अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को मिलने वाली वित्तीय मदद को कम कर दिया है. ऐसे में उसके ऊपर संकट के बादल मंडराने लगे हैं.
उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा है और विदेशी मुद्रा के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए की कीमत लगातार गिर रही है.
और अगर हालात ऐसे ही रहे तो संभवत: अगले 10 हफ्तों में पाकिस्तान कंगाल हो जाएगा. और उसके पास न तो विदेशी ऋण चुकता करने के पैसे होंगे और न ही वो किसी भी अन्य देश से माल ख़रीद पाएगा.
लेकिन चीन के रहते क्या ये संभव है?
ये एक बड़ा सवाल है, क्योंकि अमेरिका के मदद से हाथ खींचने के बाद पाकिस्तान कैसे वित्तीय कंगाली से बच सकता है?
वहीं, ऐसे में चीन पाकिस्तान को किस नजरिये से देखता है, ये भी एक यक्ष प्रश्न है.
बहरहाल, पाकिस्तान चीन की गोद में जाकर क्यों बैठा हुआ है और चीन उस पर इतना मेहरबान क्यों है... इस बारे में अगले लेख में बात की जाएगी.
फिलहाल, इस लेख के माध्यम से पाकिस्तान की कंगाली पर थोड़ी नजर डाल लेते हैं –
विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, मतलब क्या?
विदेशी माल खरीदने के लिए सरकार को विदेशी मुद्रा यानी डॉलर में ही भुगतान करना होता है. ऐसे में पाकिस्तान की सरकार के पास अब 10.3 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार शेष बचा है.
इसका मतलब है कि पाकिस्तान सरकार 10.3 अरब डॉलर तक के ही माल-हथियारों का आयात विदेशों से कर सकती है. इसके अलावा दूसरे देशों से लिया गया कर्जा भी इसी विदेशी मुद्रा भंडार से चुकाना है.
ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि पाकिस्तान की ये विदेशी मुद्रा अगले 70 दिन तक ही चल पाएगी.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बना मुसीबत
वहीं, इस मुद्रा भंडार का ज्यादातर हिस्सा चीन को भुगतान करने में खर्च हो रहा है.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की फंडिंग के लिए पाकिस्तान पूरी तरह से चीन के ऊपर निर्भर है.
असल में चीन ने पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के अंतर्गत कई ढांचागत प्रोजैक्ट में लगभग 62 अरब डॉलर लगाए हैं.
इसके साथ ही पाकिस्तान को चीनी मशीनरी और इंजीनियरिंग की खरीद करनी पड़ रही है.
ऐसे में चीन के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के हिस्से के रूप में चीन से पूंजीगत वस्तुओं का आयात सबसे बड़ी उलझन है. जिसके लिए काफी बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा का भुगतान किया जा रहा है.
इस परियोजना के अंतर्गत हाल ही में पाकिस्तान ने उच्च ब्याज दर पर चीन से एक अरब डॉलर के दो ऋण लिए हैं, ताकि विदेशी भुगतान में आसानी रहे और मुद्रा भंडार संभालने के स्तर पर बना रहे.
लेकिन आज स्थिति इससे भी बदतर हो चुकी है और पाकिस्तान पूरी तरह से चीन के ऋण जाल में फंस चुका है.
इससे पहले, चीन की कठोर वित्त पोषण शर्तों के कारण पाकिस्तान सीपीईसी के तहत बनने वाले 14 अरब अमेरिकी डॉलर के एक मेगा डैम प्रोजैक्ट से पीछे हट गया. कारण केवल एक था कि पाकिस्तान के ऊपर इस परियोजना के बदले चीन से लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए कड़ी शर्तें लगाई गईं.
...और ज्यादा आयात जी का जंजाल
इसके अलावा पाकिस्तानी रुपए का मूल्य भी अब तक के सबसे निचले स्तर पर है. यूएस डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए की कीमत गिरकर 120 रुपए हो गई है.
हालांकि इसका फायदा भी उठाया जा सकता है, लेकिन तब जब पाकिस्तान का निर्यात आयात से ज्यादा हो.
जबकि यहां स्थिति बिल्कुल ही विपरीत है.
पाकिस्तान विदेशी कर्ज के तले दबा पड़ा है और उसका आयात निर्यात से कहीं ज्यादा है.
2015 और 2016 के बीच चीन से आयातित माल 30 प्रतिशत बढ़ गया है.
नवाज के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से पाकिस्तान का बाह्य ऋण लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ कर 92 बिलियन यूएस डॉलर हो गया है, जबकि पाकिस्तान का निर्यात कुल जीडीपी का मात्र 10 प्रतिशत ही है. ऐसे में पाकिस्तान को इस कंगाली से बचने के लिए बड़ी मात्रा में कर्जा चाहिए.
इसके अलावा अमेरिका से मिलने वाली वित्तीय मदद भी लगभग खत्म कर दी गई है, और जाे मदद मिल भी रही है वो नाम मात्र ही है.
आतंकियों को खत्म करने के नाम पर मिलने वाली 255 मिलियन डॉलर की अमेरिकी वित्तीय मदद को ट्रंप ने पाकिस्तान पर झूठ और धोखे का आरोप लगाकर रोक दिया था.
इससे पहले अमेरिका पाकिस्तान को पिछले 15 सालों में 33 अरब डॉलर दे चुका है.
आ सकती है दीवालिया होने की नौबत
इसी के साथ चीनी कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. पाकिस्तान के ऊपर लगभग 80 अरब डॉलर का कर्ज है. ऐसे में उसके ऊपर दबाव है कि वह इन रुपयों को चुकाए वरना वह भी दीवालिया घोषित हो सकता है.
इससे पहले ग्रीस जिसे यूनान भी कहते हैं, वह भी भारी कर्ज के तले दबा और लगभग दीवालिया होने की कगार पर पहुंच गया.
वहीं, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि, 2018 के चालू खाता घाटे और ऋण भुगतान को कवर करने के लिए पाकिस्तान को लगभग 17 अरब यूएस डॉलर की जरूरत है.
ऐसे में पाकिस्तान का इस ऋण जाल से फिलहाल निकलना तो मुमकिन नहीं दिख रहा, बशर्ते चीन या आईएमएफ इसे बड़ा कर्ज नहीं दे देता.
पाकिस्तानी सरकार गिरते विदेशी मुद्रा भंडार पर रोक लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जा सकती है. पाकिस्तान दिसंबर 1988 से पिछले 28 सालों में आईएमएफ से 12 बार कर्ज ले चुका है. इससे पहले भी आईएमएफ 6.7 अरब डॉलर पाकिस्तान को दे चुका है.
इसके अलावा डॉन की एक खबर के मुताबिक पाकिस्तान अप्रैल, 2019 से पहले चीन से 500 मिलियन यूएस डॉलर अलग से उधार लेने की योजना बना रहा है.
पाकिस्तान के ट्रिब्यून का इस बारे में कहना है कि "ये स्थिति पाकिस्तान के लिए 'सर्जनात्मक विनाश' (क्रिएटिव डेस्ट्रक्शन') जैसी है. कंपनियां इनोवेशन, वैल्यू एडीशन और वैश्विक बाजार तक पहुंच की कमी से मर रही हैं. और बेरोजबारी पहले की तरह से उच्च स्तर पर है. जबकि सरकारी आंकड़े भरोसे योग्य नहीं हैं."
चीन के जाल में यूं फंसा पाकिस्तान
चीन की नीति कहीं न कहीं पाकिस्तान को अपने हथियारों के बड़े बाजार के रूप में देखना भी है.
चीन पाकिस्तान को सीपैक और आर्थिक व संरचनात्मक विकास के सपने दिखाकर उसको अपने ऋण के जाल में फंसाता जा रहा है.
हालांकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा दोनों देशों में एक मजबूत कड़ी बनकर उभरा है. इसके द्वारा चीन का पश्चिमी शहर काश्गर अरब सागर किनारे बसे पाकिस्तान ग्वादर पोर्ट तक जुड़ जाएगा. इसकी दूरी लगभग 3000 किलोमीटर है.
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान में तरक्की ला सकता है, लेकिन इसकी बहुत ज्यादा लागत चिंता का विषय है.
हालांकि चीन लगातार इन खरीददारी के लिए पाकिस्तान को ऋण दे रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक, इससे पाकिस्तान को 50 प्रतिशत का चालू खाता घाटा है, जो लगभग 14 बिलियन यूएस डॉलर से भी ज्यादा है.
चीनी राष्ट्रपति की वन बेल्ट-वन रोड परियोजना के तहत बनने वाला सीपैक कहीं न कहीं पाकिस्तान को अब खलता जा रहा है. चीन की भारी मशीनरी, इंजीनियरिंग और उपकरणों को खरीदने और उन्हें पाकिस्तान लाने में ही पाकिस्तान की कमर टूट चुकी है.
Web Title: Pakistan: Financial Crisis And Debt Trap, Hindi Article
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