समाज ने उसे बताया कि वो एक औरत नहीं है, लेकिन फिर भी वो मां बनी. उसे ‘हिजड़ा’ बोल-बोलकर चिढ़ाया गया. हर दिन, हर पहर उसका आत्मसम्मान छीना गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी. उसने जीना नहीं छोड़ा.
उसने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी. उसने अपने जैसे और लोगों को जागरूक किया और एक बच्ची को यातनाओं के अँधेरे में ढकेले जाने से बचाया. उस बच्ची को उसने एक मां की तरह पाला-पोषा और उन सबके मुंह पर एक करारा थप्पड़ मारा, जो समलैंगिकता को एक पाप समझते हैं.
जी हां, हम बात कर रहे हैं ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट गौरी सावंत की. उनकी कहानी संघर्षों से भरी हुई और प्रेरणादायक है. आइए इसे जरा करीब से जानते हैं…
गणेश सावंत के रूप में लिया जन्म
गौरी सावंत का जन्म गणेश सावंत के रूप में पुणे के भवानीपीठ में हुआ. ऐसा कहा जाता है कि उनके मां-बाप गौरी को जन्म नहीं देना चाहते थे. जब वे गर्भ में थीं, तब उनके उनके माँ-बाप ने गर्भपात कराने का निर्णय लिया था, लेकिन डॉक्टर ने कहा था कि ऐसा करना संभव नहीं है. ऐसी परिस्थितियों में गौरी का जन्म हुआ था.
गौरी की शारीरिक बनावट लड़कों की तरह थी, लेकिन उनके हाव-भाव किसी लड़की की तरह. बचपन में उन्हें लड़कों के साथ खेलना कभी पसंद नहीं आया, इसलिए वे लड़कियों के साथ घर-घर खेला करती थीं. वे पेड़ों की पत्तियों को पानी में उबाला करतीं, आटे को गूंथकर रोटियां बनातीं. इन सब कामों में उन्हें सुकून मिलता था.
जब वे दस साल की थीं, तब उनकी चाची ने उनसे पूछा कि वे बड़ी होकर क्या बनना चाहती हैं. इसपर उन्होंने उत्तर दिया की वे मां बनना चाहती हैं. यह सुनकर उनकी चाची हंसी और बोलीं कि वे मां नहीं बन सकती हैं, क्योंकि वे एक लड़का हैं. गौरी को ये सुनकर बहुत दुःख हुआ था.
इस बीच उनके पिता का ट्रांसफर मुंबई हो गया. गौरी नए स्कूल जाने लगीं. एक दिन उनके अध्यापक ने गौरी के पिता को बताया कि गौरी के भीतर स्त्री की प्रवत्तियां हैं. तब उनके पिता ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन वे गौरी से थोड़ा-थोड़ा कटने लगे.
एक दिन उनके पिता अपने ऑफिस से गुस्सा होकर आए और उन्होंने गौरी से बोला कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो गौरी सड़कों पर ताली बजाती फिरेंगी. एक दिन गौरी ने उनसे बात की तो वे बोले, “क्या हिजड़ों की तरह बात करता है.” इन सब चीजों ने गौरी को तोड़ दिया. उन्होंने परिवार वालों से बात करना बहुत कम कर दिया.
लेकिन इन सबके बाद भी गौरी ने अपने भीतर की स्त्री को मरने नहीं दिया. लोगों ने उन्हें जितना दबाने की कोशिश की, वे उतना ही मुखर होती गयीं.
17 साल की उम्र में छोड़ा घर
वक्त जैसे-जैसे बीतता जा रहा था, वैसे-वैसे गौरी का दम भी घुटने लगा था. इसी माहौल में उन्होंने निर्णय लिया कि वे अब अपना घर छोड़ देंगी. जब उन्होंने घर छोड़ा,तब उनके पास केवल साठ रुपए थे और उनकी उम्र केवल 17 साल थी. खैर, जब वे घर छोड़कर दादर पहुंची, तो उन्हें वहां उनका एक दोस्त मिला. उसने गौरी को तीन दिन अपने घर में रहने देने का वादा किया.
इसी दौरान वे एक ऐसे ट्रस्ट से मिलीं, जो समलैंगिक लोगों के लिए काम करता था. जल्द ही उन्हें इस ट्रस्ट में काम करने का मौका मिला. वे महीने में 1,500 रुपए भी कमाने लगीं. घर छोड़कर भागे और लोगों की तरह उन्हें भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ी. यह सब उनकी हिम्मत और आत्मसम्मान की वजह से ही संभव हो पाया.
यहीं पर उन्होंने निर्णय लिया कि वे आधिकारिक रूप से अपनी पहचान को दुनिया के सामने रखेंगी. आगे उन्होंने खुद को ‘हिजड़ा’ घोषित किया. हिजड़े न तो स्त्री होते हैं और न ही पुरुष. इस समय तक सुप्रीम कोर्ट ने हिजड़ों को तीसरे लिंग (ट्रांसजेंडर) के रूप में मान्यता दे दी थी.
इस ट्रस्ट से जुड़ने के बाद गौरी के जीवन में एक नयी ऊर्जा आ गई थी. वे समलैंगिक समूह से आने वाले लोगों को जागरूक करने लगीं. इस समूह से आने वाले ज्यादातर लोग जीवन निर्वहन के लिए यौनकर्मी के रूप में काम करते हैं. इसलिए उनसे इससे संबंधित बीमारियाँ हो जाने का बहुत खतरा होता है. गौरी उन्हें इन्हीं बीमारियों के प्रति जागरूक कर रही थीं.
एलजीबीटी एक्टिविस्ट और मां बनने का सुख
एक बार उनकी जान पहचान की एक समलैंगिक यौनकर्मी की मृत्यु ऐसी ही संक्रामक बीमारी से हो गई. वो अपने पीछे गायत्री नाम की छोटी से बच्ची छोड़ गई थी. ऐसे में गौरी ने गायत्री की देखभाल का जिम्मा उठाया. दोनों आपस में घुल-मिल गईं.
फिर जब गायत्री पांच साल की हुई, तो दूसरे लोगों ने उसे बेच देने का निर्णय लिया. यह सुनकर गौरी की आँखों में खून उतर आया और उन्होंने कहा की उनके होते हुए कोई गायत्री को हाथ भी नहीं लगा सकता.
इसके बाद उन्होंने गायत्री का और ज्यादा ख्याल रखना शुरू कर दिया. दोनों के बीच वात्सल्य और बढ़ता गया. एक मां और बेटी की तरह वे अब उन लोगों के खिलाफ थीं, जो उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहते थे.
आगे गौरी समलैंगिक लोगों के अधिकारों के लिए लड़ती रहीं. उन्होंने धारा 377 के खिलाफ अपनी आवाज तो मुखर की ही, साथ ही तीसरे लिंग के लोगों को आधार कार्ड दिए जाने की लड़ाई भी लड़ी. वहीं उन्होंने गायत्री को गोद लेने की सिफारिश भी कोर्ट में डाली. लेकिन कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया. हालांकि, इसके बाद भी वे गायत्री की देखभाल करती रहीं.
इस बीच दूसरे लोग गायत्री को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश करते रहे. लेकिन कभी ऐसा संभव नहीं हो पाया. तमाम कानूनी पेंचो के बीच गायत्री ने कभी भी भी गौरी से दूर जाना मंजूर नहीं किया.
लोगों ने गायत्री को बहलाया, फुसलाया, लेकिन वे कभी भी उसे गौरी के खिलाफ नहीं कर पाए. यह गौरी का वात्सल्य ही था कि गायत्री उनके बिना बेचैन होने लगती थी. गायत्री गौरी को मां बुलाती और गौरी उसे मां और बाप, दोनों की तरह प्यार करती. इस तरह गौरी ने अपने बचपन के सपने को पूरा किया.
Web Title: The Story Of Transgender Gauri Sawant, Hindi Article
Feature Image Credit: The Wire