अगर हम इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि दुनिया में सबसे बड़े परिवर्तन लोगों के सतत संघर्ष से हुए हैं. कई बार लोग छोटी-छोटी लडाइयां हारे भी हैं, लेकिन उन्होंने हिम्मत न हारकर खुद को दोबारा से संगठित किया और जीत हासिल की है.
ऐसी ही कहानी भारत में समलैंगिकता को वैध करवाने से जुड़ी हुई है. आज भले ही सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकारों का हवाला देते हुए समलैंगिकता को गैर-कानूनी बताने वाली धारा 377 को रद्द कर दिया हो, लेकिन यह इतना आसान नहीं था.
इस धारा को रद्द करवाने के लिए लोगों को बहुत मशक्कत करनी पड़ी. उन्होंने ढेर सारे आन्दोलन किए. तो आइए ऐसे ही कुछ आंदोलनों पर नजर डालते हैं…
एड्स भेदभाव विरोधी समिति ने किया पहला आन्दोलन
हमारे देश में समलैंगिकता को वैध ठहराने के लिए सबसे पहला आंदोलन 1992 में हुआ. इसे एड्स भेदभाव विरोधी आन्दोलन नाम की समिति ने चालू किया था. यह 1992 का अगस्त का महीना था. दिल्ली के कनॉट प्लेस के सेन्ट्रल पार्क में कुछ लोग बैठे हुए थे.
दिल्ली पुलिस ने अचानक इन लोगों को समलैंगिकता के आरोप में गिरफ्तार करना शुरू कर दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने आईटीओ के पास स्थित दिल्ली पुलिस के हेडक्वार्टर के बाहर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस हेडक्वार्टर के सभी रास्ते बंद कर दिए.
इस तरह यह विरोध प्रदर्शन भारत का पहला ज्ञात समलैंगिकता समर्थक आन्दोलन बना. हालाँकि, इस आन्दोलन का कोई परिणाम नहीं निकला. आगे दो साल बाद एड्स भेदभाव विरोधी समिति ने तिहाड़ जेल में कंडोम बांटने की सिफारिश की.
लेकिन इसे तत्कालीन जेलर किरण बेदी ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इससे जेल के भीतर समलैंगिक प्रवत्तियों को बढ़ावा मिलेगा. इसके बाद इसी समिति ने पहली बार धारा 377 के खिलाफ कोर्ट में याचिका डाली. हालाँकि, जल्द ही इसे खारिज भी कर दिया गया.
कोलकाता में हुई पहली रैली
भारत में समलैंगिकता के समर्थन में दूसरा सबसे बड़ा आन्दोलन कोलकाता में हुआ. असल में कोलकाता में पहली बार लोगों ने समलैंगिक रैली निकाली. यह भारत की सबसे पहली समलैंगिक रैली थी. यह 1999 में निकाली गई.
इस रैली में बड़े पैमाने पर पोस्टर और बैनरों का प्रयोग हुआ. इस रैली में शामिल होने के लिए दूसरे शहरों से भी लोग आए. इसका नेतृत्व सप्पू नाम के एक समूह ने किया.
इस रैली की शुरुआत कुल 15 लोगों ने की. इस रैली को ‘फ्रेंडशिप वाक’ का नाम दिया गया. इस रैली में शामिल लोगों ने पीले रंग की टीशर्ट्स पहनीं. इन टीशर्ट्स में भारत का नक्शा था और इस नक़्शे के ऊपर गुलाबी रंग का त्रिभुज बना हुआ था.
इस प्रकार ये लोग यह कहना चाहते थे कि सम्पूर्ण भारतीय समाज में कानूनी और सामजिक रूप से समलैगिकों की भावनाओं और उनके मानवधिकारों को समझा जाए, उन्हें भी मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए.
इसके साथ-साथ इस रैली द्वारा बाकी लोगों को यह सन्देश भी दिया गया कि किसी और के मुकाबले समलैंगिकों को एड्स होने का खतरा सबसे ज्यादा है. बाद में भारत सरकार ने भी यह बात मानी.
छिटपुट आन्दोलन और विदेशी राजनयिकों की बैठक
आगे भारत में समलैंगिकता को लेकर छिटपुट आन्दोलन होते रहे. इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने 2009 में धारा 377 को असंवैधानिक घोषित कर दिया. समलैंगिक समूहों के बीच ख़ुशी की लहर दौड़ गई. लेकिन यह ख़ुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका के ऊपर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के पलट दिया.
इस प्रकार एक बार फिर से आंदोलनों का दौर शुरू हुआ. इन आंदोलनों को देश-विदेश के राजनयिकों और बुद्धिजीवियों का समर्थन मिलने लगा. इसी बीच जून 2016 में दिल्ली में 8 देशों के 27 राजनयिकों ने अमेरिकन लाइब्रेरी में बैठक की. इसमें बड़ी मात्रा में लोगों ने भी हिस्सा लिया. इसी समय अमेरिका के एक ‘गे’ क्लब में एक व्यक्ति ने 50 समलैंगिकों को मार दिया था.
इन राजनयिकों ने पहले तो उस आतंकवादी कृत्य की निंदा की और फिर एक संयुक्त वक्तव्य दिया. इस वक्तव्य में उन्होंने समलैंगिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए खुद को प्रतिबद्ध बताया. ख़ास बात यह रही कि इन राजनयिकों ने भारत में धारा 377 के ऊपर भी प्रश्न उठाए. उनके इन प्रश्नों से भारतीय न्यायपालिका के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा.
दिल्ली का आन्दोलन रहा निर्णायक
दिल्ली में 2016 में धारा 377 के खिलाफ एक बहुत बड़ा आन्दोलन हुआ. इस आन्दोलन का नारा था- ‘कौन सी धारा सबसे बदतर, 377...377’ . इसका प्रमुख उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में यह लाना था कि 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट धारा 377 को असंवैधानिक ठहरा चुका है.
इस विरोध प्रदर्शन के साथ एक रैली निकाली गई थी. ये रैली अपने आप में इसलिए ख़ास थी क्योंकि इसमें सैंकड़ों समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने नाचते हुए विरोध प्रदर्शन किया था. वे तरह-तरह की रंग-बिरंगी पोशाकें पहनकर आए थे और उनके हाथों में बाकी लोगों को देने के लिए गुलाब थे.
इस रैली में शामिल 33 वर्षीय सौरव जैन ने कहा कि भले आज हमारा समाज खुद को आधुनिक बताता रहे, लेकिन समलैंगिकों को लेकर यह पीछे ही गया है. उन्होंने यह भी कहा कि हमारे पुराने धार्मिक ग्रथों में समलैंगिकता को सामान्य माना गया है, लेकिन आज पता नहीं क्यों से अनैतिक और अप्राकृतिक बताया जा रहा है.
इसमें शामिल कई कार्यकर्ताओं ने यह भी बताया कि धारा 377 ब्रटिश साम्राज्य द्वारा विक्टोरियन नैतिकता के तहत बनाई गई थी. इस प्रकार यह एक बाहरी कानून है. आज भारत को आजादी हासिल किए हुए 70 से अधिक साल हो गए हैं. लेकिन इसके बाद भी इस बाहरी कानून को संविधान में जगह दी गई है.
आगे इन्हीं सब विरोध प्रदर्शनों का असर यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में निजता के अधिकार को मूल अधिकारों की श्रेणी में ला दिया. इसके बाद इसी आधार पर समलैंगिकता को भी निजता की श्रेणी में शामिल कर धारा 377 को इस वर्ष समाप्त कर दिया गया.
Web Title: These Movements Took The LGBT Rights To Its Final Destination, Hindi Article
Feature Image Credit: YENİ