राहुल गांधी भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम हैं, जिनको वर्तमान में लोग अपने चुटकुलों और मीम तक ही सीमित रखने की कोशिश करते हैं. बावजूद इसके इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि वह एक बड़े नेता हैं.
चूंकि, वह 2003-04 से राजनीति में सक्रिय हैं, इसलिए उनके राजनीतिक करियर पर बात करना आसान हो जाता है.
किन्तु उनका बचपन कैसा रहा. उनकी पढ़ाई कहां से हुई, और राजनीति में वह देर से सक्रिय क्यों हुए...ऐसे कई सारे सवाल हैं, जिनके बारे में कम लोग ही जानते हैं!
तो आईए जानते हैं-
दादी 'इंदिरा गांधी' की हत्या के बाद बदली जिंदगी!
19 जून 1970 को नई दिल्ली में राहुल ने अपनी आंखें खोलीं. पिता राजीव गाँधी और माता सोनिया गाँधी देश के बड़े राजनीतिक घराने से आते थे. ऐसे में लालन-पालन शानदार तरीके से होना लाजमी था.
वक्त के साथ बड़े हुए तो पढ़ाई के लिए पहले 'दिल्ली सेंट कोलाम्बस स्कूल' और बाद में देहरादून के 'दून विद्यालय' पहुंचे.
बताते चले कि यह वही विद्यालय था, जहां से उनके पिता यानी राजीव गांधी ने अपनी पढ़ाई की थी.
सभी सुख-सुविधाओं से लैस राहुल बड़े हो रहे थे. इसी बीच 31 अक्टूबर 1984 को उनकी दादी इंदिरा गांधी की हत्या हो जाती है.
कहते हैं बस यहीं से उनकी जिंदगी बदल सी गई!
पूरे परिवार समेत उनकी सुरक्षा भी खतरे में थी. ऐसे में उनके परिवार ने उनके लिए एक बड़ा फैसला लिया. इसके तहत तय किया गया कि जब तक हालात ठीक नहीं हो जाते उन्हें घर पर रहकर ही पढ़ाई करनी होगी.
पहले स्कूल, फिर परिवार और देश छोड़ना पड़ा
इस तरह घर ही राहुल की पाठशाला बन गया. हालांकि, आगे हालात थोड़े से सुधरे तो 1989 के आसपास उन्होंने दिल्ली के 'सेंट स्टीफन कॉलेज' की ओर रुख किया.
बहरहाल, नियति को कुछ और ही मंजूर था. अचानक फिर से उन पर खतरे की सुगबुगाहट हुई तो उन्हें देश से बाहर यूएस भेज दिया गया. वहां उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और पढ़ना शुरु कर दिया.
वहां उनका करीब एक साल ही गुजरा होगा कि 1991 में उनके पिता राजीव गांधी की हत्या हो जाती है.
ऐसे में एक बार फिर से वह पढ़ाई से दूर हो जाते हैं. आगे कुछ वक्त बाद वह पढ़ाई के लिए फ्लोरिडा के रोलिन्स कॉलेज पहुंचे. वहां से 1994 में उन्होंने आर्ट्स से ग्रेजुएशन की डिग्री ली. बताया जाता है कि इस दौरान सुरक्षा कारणों से उनकी पहचान को गुप्त रखा गया था. वहां वह राउल विंसी के नाम से जाने जाते थे.
इसी क्रम में राहुल 1995 में कैंम्ब्रिज यूनिवर्सिटी गए, जहां से उन्होंने डेवलपमेंट स्टडीज में एमफ़िल की परीक्षा पास की.
कम लोग ही जानते होंगे, लेकिन कहा जाता है कि अपनी पढ़ाई के दौरान राहुल ने लंदन में मॉनिटर ग्रुप में मैनेजमेंट कंसल्टेंट के रुप में काम किया. यही नहीं 2002 में उनका नाम मुंबई की टेक्नॉलजी आउटसोर्सिंग फर्म के निदेशकों में लिया गया.
2004 में इस तरह से हुई 'राजनीतिक एंट्री'
अभी तक के सफर में जिस तरह से राहुल गांधी को राजनीति से दूर रखा गया. उससे लोगों के मन में सवाल था कि वह राजनीति में एंट्री कब लेंगे. इसी बीच उन्होंने अमेठी का दौरा किया.
अमेठी उस समय उनकी मां सोनिया गांधी का निर्वाचन क्षेत्र हुआ करता था, और उससे पहले उनके पिता का. इस दौर के बाद कयास लगाए जाने लगे कि राहुल शायद जल्द ही राजनीति में दिखेंगे.
आगे इन कयासों पर उस वक्त मुंहर लग गई, जब 2004 में उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा हुई. दिलचस्प बात तो यह यह थी कि उनका राजनीतिक करियर भी वहीं से शुरु हुआ, जहां से उनके पिता सांसद हुआ करते थे. जी, हां! वह क्षेत्र अमेठी था.
राजनीति के इसी सफर में राहुल को 2007 में कांग्रेस ने पहले अपना महासचिव बनाया, फिर यूथ कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन की कमान थमा दी.
2009 में वह एक बार फिर से अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते भी. इस चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी पार्टी के लिए जमकर रैलियां की और वोट मांगे. यह चुनाव कांग्रेस जीतने मे सफल रही, तो क्रेडिट उनको भी मिला.
नतीजा यह रहा कि अगले चुनाव यानी 2014 लोकसभा चुनाव से पहले 2013 में कांग्रेस ने उन्हें अपना उपाध्यक्ष बना लिया.
वर्तमान में आधार की तलाश में, मगर...
राहुल का राजनीतिक कद लगातार बढ़ता गया. इसी क्रम में वह 2014 में तीसरी बार अमेठी से लोकसभा चुनाव जीतकर सदन तक पहुंचे. मगर उनकी पार्टी चारों खाने चित्त हो गई! उसे अपनी सत्ता तक गवानी पड़ी.
इस हार के बाद राहुल सवालों के कटघरे में खड़े किए जाने लगे. उनके राजनीतिक करियर पर भी सवालिया निशान उठने लगे!बावजूद इसके उन्होंने 2017 में आधिकारिक रूप से कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभाली.
ऐेसे में उनके सामने चुनौती थी कि वह कैसे अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते हैं. वैसे कहा जाता है कि अपनी राजनीति के पिछले आठ सालों में वहां तक पहुंच चुके हैं, जहां से वह अपनी कांग्रेस को आगे ले जाने में सक्षम हैं.
किन्तु, बावजूद इसका दूसरा पहलू यह भी है कि लोग उन्हें निजी तौर राजनीति में फिट नहीं मानते. उनकी माने तो राहुल, जहां-जहां गए, कांग्रेस को नुकसान झेलना पड़ा. फिर चाहे वह उत्तर प्रदेश का चुनाव रहा हो, या फिर उत्तराखंड चुनाव.
इन मतों के बावजूद उनका राजनीतिक सफर बढ़ रहा हैं और उन्हें पार्टी का साथ भी मिल रहा है. संभव है कि अगले आम चुनाव यानी 2019 सभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित किया जाए.
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Web Title: Rahul Gandhi from Childhood to Congress President, Hindi Article
Feature Image Credit: sirfnews.com