बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोपी मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या सुर्खियों में है. चूंकि, यह हत्या जेल के अंदर हुई है, इसलिए इस पर हड़कंप मचना स्वभाविक था. जहां एक तरफ आनन-फानन में जेलर समेत 5 लोगों को निलंबित कर दिया गया. वहीं दूसरी तरफ इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए गए हैं.
ऐसे में यह जानना समायिक रहेगा कि आखिर मुन्ना बजरंगी है कौन और पूर्वांचल में उसे आतंक का पर्याय क्यों माना जाता है-
छोटी उम्र से ही था हथियारों का शौकीन
1967 में यूपी के जौनपुर में पैदा हुए मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह बताया जाता है. हर पिता की तरह उसके पिता पारसनाथ सिंह भी चाहते थे कि उनका बेटा पढ़-लिख कर एक नेक इंसान बने!
किन्तु, मुन्ना के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था.
पिता के कहने पर वह स्कूल गया तो, लेकिन ज्यादा वक्त तक वहां टिक नहीं सका. वह पांचवीं में रहा होगा, जब उसने किताबों को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया और एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा, जहां से वापसी कम ही होती है.
यह रास्ता था जुर्म का रास्ता...
कहते हैं कि छोटी उम्र से ही उसको हथियारों का खासा शौक था. वह फिल्मी खलनायकों की तरह एक बड़ा गैंगेस्टर बनना चाहता था. उसकी इसी चाह ने उसके कदमों को जुर्म के रास्ते पर बढ़ने के लिए रफ्तार दी.
इसी के चलते महज 17 की उम्र में ही उसके खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया. उसके खिलाफ यह मुकदमा मारपीट और अवैध असलहा रखने को चलते दर्ज किया गया था. कहते हैं यह मुन्ना की शुरुआत थी.
इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा...
मुख्तार के साथ से बना आतंक का पर्याय!
इस मुकदमें के बाद मुन्ना को उड़ान मिल चुकी थी. उसकी आंखों में तेजी से बढ़ने की चमक थी, जिसे उस दौर के कुख्यात रहे गजराज सिंह ने जल्द ही देख लिया. वह मुन्ना की तेजी से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने उसके ऊपर अपना हाथ रख दिया.
गजराज सिंह का संरक्षण मुन्ना के लिए उत्प्रेरक साबित हुआ. इसी दौरान 1984 में उसने एक बड़ी लूट को अंजाम देते हुए उसने व्यापारी के खून से अपने हाथ रंग लिए. यह मामला थमता इससे पहले उसने जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह का काम तमाम कर दिया. इन दोनों वारदातों को अंजाम देने के बाद वह पूरी तरह से लाइम लाइट में आ चुका था.
इससे पहले पुलिस उस पर अपना शिकंजा कसती. उसने 90 के दशक में पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी का दामन थाम लिया. यह वह दौर था, जब मुख्तार सपा के टिकट पर मऊ से विधायक चुने गए थे.
मुख्तार और मुन्ना के इस मिलन को लोगों ने राजनीति और जुर्म का कॉकटेल बताया. इसके दुष्परिणाम आने स्वभाविक थे. मुन्ना ने सक्रियता से मुख्तार की गैंग को आगे बढ़ाना शुरु कर दिया.
इसके चलते पूरे पूर्वांचल को डर और सनसनी के मंजर देखने को मिलते रहे... इसी कड़ी में मुन्ना ने 29 नवंबर 2005 को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को दिन दहाड़े मौत देकर सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा.
इस हमले में गाजीपुर से विधायक कृष्णानंद राय के अलावा उनके साथ चल रहे 6 अन्य लोग भी मारे गए थे.
कहते हैं उसने यह हत्या मुख्तार के कहने पर की गई थी. असल में कृष्णानंद राय मुख्तार के लिए चुनौती बन चुके थे. उनकी वजय से उसे अपने कारोबार में बहुत नुक्सान झेलना पड़ रहा था.
...और इस तरह मुन्ना बन गया 'मोस्ट वॉन्टेड'
कृष्णानंद राय हत्याकांड ने मुन्ना को मोस्ट वॉन्टेड बना दिया था. सूबे की पुलिस समेत एसटीएफ को उसकी तलाश थी. एक-एक करके उस पर हत्या, अपहरण और वसूली के दर्जनों मामले दर्ज हो गए.
एक लंबी मशक्कत के बाद वह हाथ नहीं लगा, तो उसे 7 लाख रुपए का इनामी बना दिया गया. दूसरी तरफ बिहार पुलिस भी उसके पीछे लगी हुई थी. ऐसे में मुन्ना अंडर ग्राउंड हो गया. पुलिस से बचने के लिए वह यहां-वहां भागता रहा.
अंतत: वह मुंबई जाकर छिपा. कहते हैं वहां वह एक लंबे समय तक रहा.
ऐसे में बड़ा सवाल यह था कि आखिर मुख्तार उसकी मदद क्यों नहीं कर रहे थे. इसका जवाब दर्ज था मुन्ना की उस मंशा में, जिसके तहत वह राजनीति में सक्रिय होना चाहता था. वह गाजीपुर लोकसभा सीट पर अपना प्रतिनिध खड़ा करना चाहता था.
कहते हैं मुख्तार को यह रास नहीं आया. यही कारण था कि वह मुन्ना की मदद नहीं कर रहा था.
खैर, मुन्ना कहां मानने वाला था. कहते हैं अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए पहले उसने भाजपा से संपर्क साधा. फिर वहां बात नहीं बनी तो कांग्रेस की ओर रुख किया. हालांकि, उसकी यह मंशा पूरी नहीं हो सकी और वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.
खत्म हो गया 20 साल का आपराधिक जीवन
तारीख थी, 29 अक्टूबर 2009. मुन्ना की तलाश में दिल्ली पुलिस मुंबई के मलाड इलाके में पहुंची. दिल्ली पुलिस इसलिए, क्योंकि मुन्ना पर दिल्ली पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की हत्या का भी आरोप था.
पुलिस को मिली खबर पक्की थी, इसलिए मुन्ना दिल्ली पुलिस के बिछाए जाल से नहीं बच सका.
कहते हैं कि वह आसानी से आत्मसमर्पण करने वाला नहीं था. वह तो, उसे लग गया था कि दिल्ली पुलिस उसके एनकाउंटर के इरादे से आई है, इसलिए उसने मजबूरन खुद को पुलिस के हवाले कर दिया.
इस गिरफ्तारी के बाद मुन्ना को अलग-अलग जेलों में रखा जाता रहा. दिलचस्प बात तो यह है कि जेल के अंदर कैद होने के बावजूद उसके खिलाफ लोगों को धमकाने, वसूली करने जैसे मामले दर्ज होते रहे.
20 साल जुर्म के रास्ते पर चलते हुए उसके ऊपर हत्या की 40 से भी ज्यादा वारदातों को अंजाम देने का दावा किया जाता है.
गौरतलब हो कि हाल ही में उसे एक केस के सिलसिले में उत्तर प्रदेश की झांसी जेल से बागपत ले जाया गया था. वहीं उसकी हत्या कर दी गई. इस हत्या के पीछे कौन है, और जेल के अंदर कैसे यह संभव हो सका...इसका जवाब आना अभी बाकी है.
किन्तु, इसमें दो राय नहीं कि मुन्ना बजरंगी की मौत के साथ जुर्म का एक काला अध्याय खत्म हो चुका है!
आपकी क्या राय है?
Web Title: Story of Gangster Munna Bajrangi, Hindi Article
Feature Image Credit: amarujala