रबीन्द्रनाथ टैगोर का नाम ध्यान आते ही जहन में एक बूढ़े से व्यक्ति की तस्वीर उभरती है. इसके साथ ही हमें ख्याल आता है कि रबीन्द्रनाथ टैगोर पहले ऐसे गैर-यूरोपीय व्यक्ति हुए, जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इतिहास में रबीन्द्रनाथ को मुख्यतः एक कवि के रूप में जाना जाता है. वे बंगाल में पुनर्जागरण के प्रमुख व्यक्ति थे. एक कवि होने के साथ-साथ वे कहानीकार, चित्रकार और समाज सुधारक भी थे. अंग्रेजों की क्रूरता का विरोधी होने के साथ-साथ वे राष्ट्रवाद के आलोचक भी थे.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपने चेहरे पर गहरी शान्ति धारण किए हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर का व्यक्तिगत जीवन उथल-पुथल से भरा रहा. खासकर उनके प्रेम-प्रसंगों के सन्दर्भ में. उन्होंने अपने पूरे जीवन में कई स्त्रियों से प्रेम किया. यही नहीं एक ही समय पर वे कई स्त्रियों के प्रेम में रहे. तो आईए उनके जीवन के इस पहलू के बारे में जानते हैं...
आठ वर्ष की उम्र में हुआ पहला प्रेम
रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 के दिन कलकत्ता में हुआ था. इनके पिता देबेन्द्रनाथ टैगोर ब्रम्हो समाज से जुड़े हुए थे और पूरे बंगाल में एक जाने-माने विद्वान थे. उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था. इस कारण रबीन्द्रनाथ को बचपन से ही एक बौद्धिक माहौल में पलने-बढ़ने का मौका मिला. यही कारण था कि रबीन्द्रनाथ मात्र आठ वर्ष की उम्र से ही कवितायेँ रचने लगे थे.
आठ वर्ष की उम्र में ही उन्हें अपनी भाभी के प्रति आकर्षण होने लगा था. उनकी भाभी का नाम कादम्बरी देवी था. वह उनसे उम्र में दो साल बड़ी थीं. वे पहली बार कादंबरी से एक पारिवारिक कार्यक्रम में मिले थे. पहली मुलाक़ात में ही दोनों के बीच गूढ़ प्रेम की नींव पड़ चुकी थी. इतनी कम उम्र में दोनों के बीच का यह प्रेम से परिपूर्ण रिश्ता वयस्कों जितना ही गाढ़ा हो चुका था.
कादंबरी जब भी गुड़ियों का खेल खेलती थीं, तो रबीन्द्र को जरूर शामिल करती थीं. वहीँ रबीन्द्र जब भी कुछ लिखते थे, तो सबसे पहले उसे कादंबरी को ही पढ़ाते थे. रबीन्द्र अपना लिखा हुआ कादंबरी को सुनाते और कादंबरी अपने हाथों से उनके ऊपर पंखा झालती थीं. उनका प्रेम वक्त के साथ लगातार गहरा होता जा रहा था. इस बात से उनके पिता खासे परेशान थे. इस प्रेम से उनके परिवार की इज्जत दांव पर थी.
...और फिर अन्नपूर्णा से हुई मुलाकात
मात्र 16 वर्ष की उम्र में रबीन्द्र लघु कथाएँ लिखने लगे थे. कादंबरी और उनका प्रेम बढ़ता ही जा रहा था. इस बात को मद्देनजर रखते हुए उनके पिता ने उन्हें बम्बई भेज दिया. यहाँ रबीन्द्र अपने बड़े भाई के मित्र डॉक्टर आत्माराम पांडुरंग के घर पर रुके. इस बीच उन्हें कादंबरी की याद रह-रहकर आती रही. यहां उनकी देखभाल का जिम्मा डॉक्टर पांडुरंग की बेटी अन्नपूर्णा को मिला हुआ था.
दोनों हमउम्र थे, तो नजदीकियां बढ़ती गईं. जब अन्नपूर्णा को पता चला कि रबीन्द्र एक कवि हैं, तो वे उनके प्रति आकर्षित होने लगीं. अन्नपूर्णा उनका खूब ख्याल रखती थीं. टैगोर अगर किताबों में खोये रहते, तो अन्नपूर्णा उनसे अठखेलियाँ करतीं. वे उनसे अपने ऊपर कवितायेँ लिखने को कहतीं. बदले में रबीन्द्र भी उन्हें अपनी कविताओं में कमल के फूल की संज्ञा देते और खुद को सूर्य बताते.
वे कहते कि जैसे कमल की पंखुड़ियाँ सूर्य की किरणों का साथ पाकर चमक उठती हैं, वैसे ही तुम मेरे साथ चहकती हो.एक समय अन्नपूर्णा उनके प्यार में पूरी तरह से गिर चुकी थीं. उन्हें रबीन्द्र के अलावा और कोई दिखता ही नहीं था.
यहाँ तक कि उन्होंने रबीन्द्र से खुद को कोई दूसरा नाम देने तक का आग्रह कर डाला. इस पर रबीन्द्र ने उन्हें ‘नलिनी’ नाम दिया.
विवाह और कादंबरी की मृत्यु
रबीन्द्र 1878 में इंग्लैण्ड चले गए. अन्नपूर्णा की शादी किसी और के साथ कर दी गई और वे रबीन्द्र के वियोग में मृत्यु को प्राप्त हो गईं.
इंग्लैण्ड पहुँचने पर उन्हें कादंबरी की याद आती रही. वे कादंबरी के लिए कवितायेँ लिखते रहे. इंग्लैण्ड में वे डॉक्टर स्कॉट के घर पर रुके. डॉक्टर स्कॉट की दो बेटियां थीं. वे रबीन्द्र को बहुत पसंद करती थीं. रबीन्द्र को भी लगता था कि ये दोनों लड़कियां उनके पूर्व जन्म की प्रेमिकाएं हैं.
यहाँ वे नलिनी की याद में भी कवितायेँ लिखते रहे और इन दोनों लड़कियों के बारे में भी. वे अपने पिता को लिखे गए पत्रों में अक्सर इन दोनों लड़कियों का जिक्र करते थे. आगे पिता ने उन्हें वापस भारत बुला लिया. रबीन्द्र को लगा कि अब उन्हें कादंबरी के साथ वक्त बिताने का मौक़ा मिलेगा. कादंबरी भी उनकी वापसी को लेकर खासा उत्साहित और प्रसन्न थीं. लेकिन लौटते ही उनकी शादी करवा दी गई.
शादी के वक्त उनकी उम्र मात्र 22 वर्ष थी. वहीँ उनकी पत्नी मृणालिनी मात्र 10 वर्ष की थीं. यह रबीन्द्र की शादी ही थी, जिसने कादंबरी को बुरी तरह से तोड़ दिया. उन्होंने अप्रैल 1884 में जहर पीकर आत्महत्या कर ली. रबीन्द्र तो जैसे दुःख के अथाह सागर में डूब गए. वहीँ उनकी पत्नी भी उन्हें दुखी देखकर दुखी रहने लगीं.
पत्नी की मृत्यु और प्रेम-त्रिकोण
वक्त आगे बढ़ा तो उन्हें अपनी पत्नी से लगाव होने लगा. मृणालिनी जब मात्र तेरह वर्ष की थीं, तब उन्होंने पहली संतान को जन्म दिया. धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा और रबीन्द्र वापस से कवितायेँ रचने लगे. हालाँकि, अब भी कभी-कभी उन्हें कादंबरी की याद आती रहती थी. आगे मात्र 29 वर्ष की उम्र में मृणालिनी की भी मृत्यु हो गई. टैगोर को इस दुःख से उबरने में काफी समय लग गया.
वे इस दुःख से उबरे ही थे कि उनकी पहली बेटी बेला भी मात्र 29 की ही उम्र में मृत्यु को प्राप्त हो गई. आगे इन गाढे दुखों से टैगोर को उबारने के लिए उनकी जिंदगी में रानू अधिकारी का आगमन हुआ. रानू भी उम्र में उनसे काफी छोटी थीं.
इसके बाद भी टैगोर को उनके प्रति आकर्षण हो गया था. इसी समय टैगोर एल्महर्स्ट नाम की युवती के संपर्क में भी थे. टैगोर ने आगे रक्त कारबी नामक नाटक लिखा. इस नाटक में इन तीनों के बीच चले प्रेम-त्रिकोण का वर्णन है. रबीन्द्र ने रानू के लिए करीब 200 कविताएँ रचीं.
अंत तक कादंबरी याद आती रहीं
इन सबके बीच टैगोर कभी भी कादंबरी को भुला नहीं पाए. जैसे-जैसे उनकी उम्र बीतती गई, वैसे-वैसे वे अनेक स्त्रियों के संपर्क में आते रहे. उन्होंने उन स्त्रियों को गले तक डूबकर प्यार किया. उन्होंने स्त्रियों को चाहा और वे उनके द्वारा चाहे गए. इन रिश्तों को प्रेमी-प्रेमिका जैसा रिश्ता बताना अनुपयुक्त होगा. ये रिश्ते आत्मा के स्तर पर स्थापित थे और इनमें एक सहज लगाव और आकर्षण था.
इन स्त्रियों में उनकी भतीजी इंदिरा देवी चौधरानी से लेकर अन्य दूसरी कम उम्र की युवतियां भी शामिल रहीं. उन्होंने अपने बूढ़े हो जाने पर भी प्रेम करना नहीं छोड़ा. उन्होंने जो कुछ भी रचा, उसमें इन स्त्रियों का एक बहुत बड़ा योगदान रहा.
रबीन्द्रनाथ टैगोर ताउम्र प्रेम करते रहे. उन्होंने एक समय पर एक से अधिक स्त्रियों से प्रेम किया, लेकिन कादंबरी उन्हें रह-रहकर याद आती रहीं. कादंबरी की मृत्यु के बाद वे जब भी किसी नई स्त्री के प्रेम में पड़े, तो उन्होंने कविता रचकर कादंबरी से माफ़ी जरूर मांगी. आगे 7 अगस्त 1941 के दिन वे मृत्यु को प्राप्त हो गए.
Web Title: Rabindranath Tagore: Who Continued To Love Women Till His Last Breath, Hindi Article
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