आईआईटी में प्रवेश के कुछ खास नियम हैं. इसमें सबसे जरूरी है आरक्षण की मार से बचाव. पिता जी की दी हुई आर्थिक मदद. परिवार वालों का सब्र और कुछ रह जाए तो उसे पढ़ाई करके पूरा किया जा सकता है.
जब ये सारी कोशिश हो जाएं तो एक आखिरी बार भगवान के दर्शन जरूर कर लिए जाते हैं, ताकि जो चमत्कार होने की उम्मीद कम है उसके होने की गारंटी मिल जाए!
पर जरा सोचिए कि जब भगवान के मंदिर में प्रवेश पाना आईआईटी से ज्यादा मुश्किल हो तब बेचारा भक्त क्या करे!
यह कोई व्यंग्यात्मक जुमला नहीं, बल्कि उस मंदिर की हकीकत है, जहां प्रवेश का रास्ता उन रास्तों से भी कठिन है जो एक छात्र का भविष्य बना सकते हैं. हम बात कर रहे हैं सबरीमाला मंदिर की!
जी हां आपने सही समझा, वही मंदिर जो इन दिनों विवादों में फंसा हुआ है. जहां भक्तों की भीड़ पहले ही भगवान को सांस नहीं लेने दे रही है. अब उसे और बढ़ाने की जंग जारी है. इस भीड़ में इजाफा करने के लिए देशभर की महिलाएं एक होती नजर आ रही हैं.
दरअसल इस मंदिर में बीते कुछ दशकों से महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है. लेकिन यहां प्रवेश पाना पुरूषों के लिए भी आसान नहीं है.
आखिर क्यों आइए जानने की कोशिश करते हैं-
विष्णु और शिव के मिलन का प्रतीक हैं अयप्पा
भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धरकर भगवान शिव को रिझाया था. फिर दोनों के मिलन से जो संतान पैदा हुई उसे भगवान अयप्पा कहा गया. उत्तर भारत में भले ही यह कथा न कही जाती हो, लेकिन दक्षिण भारत के मंदिरों की नींव भगवान अयप्पा की कृपा से ही टिकी है.
कंब रामायण, महाभारत के अष्टम स्कंध और स्कंदपुराण के असुर कांड में इस कहानी का विस्तार से विवरण दिया गया है.
देश के केरल राज्य में स्थित सबरीमाला का मंदिर में भगवान अयप्पा का वास है. यूं तो तमिलनाडू और केरल राज्य के हर शहर की हर दूसरी गली में भगवान अयप्पा के मंदिर मिल जाएंगे, लेकिन सबरीमाला का महत्व जरा ज्यादा है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिशु शास्ता भगवान अयप्पा के अवतार थे. उसी रूप का प्रतिरूप सरबीमाला मंदिर में विराजित है. 18 पहाड़ियों के बीच स्थित यह मंदिर कई मायनों में खास है.
माना जाता है परशुराम ने अयप्पा की पूजा कर उनकी मूर्ति सबरीमाला में स्थापित की थी. मंदिर के नाम में सबरी का जिक्र होने से इसे रामायण की शबरी के प्रसंग से भी जोड़कर देखा जाता है.
यह मंदिर जिस तरह से 18 पहाड़ियों के बीच है, उसी तरह यहां प्रवेश के लिए 18 सीढि़यां पार करना होती है. मंदिर में अयप्पा के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं.
मकर संक्रांति और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के संयोग के दिन, पंचमी तिथि और वृश्चिक लग्न के संयोग के समय अयप्पा का जन्म होना माना जाता है. इसलिए यह मौका मंदिर में किसी उत्सव से कम नहीं होता.
यूं ही नहीं मिल जाता मंदिर में प्रवेश
अब बात करें यहां आने वाले भक्तों की संख्या की. तो जनाब यह मंदिर हर साल इस अपना ही बनाया रिकॉर्ड तोड़ रहा है. कलियुग की मार खाने वालों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि सबरीमाला की शरण में हर साल दोगुना भक्त बढ़ते जा रहे हैं.
भक्त आ रहे हैं तो बिजनेस भी शानदार हो रहा है.
साल 2016 में सबरीमाला मंदिर में 3.5 करोड़ लोग आए. उस समय यहां 243.69 करोड़ रुपयों का बिज़नेस हुआ. 2018 आधा ही बीता है और भक्तों की संख्या ने अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 3.5 करोड़ का आंकडा छू लिया है.
उम्मीद है कि साल खत्म होते तक यहां एक नया रिकॉर्ड बनेगा. मंदिर में होने वाले दान में भी डेढ गुना का इजाफा देखा गया है.
चलिए तो इस खास मंदिर में प्रवेश के नियमों से भी दो चार हो लेते हैं. मंदिर में बस यूं ही जाने नहीं मिलता. बल्कि, इसके लिए पहले आपको 41 दिन की कठिन तपस्या करना अनिवार्य है.
तपस्या के दौरान व्रत रखा जाता है, यदि खाना खा रहे हैं तो वह सात्विक और पूरी तरह से शाकाहारी होगा.
इस दौरान टीवी, मोबाइल, सोशल मीडिया आदि का इस्तेमाल वर्जित है. शादीशुदा हैं तो दांपत्य जीवन का त्याग कर दीजिए. जमीन पर सोए, सात्विक विचार रखें. भगवान का नाम जपे. जब यह सब करते हुए 41 दिन पूरे हो जाएं, तो मंदिर के दरवाजे पर गर्व के साथ पहुंच सकते हैं.
यदि गले में तुलसी की माला है तो एक्स्ट्रा मार्क्स मिलना पक्का है.
मंदिर के दरवाजे तक पहुंचने के बाद यदि सुरक्षाकर्मी ने आपको पुरूष माना तो समझिए सारी मेहनत सफल हुई, लेकिन यदि आप महिला हैं तो पूरी मेहनत पानी में गई.
चूंकि यह मंदिर महिलाओं के प्रवेश से वर्जित है. यह तो वैसा ही है, जैसे आईआईटी की परीक्षा पास हो जाए और फिर भी एडमिशन न मिले.
27 साल पहले शुरू हुआ एक विवाद
अब जानते हैं उस कारण को जिससे परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने वाली महिलाओं को भी प्रवेश सूची में स्थान नहीं मिला. इस मंदिर में पिछले कुछ दशकों से 10 से 50 साल तक की महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.
इन महिलाओं के मंदिर में प्रवेश को रोकने का श्रेय जाता है केरल की हाईकोर्ट को, जिसने 1991 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महिलाओं को मंदिर में जाने से रोक दिया. यानि 1991 के पहले तक मंदिर में हर उम्र-जाति की महिला प्रवेश करती आ रही थी.
इस आदेश के पीछे एक पीआईएल का हाथ था. इसे मंदिर के एक भक्त ने लगाया था.
याचिकाकर्ता ने कहा कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इसलिए रजस्वला महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती. ऐसा इसलिए है कि हम उस समाज में रहने वाले हैं, जहां पीरियड्स के दिनों में महिलाओं को अपवित्र माना जाता है.
1991 में आया यह आदेश अब मान्यता में तब्दील हो चुका है. महिलाओं ने भी इसे स्वीकार कर लिया और पुजारियों ने भी मान लिया.
दूसरी तरफ मंदिर के दरवाजे पर पुलिस तैनात हो गई, जो यह सुनिश्चित करती कि कहीं धोखे से कोई महिला मंदिर में में न आ जाए. वहीं भगवान अपने गर्भगृह में बैठे यह सब देखते आ रहे थे.
तभी एक खुलासा हुआ और बवाल मच गया...
...और जब हुआ चौकाने वाला खुलासा
कन्नड़ नेत्री और अभिनेत्री जयमाला ने यह खुलासा किया. बात 2006 की है, जब उन्होंने बताया कि जब वो 28 साल की थीं, तब वो न सिर्फ मंदिर में शूटिंग के लिए पहुंची थीं, बल्कि गर्भ गृह पहुंचकर मूर्ति का स्पर्श भी किया था.
इस काम में बाकायदा मंदिर के पुजारी ने मदद की थी. बस फिर क्या था, महिलाओं का खून खौल गया.
उस वक्त शायद केरल में रेप, हत्याएं, लूटपाट की घटनाएं शायद कम थी, इसलिए मंदिर के मुद्दे ने इतना तूल पकड़ा कि उसके लिए क्राइम ब्रांच की जांच शुरू करवा दी गई. जांच शुरू हुए एक साल गुजरा ही था कि 2008 में केरल की कुछ महिला वकीलों ने आईपीएल दाखिल कर दी. विवाद मे उलझे हुए 10 साल गुजर गए और 2016 में देश के कुछ युवा वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा दी.
यह सियासतदानों के लिए स्वर्णिम अवसर था, जिसे कौन हाथ से जाने देता!
सो केरल की लेफ्ट सरकार भी मंदिर में औरतों को प्रवेश न मिलने का विरोध करने लगी. सीनियर लॉयर इंदिरा जयसिंग ने कोर्ट में दलील पेश करते हुए कहा कि पीरियड के दौरान महिलाओं को अपवित्र मानना छूत-अछूत की प्रथा को जायज मानने जैसा है, जो असंवैधानिक है!
मामला अब भी सुप्रीमकोर्ट में दलीलों के बीच फंसा हुआ है. यदि केस का कानूनी पक्ष देखें तो ये पूरी लड़ाई संविधान के आर्टिकल 26(बी) और 25(1) के बीच है. आर्टिकल 26 बी के अनुसार देश में सभी को अपना धर्म पालन करने, धार्मिंक इमारतों में जाने और उनके निर्माण का हक है. वहीं आर्टिकल 25 (1) कहता है देश में सभी को अपनी मर्जी का धर्म अपनाने, मानने और फैलाने का हक़ है
लेकिन विवाद इन कानूनों पर होने की बजाए धार्मिक रूप लेता गया और अब सियासी मसला बनकर रह गया है.
वहीं दूसरी ओर सबरीमाला के गर्भगृह में बैठे भगवान अयप्पा बीते 27 साल से इस विवाद को देख रहे हैं. यदि कोई उनके नजरिए से देखे तो गौर करें कि जब 27 साल पहले तक महिलाएं मंदिर में आ रही थीं, तब कोई अनर्थ नहीं हुआ.
न तो भगवान ने उठकर आपत्ति ली, तो भला अब क्या हो गया?
बहरहाल मंदिरों के आईआईटी कहे जाने वाले सबरीमाला में प्रवेश के लिए परीक्षार्थी र्शीष अदालत का मुंह तांक रहे हैं और कोर्ट लोगों को यही समझाने की कोशिश कर रही है कि महिलाओं के छूने से भगवान की पवित्रता पर आंच आनी होती तो वे कब के पलायन कर गए होते!
Web Title: Rules And Disputes To Enter Sabarimala Temple, Hindi Article
Feature Image Credit: desibantu