कहा जाता है कि फ़िल्में कला की सबसे श्रेष्ठ माध्यम होती हैं. इनमें संगीत, अदाकारी, लेखन इत्यादि सभी प्रकार की कलाओं का संगम होता है. यदि किसी फिल्म का कोई एक पक्ष भी कमजोर पड़ता है, तो इससे पूरी फिल्म पर प्रभाव पड़ता है.
अक्सर हम देखते हैं कि दर्शक केवल फिल्मों के नायक-नायिकाओं को ही तवज्जो देते हैं. किसी भी फिल्म में नायक और नायिकाओं से इतर भी बहुत कुछ होता है. एक नायक या नायिका द्वारा बोले गए संवाद कोई लेखक लिखता. उनके अभिनय करने और संवाद बोलने का तरीका एक पटकथा लेखक तय करता. तब कहीं जाकर वे दर्शकों के दिलों में अपना घर बना पाते हैं.
ऐसे ही एक पटकथा और संवाद लेखक थे ‘वजाहत मिर्जा.’ भारतीय सिनेमा जब अपने स्वर्ण युग में थी, तब उन्होंने कुछ सबसे बेहतरीन फिल्मों के संवाद लिखे. उनके लिखे संवादों और पटकथा ने न जाने कितने नायक और नायिकाओं को अमर कर दिया.
तो आईए उनके बारे में थोड़ा करीब से जानते हैं….
छोटी उम्र में बने सहायक निर्देशक
अपनी लेखन कला से करोड़ों लोगों के दिल पर राज करने वाले वजाहत मिर्ज़ा का जन्म 20 अप्रैल 1908 के दिन लखनऊ के निकट स्थित सीतापुर में हुआ था. इनका घर काफी समृद्ध था, इसलिए इन्हें पढने-लिखने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा. मिर्ज़ा जी ने प्रारम्भिक शिक्षा अपने शहर में पूरी की.
जैसे-जैसे ये बड़े होते गए, वैसे-वैसे उनका रुझान सिनेमा और लेखन की तरफ होता गया. इस उद्देश्य से उन्होंने गवर्नमेंट जुबिली इंटर कॉलेज में दाखिला ले लिया. यह वही समय था, जब उन्होंने कुछ ठोस काम करने का मन बनाया.
इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने कलकत्ता के सिनेमेटोग्राफर क्रिशन गोपाल से संपर्क साधा. उनके साथ मिलकर उन्होंने निर्देशन और सिनेमा लेखन की बारीकियां सीखीं. उनके सीखने की गति बहुत तेज थी. यही कारण था कि वे जल्द ही क्रिशन गोपाल के सहायक भी बन गए.
उनके साथ मिलकर उन्होंने कई अच्छी फ़िल्में बनायीं. उनके फिल्म बनाने का अंदाज एकदम नया था. यही वजह थी कि उन्हें जल्द ही जाने-पहचाने निर्देशकों और निर्माताओं की तरफ से बुलावा आने लगा. ऐसे ही एक निर्माता थे मिद्गन कुमार. वजाहत ने उनके साथ मिलकर ‘अनोखी मोहब्बत’ नाम की फिल्म बनाई. यह फिल्म हिट साबित हुई.प्रारम्भ में उन्हें लगा कि वे एक निर्देशक के तौर पर अच्छा काम कर सकते हैं.
इसलिए चालीस के दशक में उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्देशन किया. इन फिल्मों में ‘स्वामीनाथ’, ‘जवानी’ और ‘प्रभु का घर’ जैसी फ़िल्में शामिल थीं. इन फिल्मों में केकी अदाजानिया और हुस्न बानू जैसे जहीन कलाकारों ने अदाकारी की थी.
निर्देशन छोड़ लेखन को बनाया पेशा
निर्देशन के साथ-साथ वे लेखन भी कर रहे थे. असल में अपने करियर के शुरूआती दौर में वे इस बात को लेकर असमंजस में थे कि आखिर उन्हें निर्देशन और लेखन में किसे चुनना है. इसलिए ही शायद वे दोनों काम एक साथ कर रहे थे. जैसे-जैसे वक्त बीता, वैसे यह साफ़ होता गया कि लेखन ही उनके लिए अच्छा विकल्प है.शुरुआत में उन्होंने ‘यहूदी की लड़की’ , ‘हम तुम और वो’ और ‘वतन’ जैसी फिल्मों के लिए लेखन किया.
आगे जैसे-जैसे यह साफ़ होता गया कि उन्हें अपना सारा ध्यान केवल लेखन पर ही लगाना है, वैसे-वैसे उनके लेखन की धार बढ़ती गई. इसका परिणाम यह हुआ कि फ़िल्में हिट होने लगीं.1940 में उन्होंने ‘औरत’ फिल्म के लिए लेखन किया.
इसके बाद 1956 में फिल्म ‘आवाज’ में भी उन्होंने पटकथा और संवाद लिखे. इसके लिए उनकी खूब सराहना हुई.आगे 1957 में मेहबूब खान के निर्देशन में ‘मदर इंडिया’ फिल्म रिलीज हुई, तो यह ब्लॉकबस्टर साबित हुई. यह फिल्म अपने संवादों के लिए ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामित हुई. आगे यह केवल एक वोट से इस पुरस्कार को नहीं जीत पाई. इस फ़िल्म के संवाद वजाहत मिर्ज़ा ने ही लिखे थे.
वक्त आगे बढ़ा तो 1960 में फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ आई. इस फिल्म के संवाद और पटकथा चार लेखकों ने तैयार किये. इनमें से एक वजाहत मिर्जा भी थे. अगले साल फिल्म ‘गंगा-जमुना’ रिलीज हुई. यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर हिट रही.
इस फिल्म के संवाद भी वजाहत मिर्जा ने ही लिखे थे. इसे दर्शकों ने काफी सराहा.
बड़ी बातों को सरलता से बयान करते थे
वजाहत मिर्जा का संवाद और पटकथा लिखने का अंदाज बिल्कुल निराला था. वे कठिन से कठिन बातों को सीन के अनुरूप ढालकर इतनी सहजता से कह देते थे कि लगता ही नहीं था कि फिल्म में कहीं भारीपन या ऊब है.अगर हम मदर इंडिया की बात करें तो जब राधा अपने दो भूखे बच्चों को लेकर सूदखोर सुखी लाला के पास जाती है, तब लाला उसके सामने एक प्रस्ताव रखता है.
लाला कहता कि राधा अगर अपनी इज्जत का सौदा कर ले तो वह उसे पैसे दे देगा. इस बात को वजाहत मिर्ज़ा ने बिल्कुल आसान शब्दों में बड़े ही प्रभावशाली ढंग से कहा है. संवाद इस प्रकार है, ‘अच्छी तरह सोच विचार कर लो राधा. कौनो जल्दी नाही है, सुखी लाला बहुत सबर वाला आदमी है.’
वहीँ अगर फिल्म ‘गंगा-जमुना’ की बात करें, तो इसमें भी किरदार जमुना की खुद्दारी को मिर्ज़ा साहब ने बहुत ही आसान शब्दों में किया है. जमुना जब काम की तलाश में आता है, तब उसे एक सोने का हार मिलता है. वह यह हार पुलिस को दे देता है. पुलिस वाला उसकी हालत देखकर पूछता है, ‘ मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूँ?’. तब जमुना जवाब देता है, ‘कोई नौकरी मिल सकती है, मैं बहुत तकलीफ में हूँ.’
संवाद और पटकथा लिखने का मिर्ज़ा साहब का यह अनोखा अंदाज ही था, जिसकी वजह से उन्हें लगातार दो बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. 1961 में ‘मुगल-ए-आज़म’ और 1962 में ‘गंगा-जमुना’ के लिए उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया.
आगे उन्होंने ‘लीडर’, ‘शतरंज’, ‘गंगा की सौगंध’ और ‘लव एंड गॉड’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के संवाद भी लिखे. अपने 53 साल के करियर में उन्होंने कुल मिलाकर 31 फिल्मों के लिए संवाद और पटकथा तैयार की. अपने संवादों से उन्होंने अनेक संघर्षत कलाकारों को सिनेमा जगत के सबसे ऊपरी पायदान पर बिठाया. उन्होंने ताउम्र अपना काम पूरी शिद्दत से किया और 4 अगस्त 1990 के दिन इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए.
Web Title: Wajahat Mirza: Who Wrote Dialouges For Mother India And Mughle Azam, Hindi Article
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