भारतीय राजनैतिक परिदृश्य में राम विलास पासवान को एक ऐसे नेता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने छह अलग- अलग प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार संभाला. वर्तमान में वे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्तासीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा हैं और उपभोक्ता मंत्रालय को संभाल रहे हैं.
2005 में जब बिहार में पुनर्चुनाव हुआ था, तब उनकी लोक जनशक्ति पार्टी मात्र 10 सीटों पर सिमट गई थी. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनावों में इनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. तब राजनीतिक प्रेक्षकों ने कहा कि राम विलास पासवान का राजनीतिक करियर समाप्त होने को है.
किन्तु, जल्द ही पासवान ने उन्हें गलत साबित किया और 2014 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की और केंद्र की सरकार में मंत्री बने.
इस लेख में हम राम विलास पासवान की अब तक की यात्रा को आपके सामने पेश करेंगे-
पास की सिविल सेवा, लेकिन...
राम विलास पासवान का जन्म बिहार के खगरिया जिले में 5 जुलाई, 1946 को हुआ . उनका प्रारंभिक जीवन यहीं बीता. कोसी कॉलेज से उन्होंने परास्नातक की डिग्री हासिल की और सिविल सेवा उत्तीर्ण कर ली. आगे उन्हें पुलिस सेवा की ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया.
यह वही समय था, जब पासवान के मन में अपने समुदाय के लिए कुछ करने का विचार आया. वे दलित समुदाय से थे और देश में दलितों की हालत बहुत खराब थी.
इस समय वे समाजवादी नेताओं के संपर्क में आए और दलितों के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया.
यह 1969 का साल था, जब पासवान सम्युक्त सोशलिस्ट पार्टी का हिस्सा बने. इसी साल वे पहली बार विधायक भी चुने गए. जैसे- जैसे समय आगे बढ़ा, वैसे- वैसे वे उस समय के प्रमुख नेताओं के संपर्क में आते गए. इनमें से सबसे प्रमुख जय प्रकाश नारायण थे.
रिकॉर्ड अंतर से जीता चुनाव!
1974 के आते- आते वे लोकदल के महासचिव चुने गए. इसी समय इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगा दिया तो पासवान को जेल भी जाना पड़ा. 1977 में वे जेल से बाहर आए तो आते ही जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसी वर्ष लोकसभा चुनाव हुआ तो हाजीपुर लोकसभा सीट से उन्होंने 4.24 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीता. इतने अधिक अंतर से चुनाव जीतने की वजह से उनका नाम गिनीज बुक में दर्ज किया गया.
इस समय तक पासवान ने खुद को एक दलित नेता के रूप में स्थापित कर लिया. आगे 1983 में पासवान ने दलित सेना का गठन किया. पासवान के अनुसार यह संगठन पूरी तरह से दलितों के उत्थान के लिए समर्पित था.
आगे पासवान की लोकप्रियता बढ़ती गई तो वे लगातार चुनाव भी जीतेते गए. 1984, 1989, 1996, 1998, 2000 और 2014 में वे हाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. 1990 में यह उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि संसद के सेंट्रल हाल में डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का चित्र लगाया गया.
इसके अलावा यह पासवान ही थे जिन्होंने सरकार को इस बात के लिए राजी किया कि जो दलित बुद्ध धरम को अपना रहे हैं, उन्हें भी आरक्षण का फायदा मिले. वहीँ अभी हाल फिलहाल में उन्होंने मांग की है कि सीवरों की साफ- सफाई करने वाले कर्मचारियों का वेतन एक आइएएस अधिकारी के बराबर हो.
लोक जनशक्ति पार्टी का गठन
जैसा कि पहले बताया चुका है कि पासवान ने अब तक छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है. जब वी. पी सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने पासवान को श्रम मंत्रालय सौंपा था. इस दौरान पासवान ने सरकार से दलितों के लिए रोजगार के क्षेत्र में आरक्षण को बढ़ाए जाने का आग्रह किया था.
इसी क्रम में वे 1996 में रेल मंत्री बनाए गए. सन 2000 में उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया. 2001 में अटल बिहारी बाजपेई की सरकार में वे कोयला मंत्री बनाए गए.
2002 में गुजरात दंगे हुए तो पासवान ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का साथ छोड़ दिया. 2004 में वे फिर से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो गए. आगे मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें ‘केमिकल एंड फर्टिलाइजर’ मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया.
आलोचनाओं से परे नहीं हैं
जैसा कि हम सब जानते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता है. ठीक यही बात राम विलास पासवान पर भी लागू होती है. उनके ऊपर भी अनेक प्रकार के आरोप लगते रहे हैं और उनके अंदर भी अनेक खामियां हैं.
अगर राजनीतिक प्रेक्षकों की बात करें तो उनका मानना है कि पासवान द्वारा बनाई गई लोक जनशक्ति पार्टी अपने गठन के बाद से कभी भी ऐसी स्थिति में नहीं आ पाई है, जहाँ से वो अपने दम पर कोई बड़ा परिवर्तन कर पाए. लोक जनशक्ति पार्टी को हमेशा किसी न किसी का सहारा चाहिए होता है.
इसके अलावा इन प्रेक्षकों का यह भी मानना है कि पासवान ने पिछले डेढ़ दशक में ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिससे दलितों को फयादा पंहुचा हो.
इसके अलावा उनकी पार्टी के ऊपर हत्या के आरोपियों और माफियाओं को टिकट देने का भी आरोप है. इनमें प्रमुख नाम सूरजभान सिंह और रणजीत सिंह के हैं. हम आपको बता दे कि रणजीत सिंह के ऊपर 2003 में ‘कैट’ , आईआईएम, एम्स औए सीबीएसई के प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक करवाने के आरोप हैं. इसके अलावा रणजीत सिंह व्यापम घोटाले में अपनी कथित हिस्सेदारी की वजह से सीबीआई के निशाने पर भी हैं.
इसके अलावा पासवान के ऊपर पार्टी में भाई- भतीजावाद और परिवारवाद को भी बढ़ाने के आरोप गाहे- बगाहे लगते रहे हैं.
जुलाई 2016 में गुजरात के उना में दलितों को रस्सी से बांधकर पीटा गया था. इस घटना के बाद पूरे देश में दलित संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए थे.
अगले साल जब गुजरात में चुनाव हुआ तो विपक्ष ने यह मुद्दा बड़ी मजबूती से उठाया. इसके जवाब में पासवान ने कहा कि ऊना जैसी छोटी- मोटी घटनाएं पूरे देश में होती ही रहती हैं. उनके इस बयान की विभिन्न दलित संगठनों ने कड़ी आलोचना की. गुजरात में राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के प्रमुख जिग्नेश मेवाणी ने इस बयान को शर्मनाक बताया.
तो ये थे राम विलास पासवान की अब तक की यात्रा और उससे जुड़े कुछ पहलू.
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Web Title: Ram Vilas Paswan: A Leader Who Worked Under Six Different Prime Ministers, HIndi Article
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