भारतीय राजनीति!
अगर बात भारत की राजनीति की हो उसमें हमारे देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह का नाम ना आए, ऐसा होने की संभावना न के बराबर है. हमेशा हिंदी में भाषण देने के लिए भी मशहूर राजनाथ अपने पढ़ाई के शुरूआती समय से राजनीति में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दिया था.
कॉलेज में प्रोफेसर रह चुके राजनाथ की राजनीति में हाथ आजमाने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. साथ ही, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की दो बार कुर्सी संभालने वाले तीसरे व्यक्ति हैं. आपको बता दें, इससे पहले सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने इस कुर्सी को दो बार संभाला था.
जानते हैं, वर्तमान भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के जीवन की उस दिलचस्प कहानी को जिसने उन्हें बीजेपी का एक अहम चेहरा बना दिया-
बनारस में जन्म और गोरखपुर से शिक्षा!
राजनाथ सिंह 10 जुलाई, 1951 को बनारस के पास चंदेली जिले के भभौरा गांव में पैदा हुए थे. उनका परिवार बेहद साधारण था, जो खेती-बाड़ी किया करता था. उनकी माँ का नाम गुजराती देवी था और पिता का नाम रामबदन सिंह.
राजनाथ बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज़ रहे हैं. महज़ तेरह साल की उम्र से वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरआरएस) से भी जुड़ गए . उन्होंने भौतिकी विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की है.
उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से इस डिग्री को फर्स्ट डिवीज़न से पास किया था. सिंह अपने कॉलेज के दिनों से ही राजनीति में इंटरेस्ट दिखाने लगे थे. वो शुरू से हिन्दू विंग की राजनीति के समर्थक रहे.
लिहाज़ा, वो स्टूडेंट यूनियन में काफी सक्रिय रहे. गोरखपुर में अपनी पढ़ाई के दौरान वह 1961 से 1971 तक एबीवीपी गोरखपुर डिवीज़न के आर्गेनाईजेशनअल सेक्रेटरी रहे. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उसी साल यानी 1971 में केबी कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर भी नियुक्त हुए.
आरआरएस से उनका बड़ा ही गहरा रिश्ता रहा. सिंह 1972 में मिर्जापुर शहर से RSS के कार्यवाहक के तौर पर भी नियुक्त हुए.
इमरजेंसी के दौरान जेल में बिताई थी रातें!
राजनाथ हमेशा से बेहद प्रभावशाली व्यक्तित्व के रहे हैं. कहतें हैं कॉलेज के दिनों ने में भी वह माथे पर तिलक और धोती कुर्ता पहनते थे. अपने इस लुक के लिए वह काफी लोकप्रिय भी थे.
छात्र राजनीति से से निकलने के दो साल बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया. वह अब भारतीय जनसंघ (इंडियन पीपुल्स एसोसिएशन) के सदस्य बन गए थे.
इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आधी रात को इमरजेंसी घोषित कर दी थी. इसका विरोध करने की वजह से राजनाथ भी अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिए गए थे. उन्हें 1977 तक हिरासत में रखा गया. जेल से निकलने के बाद उनकी ज़िंदगी बदलने वाली थी.
सिंह उसी साल रिहा हुए जिसके बाद उनके राजनीतिक जीवन को और सफलता मिली. दरअसल, अपनी रिहाई के बाद वह उत्तर प्रदेश विधायिका के निचले सदन में सार्वजनिक कार्यालय के लिए चुने गए.
बीजेपी के पार्टी सचिव बनने से शुरू हुआ सफ़र!
जनता पार्टी के विघटन के बाद जब साल 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में हुई. तब राजनाथ को पार्टी की स्थापना के तीन साल बाद ही उत्तरप्रदेश में पार्टी के सचिव के तौर पर नियुक्त किया गया.
उनके काम से प्रभावित होकर उन्हें जल्द ही, 1984 में भाजपा के युवा विंग के अध्यक्ष के तौर पर चुन लिया गया और इसके बाद हर साल या दो साल बाद उनका कद बढ़ता ही चला गया.
साल 1986 में भारतीय जनता युवा मोर्चा राष्ट्रीय महासचिव बने और दो साल के अंदर यानी साल 1988 में उन्हें संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया.
सिंह की एंट्री अब यूपी के विधानसभा में हुई. दरअसल, साल 1991 में विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद वह शिक्षा मंत्री बने. अपने शिक्षा मंत्री के कार्यकाल के दौरान, पार्टी ने इतिहास और मैथ्स में वैदिक गणित शामिल करने की बात कही और साथ ही किताबों को धार्मिक दृष्टिकोण से दोबारा लिखने का फैसला किया था.
इसके अलावा, साल 1992 में उत्तरप्रदेश में स्कूल और कॉलेज की परीक्षाओं के दौरान नकल रोकने के लिए एक कानून बनाया गया था. जिसका नाम था एंटी-कोपयिंग एक्ट.
जिसके परिणामस्वरूप, कॉलेज में छात्रों की संख्या घट गयी. साथ ही, नकल और धोखाधड़ी कराने वालों की सार्वजनिक गिरफ्तारी भी हुई. लेकिन बाद में इसके विरोध होने पर इसे रद्द कर दिया गया.
...और फिर बने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री!
साल 1997 राजनाथ सिंह के लिए काफी अच्छा साबित हुआ. इसी साल उन्हें भाजपा की उत्तर प्रदेश शाखा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, और 1999 में गठबंधन की सरकार में भूतल परिवहन मंत्री के रूप में काम किया.
सिंह का कद पार्टी में धीरे-धीरे बढ़ता गया और साल 2000 आते-आते वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि, उनका कार्यकाल दो साल से भी कम ही रहा था.
इसके बाद एक बार फिर सिंह राष्ट्रीय मंच पर वापस आ गए. लिहाज़ा, साल 2003 में उन्हें कृषि मंत्री का पद भी संभाला.
दो बार पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी से गृहमंत्री की कुर्सी तक!
सिंह पहली बार दिसंबर 2005 में बीजेपी के अध्यक्ष चुने गए थे. लेकिन, साल 2009 में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन न कर पाने की वजह से पद को त्याग दिया.
इसके बाद वह एक बार फिर से 2013 के आरंभ में बीजेपी के अध्यक्ष चुने गए. इससे पहले इस पद पर नितिन गडकरी थे.
अपने कार्यकाल के दौरान वह हिंदुत्व और धार्मिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे. जैसे- बाबरी मस्जिद विवाद (जिसमें साल 1992 में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था) वहां उन्होंने हिन्दू मंदिर बनने की वकालत की.
उनपर साल 2013 में एक बार फिर विवादों से घिर गए जब उन्होंने मीडिया को एक बयान दिया. बयान में उन्होंने अंग्रेजी भाषा को बुरी बताया और कहा कि भारत में अंग्रेजी का उपयोग देश के सांस्कृतिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है. इस बयान की वजह से वह चर्चा में आ गए थे.
इसके बाद साल 2014 के चुनावों में बीजेपी की विकराल जीत का श्रेय इन्हें भी दिया जाता है. यही कारण है कि राजनाथ सिंह गृह मामलों के मंत्री के रूप में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में शामिल हो गए.
साल 2014 में सिंह के होम मिनिस्ट्री संभालने के बाद से तो हम इनके हर छोटे-बड़े फैसले से अवगत हैं. इससे परिचय कराने की कोई जरुरत नहीं.
राजनाथ सिंह ने छात्र जीवन से राजनीति में खुद को स्थापित करना शुरू कर दिया था. लिहाज़ा, उनकी तेज़ बुद्धि और प्रभावशाली व्यक्तित्व की वजह से ही आज वो भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के गृहमंत्री जैसी कुर्सी पर विराजमान हैं.
Web Title: Rajnath singh: From RSS Karyavahak To Country's Homeminister, Hindi article
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