हाल ही में जैसे ही यह खबर आयी कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 7 जून को आरएसएस मुख्यालय जाएंगे और वहां भावी प्रचारकों को संबोधित करेंगे, तो पार्टी के अंदर और बाहर हंगामे का दौर शुरु हो गया.
बावजूद इसके अब, जब प्रणब मुखर्जी एकदम खामोश हैं, तो सबकी नज़र इस पर टिकी हैं कि वह आरएसएस मुख्यालय से क्या बोलेंगे.
खैर, चूंकि यह मामला आरएसएस के 'संघ शिक्षा' वर्ग कार्यक्रम को लेकर जन्मा है, इसलिए जानना सामयिक रहेगा कि आखिर यह है क्या और इसमें प्रणब मुखर्जी को मुख्य अतिथि क्यों बनाया गया –
संघ के शिक्षण कार्यक्रमों पर एक नज़र
संघ के शिक्षण कार्यक्रमों को समझने के लिए हमें शुरुआत से विवेचना करनी पड़ेगी.
1925 में डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में आरएसएस की एक संगठन के रूप में स्थापना हुई. अब चूंकि, शुरुआत से ही इस संगठन की शिक्षा में गहरी दिलचस्पी रही, इसलिए उसने 1977 के आसपास 'विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान' की स्थापना की. इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य था सामान्य शिक्षा के साथ 'धर्म और संस्कृति' का संगम.
शुरुआत में सभी के मन में सवाल था कि इस संस्थान को लोग किस रूप में लेंगे, जिसका जवाब जल्द ही मिलने लगा.
बड़ी संख्या में लोगों ने इसको हाथों-हाथ लिया. नतीजा यह रहा कि इसका दायरा बढ़ता चला गया.
वर्तमान की बात करें तो देशभर में संघ ऐसे करीब 12,000 स्कूल चलाता है.
इन स्कूलों की खास बात यह है कि ये अधिकांश केंद्रीय शहरी माध्यमिक शिक्षा से संबद्ध, निजी स्कूलों के रूप में चल रहे हैं. मगर इनका मॉडल दूसरे निजी स्कूलों से एकदम अलग है. यहां जहां, संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है, वहीं अनुशासन पर खासा ध्यान दिया जाता है!
जाहिर तौर पर संघ का शिक्षा पर एक नजरिया रहा है और इसी की अगली कड़ी हो सकती है संघ शिक्षा वर्ग. इसमें अपनी 'हिंदुत्व विचारधारा' को फैलाने पर संघ काम करता रहा है.
कुछ ऐसे हैं 'संघ शिक्षा वर्ग'
संघ शिक्षा वर्ग की बात करें, तो यह मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं. पहला 'प्राथमिक', फिर क्रमशः 'प्रथम', 'द्वितीय' और आखिरी 'तृतीय' वर्ष का प्रशिक्षण.
खास बात यह है कि ये सारे वर्ग अपनी-अपनी खासियत रखते हैं.
'प्राथमिक' की बात करें तो वह एक सप्ताह का होता है, जिसका आयोजन अमूमन संघ द्वारा निर्धारित ‘जिला करता है.
इसके बाद 'प्रथम' वर्ष का प्रशिक्षण, जोकि 20 दिनों का होता है, उसकी जिम्मेदारी संघ निर्धारित 'प्रान्त' पर होती है.
वहीं 'द्वितीय, जोकि प्रथम की तरह ही 20 दिनों का होता है, उसकी बागडोर संघ निर्धारित 'क्षेत्र' करता है.
इसी क्रम में 'तृतीय' 25 दिनों का होता है, जो कि हर साल संघ-मुख्यालय नागपुर में आयोजित होता है.
बताते चलें कि संघ के इसी शिक्षा वर्ग यानी 'तृतीय' में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बतौर मुख्य अतिथि बनकर जा रहे हैं!
वहां वह करीब 700 कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे.
आसान नहीं होती इसकी 'कक्षाएं'
बताते चलें कि यह शिक्षा वर्ग अमूमन हर साल गर्मियों के मौसम में ही आयोजित किए जाते हैं. वह भी ऐसी गर्मी, जिसमें हम घर से बाहर तक निकलने से डरते हैं.
पच्चीस दिनों के इस वर्ग में भाग लेने वालों को कड़ी ट्रेनिंग के दौर से गुजरना पड़ता है. पाठ्यक्रम की बात करें तो मोटे तौर पर रोज करीब 250 मिनट का एक 'खास' कार्यक्रम चलाया जाता है, जिसमें बौद्धिक विकास संबंधी विषय वस्तु पढ़ाई जाती है. इसके अलावा करीब 200 मिनट के शारीरिक विकास के कार्यक्रम रखे जाते हैं.
यही नहीं बाकी समय में व्यक्ति को ऐसा परिवेश मिलता है कि वह देश-दुनिया को भूल जाता है.
खास बात यह है कि संघ शिक्षा वर्ग से ही 'आरएसएस के प्रचारक' निकलते हैं, जोकि आगे संगठन की रीढ़ बनते हैं.
वर्तमान में ये करीब 2,500 की संख्या में देश भर में फैले हुए हैं. इनका सिर्फ एक ही उद्देश्य है, देश सबसे ऊपर. हिंदुत्ववादी विचारधारा को समर्पित प्रचारक गैर शादीशुदा होते हैं.
मोदी जैसे बड़े राजनेता यहीं से निकले...
यूं तो 'संघ शिक्षा वर्ग' से निकलने वाले प्रचारक राजनीति की मुख्य धारा से दूर ही रहते हैं. किन्तु, जब संगठन के काम के लिए उन्हें राजनीति में सक्रिय होने का काम दिया जाता है, तो वह पीछे नहीं हटते.
मौजूदा समय की बात करें तो कई ऐसे बड़े नाम हैं, जो राजनीति में सक्रिय हैं और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक मंच पर अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं.
इसमें वर्तमान में सबसे चर्चित नाम है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का.
किशोरावस्था में ही वह आरएसएस के संपर्क में आए और बाद में संघ के प्रचारक बने. उनके करियर ने उस वक्त मोड़ लिया, जब 1985 में वह भाजपा में शामिल हो गए. और इसके बाद वह गुजरात में भाजपा का चेहरा बने. आगे अपनी सक्रियता के दम पर उनका राजनीतिक कद बढ़ा और 2014 लोकसभा चुनाव के बाद वह देश के प्रधानमंत्री बने.
प्रधानमंत्री मोदी ही क्यों, उनके अलावा मौजूदा सरकार में राजनाथ सिंह (गृह मंत्री), नितिन गडकरी (सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री), बंडारु दत्तात्रेय (श्रम और रोजगार मंत्री), उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू जैसे बड़े नाम मौजूद हैं, जो आरएसएस की पृष्ठिभूमि से आते हैं.
केंद्र की राजनीति से अलग राज्यों की राजनीति की बात की जाए, तो वहां भी आरएसएस प्रचारकों का बोलबाला देखने को मिलता है.
शिवराज सिंह चौहान (मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश), देवेंद्र फडनवीस (मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र), मनोहर लाल खट्टर (मुख्यमंत्री, हरियाणा) इसके बड़े उदाहरण हैं.
वर्तमान ही क्यों इतिहास पर भी नज़र डालें, तो उसमें भी हमें दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे बड़े राजनेताओं के नाम मिलते हैं, जोकि कभी आरएसएस के प्रचारक हुआ करते थे!
डॉ. मुखर्जी से पहले के नेता, जो संघ के कार्यक्रमों का हिस्सा बने!
प्रणब मुखर्जी 'संघ शिक्षा वर्ग' में मुख्य अतिथि क्यों... इसके अलग-अलग जवाब हो सकते हैं. किन्तु, गौर करें तो यह पहली बार नहीं है, जब संघ किसी गैर संघ-पृष्ठभूमि के व्यक्ति को अपने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बना रही है.
इससे पहले भी कांग्रेस के नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किसी कार्यक्रम का हिस्सा बनते रहे हैं. यहां तक 1934 में महात्मा गांधी स्वयं वर्धा में संघ के शिविर में गए थे.
गांधी के अलावा भारत के पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन संघ के आमंत्रण पर जा चुके हैं.
यही नहीं, 1961 में भारत पर चीन के आक्रमण के समय संघ के स्वयंसेवकों की सेवा से प्रभाविक होकर पं. नेहरू ने भी 1963 की गणतंत्र दिवस परेड के लिए उनको आमंत्रित किया था, जिसके बाद करीब 3 हजार स्वयंसेवक उस परेड का हिस्सा बने थे.
इसी क्रम में 1978 को जनता पार्टी के शासन के दौरान जयप्रकाश ने संघ के पटना में आयोजित प्राथमिक शिक्षा वर्ग को संबोधित किया था. शायद यही कारण है कि संघ इसे अपनी परंपरा बता रही है.
हालाँकि, संघ के हिंदुत्व पर ज्यादा जोर देने को लेकर उसके विरोधी उसकी खासी आलोचना करते रहे हैं और बहुत मुमकिन है कि इसी वजह से प्रणब मुखर्जी की विजिट पर विवाद उत्पन्न हो रहा है.
खैर, प्रणब मुखर्जी के 'संघ शिक्षा वर्ग' में मुख्य अतिथि बनने के पीछे जो भी वजह हो, फिलहाल तो यह सुनना दिलचस्प होगा कि प्रणब मुखर्जी भावी प्रचारकों को संबोधित करते हुए क्या कहते हैं.
क्यों सही कहा न?
Web Title: What is Sangha Shiksha Varga, Hindi Article
Feature Image Credit: hindi.khabare