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के विनिवेश का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा खरीदने के लिए 2900 करोड़ रुपए खर्च कर दिए.
इसी के साथ, एलआईसी ने केंद्र के 39 सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगभग 89,200 करोड़ रुपए निवेश कर रखा है. जिसमें से ज्यादातर नुकसान में चल रहे हैं.
41 हजार करोड़ रुपए की कुल पूंजी के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंकों में एलआईसी की हिस्सेदारी है. ये रकम भारत के तीसरे सबसे बड़े बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा के कुल बाजार पूंजीकरण से भी ज्यादा है.
इसी के साथ एलआईसी को 18 बैंकों में निवेश पर नुकसान है. बाकी के 3 बैंकों की स्थिति दिसंबर 2015 से ठीक है. इसमें इंडियन बैंक, विजया बैंक और भारतीय स्टेट बैंक में निवेश पर ही एलआईसी को फायदा हो रहा है.
इन बैंकों में 19 बैंकों को इस साल घाटा हुआ है, वहीं 11 बैंकों को तुरंत सुधारात्मक उपचार की जरूरत है.
बहरहाल, एलआईसी की आईडीबीआई बैंक में 11 फीसदी हिस्सेदारी है. जिसे बढ़ाकर 51 फीसदी किया जा सकता है. इसकी मंजूरी पहले ही बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) IRDA दे चुका है.
इसके लिए एलआईसी को लगभग 13 हजार करोड़ रुपए में इसकी 40 फीसदी हिस्सेदारी और खरीदनी पड़ेगी.
नफा कम, नुकसान ज्यादा
एक निवेशक के तौर पर एलआईसी से लगभग 25 करोड़ ग्राहक जुड़े हुए है. भारत की कुल आबादी के लगभग 20 प्रतिशत आबादी.
सालों से भारतीय परिवार अपनी आय का कुछ हिस्सा बचाकर भविष्य के लिए सुरक्षित रखने और मृत्यु की स्थिति में परिवार को आर्थिक मदद देने के मकसद से एलआईसी यानी जीवन बीमा निगम में निवेश कर रहे हैं.
आम तौर पर ये पैसा कुछ 5 साल से लेकर 25 साल के लिए एलआईसी के पास या तो एकमुश्त या किश्तों में जमा किया जाता है.
रिपोर्ट्स के अनुसार, अब यही पैसा सरकारी बैंकों को फंसे हुए कर्ज या बैड डेब्ट्स या एनपीए से राहत दिलाने वाला है.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि सरकार का ये कदम कितना जायज है?
सवाल इसलिए भी क्योंकि, अभी तक इंश्योरेंस सैक्टर ही ऐसा है, जहां लोगों ने सीधे तौर पर रकम को एलआईसी के भरोसे पर छोड़ रखा है.
और सरकार के इस फैसले के बाद भी अगर बैंक लाभ की स्थिति में नहीं आए, तो लोगों के निवेश्ा का क्या होगा…
क्या तब एलआईसी अपने निवेशकों को मैच्योरिटी पर उनकी रकम लौटा पाएगी?
Web Title: NPA And LIC Bail Out for PSU Banks, Hindi Article
Feature Image Credit: allaboutoutdoor