श्रीदेवी ने उस समय बॉलीवुड में कदम रखा था, जब यहाँ तड़क-भड़क का बोलबाला था. इस समय व्यावसायिक सिनेमा एक नए स्तर में प्रवेश कर रहा था. यह बॉलीवुड के लिए संक्रमण का समय था और कम खर्चे में भड़कीली चीजें दिखाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा रहा था.
इस समय अभिनेत्रियों को बस रोने-धोने, रोमांटिक गानों में नाचने और विलेन के वहशीपने का शिकार बनने के किदार ही मिला करते थे. इसके साथ ही मेहनताना भी उन्हें फिल्म के हीरो से कम ही मिलता था. सभी अभिनेत्रियों की हालत एक जैसी ही थी. ऐसे में श्रीदेवी ने अपने हुनर से इसे बदल दिया.
एक समय तो ऐसा आया कि उनकी फीस फिल्म के हीरो से भी ज्यादा होती थी. उन्होंने हॉलीवुड के ऑफर्स को ठुकरा दिया और अपनी मर्ज़ी से काम किया. तो आईए हम श्रीदेवी के बारे में थोड़ा करीब से जानते हैं…
चार वर्ष की उम्र में रखा सिनेमा में कदम
श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त 1963 के दिन शिवकासी, तमिलनाडु में हुआ था. इनकी माता तिरुपति, आन्ध्र प्रदेश से थीं. इसलिए श्रीदेवी तेलगु और तमिल भाषा बोलते हुए बड़ी हुईं. शिवकासी में ही उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा शुरू की.
मात्र चार साल की उम्र में ही उन्हें सिनेमा जगत में एंट्री मिल गई. 1967 में उन्हें एक बाल कलाकार के रूप में तमिल फिल्म कंधन करुनाई में अदाकारी करने का मौका मिला. आगे 1969 में उन्हें एक मलयालम फिल्म कुमार संभवन में भी काम करने का मौका मिला. सन 1975 तक श्रीदेवी मुख्यता दक्षिण भारतीय फिल्मों में ही काम करती रहीं.
1975 में ही उन्होंने पहली बार हिंदी सिनेमा में कदम रखा. इस साल आई फिल्म जूली में उन्होंने एक बाल कलाकार के तौर पर काम किया. यह फिल्म हिट हुई और उनकी अदाकारी को काफी सराहा गया.
हालाँकि, हिंदी सिनेमा में अपने कदम जमाने में उन्हें अभी काफी समय लगना था. एक वयस्क अभिनेत्री के तौर पर श्रीदेवी ने 1979 में आई फिल्म सोलहवां सावन से हिंदी सिनेमा में दस्तक दी. इसके बाद फिल्म हिम्मतवाला ने उन्हें ख़ास पहचान दी.
1980 में उन्होंने अभिनेता जीतेंद्र के साथ जोड़ी बनाई. इस जोड़ी ने उन्हें वह नींव प्रदान की, जिसके ऊपर उन्होंने आने वाले सालों में अपने सपनों का सुंदर महल खड़ा किया. हिम्मतवाला फिल्म 1983 में आई थी. इसके बाद श्रीदेवी फिल्म तोहफा में नजर आईं. इस फिल्म ने कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. इसी वर्ष फिल्म सदमा रिलीज हुई.
इसमें वे कमल हसन के साथ नज़र आईं. इस फिल्म में उनके अभिनय को आलोचकों ने खूब सराहा. इसके लिए उन्हें फिल्फेयर का नामांकन भी मिला. 1990 के आते-आते श्रीदेवी ने लगभग हर तरह का किरदार अदा कर लिया था.
इस समय तक वे दर्शकों के दिलों में बैठ चुकी थीं और हर एक निर्देशक उन्हें अपनी फिल्म में लेना चाहता था. इस दौरान उन्होंने नगीना, कर्मा, मिस्टर इंडिया, जाबांज, चालबाज और चाँदनी प्रमुख थीं.
निर्देशकों की पहली पसंद बनीं
इन फिल्मों में काम करते हुए श्रीदेवी ने स्टीरियोटाइप को तोड़ा. उनके भीतर एक विद्रोहीपन था. इसी विद्रोहीपन से उन्होंने बॉलीवुड की यथास्थिति को भी तोड़ा. यह काम उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से करने की बजाय अपनी अदाकारी की सहायता से किया.
फिल्म नगीना में एक गाना है, ‘ मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तू मेरा.’ वैसे तो यह गाना सपेरे और नागिन के बीच के संघर्ष को दर्शाता है, लेकिन श्रीदेवी ने इसे ऐसे अंदाज में पेश किया कि यह उस समय समाज और सिनेमा जगत में चल रहे पुरुषवादी वर्चस्व को टक्कर देता हुआ नज़र आया. इस गाने में उनकी आँखों में जो गुस्सा नजर आता है, वो एकदम विशुद्ध था.
यही कारण था कि यह गाना देखते ही देखते लोगों की जुबान पर चढ़ गया. इस दौर में श्रीदेवी अपनी मादक अदाओं से दर्शकों को रिझाती थीं. उनका कद बहुत बड़ा हो चुका था. अब उनकी फीस अभिनेताओं से भी ज्यादा हो चुकी थी.
बड़े-बड़े निर्देशक भी उन्हें अपनी फिल्मों में नहीं ले पाते थे. उस समय के मशहूर निर्देशक मनमोहन देसाई कभी इतना पैसा इकठ्ठा ही नहीं कर पाए कि श्रीदेवी को अपनी फिल्मों में ले सकते. इस दौर में श्रीदेवी अपने मन के अनुसार काम करती थीं. वो बाकी अभिनेत्रियों की तरह लाचार नहीं थीं. यह हैसियत उन्होंने अपने हुनर और जज्बे के दम पर बनाई थी.
हॉलीवुड के निर्देशक स्टीवेन स्पीलबर्ग उन्हें अपनी फिल्म जुरासिक पार्क में लेना चाहते थे लेकिन श्रीदेवी ने मना कर दिया था.
शादी के बाद अचानक बना ली दूरी
साल 1996 में श्रीदेवी ने निर्देशक बोनी कपूर से शादी कर ली. इसके बाद उन्होंने फ़िल्मी दुनिया से दूरी बना ली. हालाँकि, वे टीवी सीरियल्स में काम करती रहीं. 1996 के बाद वे सीधे 2012 में गौरी शिंदे की फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश में नज़र आईं. इस फिल्म में उन्होंने चालीस साल की एक मध्यमवर्गीय महिला का किरदार निभाया.
यह किरदार उन्होंने इतनी शिद्दत से निभाया कि लोगों को लगा ही नहीं कि वे सिनेमा जगत से कई वर्षों से दूर थीं.
श्रीदेवी के साथ ख़ास बात यह थी कि उन्होंने हिंदी सिनेमा के साथ दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी काम करना जारी रखा. इस कारण वे पूरे भारत में मशहूर हुईं. उनके इसी योगदान के चलते 2013 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. दक्षिण भारतीय सिनेमा की अगर बात की जाए, तो तमिल, तेलगु, मलयालम और मलयालम में उन्होंने कुल मिलाकर 171 फ़िल्में कीं.
यह बात काफी चौकाने वाली है कि दक्षिण भारत का होने के बावजूद उन्होंने हिंदी में अधिक सुपरहिट फ़िल्में दीं.
अंत में यह कहा जा सकता है कि जिस तरह समय-समय पर अलग-अलग कलाकारों ने बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई, ठीक वैसा ही श्रीदेवी ने भी किया.
जैसे मीना कुमारी ने एक दुखी स्त्री, राजेश खन्ना ने रोमांटिक हीरो और अमिताभ बच्चन ने एक एंग्री यंग मैन की छवि बनाई, वैसे ही श्री देवी ने खुद को एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में ढाला, जो किसी भी प्रकार का किरदार अदा कर सकती थीं.
इसके साथ ही उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि फिल्म में अभिनेत्री की भूमिका अभिनेता के बराबर ही रहे. वे असल में एक सच्ची कलाकार थीं. 24 फरवरी, 2018 के दिन उनकी मृत्यु हो गई.
Web Title: Sridevi: Actress Who Worked On Her Own Terms, Hindi Article
Feature Image Credit: Vogue