हाल ही में खबर आई है कि असम की हिमा दास ने आईएएएफ़ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में पहला स्थान प्राप्त किया है.
पूरे विश्व के सामने भारत का सर गर्व से ऊँचा करने वाली इस एथलीट को देश के कोने-कोने से बधाई मिल रही है.
मशहूर हस्तियों और खिलाड़ियों से लेकर नेताओं ने हिमा को ट्विटर पर बधाई दी है. इन बधाइयों को देखकर ऐसा लग रहा है कि भारत में इस तरह के एथलीटों का अकाल पड़ा हुआ है.
गाहे-बगाहे कभी कोई अच्छा प्रदर्शन कर लेता है, तो वह सनसनी बन जाता है.
हमारा देश जनसँख्या के हिसाब से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है, लेकिन इसके बाद भी हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं.
आखिर ऐसा क्यों आईए जानने की कोशिश करते हैं-
एक एथलीट पर खर्च होते हैं महज 3 पैसे!
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की बात होती है, तो सबसे पहले हमारी जुबान पर ओलंपिक का नाम आता है. प्रत्येक चार साल के अंतराल पर आयोजित होने वाली इस खेल प्रतियोगिता में अनेक प्रकार की खेल स्पर्धाओं का आयोजन होता है.
इसमें लगभग पूरा विश्व भाग लेता है. इसे खेलों का महाकुम्भ कहा जाता है.
खेलों के इस महाकुम्भ में भारत 1920 से भाग ले रहा है. आज करीब 98 वर्षों के बाद भारत की झोली में मात्र 24 पदक हैं. इन 24 पदकों में 9 स्वर्ण पदक हैं. इन 9 स्वर्ण पदकों में 8 स्वर्ण पदक भारतीय हॉकी टीम ने जिताए हैं.
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत ने अपना आठवां स्वर्ण पदक 1980 में जीता था. इसके बाद नौवां स्वर्ण पदक 2008 के ओलम्पिक में आया था. इस ओलम्पिक में एयर राइफल शूटर अभिनव बिंद्रा ने भारत को स्वर्ण पदक जिताया था.
अब आप सोच रहे होंगे की आखिर ऐसा क्या कारण है कि सवा सौ करोड़ लोगों के देश में पदकों का अकाल पड़ा हुआ है? आखिर इस देश में एथेलेटिक्स की हालत इतनी खराब क्यों है?
इन प्रश्नों के उत्तर 2016 में आई एक रिपोर्ट में मिलते हैं. यह रिपोर्ट भारतीय संसद में पेश हुई थी. इस रिपोर्ट में ऐसा खुलासा हुआ, जिससे पता चलता है कि भारत में प्रतिभावान एथलीटों की कमी नहीं है, बल्कि उन खिलाड़ियों के पास संसाधनों और सुविधाओं की कमी है. इस रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में प्रत्येक एथलीट पर प्रतिदिन केवल 3 पैसे खर्च किए जाते हैं.
यही कारण है कि हमारे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं. उन्हें न तो अच्छी सुविधाएं मिलती हैं और न ही अवसर. बस उनके ऊपर अच्छा प्रदर्शन करने का दवाब होता है.
फंड की कमी ही वह वजह है कि ज्यादातर युवा एथेलेटिक्स में अपना करियर बनाने की जगह दूसरे क्षेत्रों में हाथ आजमाते हैं!
वहीं अमेरिका अपने प्रत्येक एथलीट पर प्रतिदिन 22 रूपए खर्च करता है. इसके अलावा जमैका जैसा देश भी हमारे देश से ज्यादा खर्च करता है. यही कारण है कि अमेरिका में हर तीन मिलियन लोगों के एवज में एक पदक मिल जाता है, वहीं ब्रिटेन में प्रत्येक एक मिलियन लोगों के एवज में एक पदक मिल जाता है. भारत में यह अनुपात 204 मिलियन का है.
समाज में खेल-संस्कृति का आभाव
फंड की कमी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लचर प्रदर्शन का कारण तो है ही. इसके साथ-साथ हमारे भारतीय समाज में आपस में मिलजुलकर खेलने की संस्कृति का अभाव है. मिलजुलकर न खेलने की स्थिति में अच्छे खिलाड़ी आगे नहीं आ पाते हैं.
प्रोफेसर रंजोय सेन अपनी एक किताब में बताते हैं कि भारत का समाज अनेक जातियों में विभाजित है.
इस कारण ऊँची और नीची जातियां एक साथ नहीं खेलती हैं. वे आगे बताते हैं कि भारत की जनसँख्या में नीची जाति के लोग ज्यादा हैं. इनके पास न तो खेलने की सुविधाएं हैं और न ही भरपूर पोषण.
इस कारण समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा खेलने से ही वंचित रह जाता है!
ऐसे में सवाल यह है कि आखिर इस सूरत को बदलने का वाजिब हल क्या है...क्या अपवादस्वरूप अच्छा प्रदर्शन करने वाले एक-दो खिलाड़ियों को ट्विटर पर बधाई देना ही काफी है, या फिर कुछ और...!
2018 के बजट में की गई है बढ़ोत्तरी, बावजूद इसके...
जैसा कि ऊपर जिक्र हो चुका है कि इस स्थिति के लिए फंड की कमी एक बड़ा कारक है. उसी क्रम में अगर हम इस बार के खेल बजट की बात करें तो यह पिछले साल के मुकाबले बढ़ा है.
पिछले साल खेल पर सरकार ने 1943 करोड़ रूपए खर्च किये थे. इस साल यह बजट 2196 करोड़ रुपए हो गया. मतलब कि इस साल खेल पर पिछले साल के मुकाबले 253 करोड़ रुपए अधिक खर्च होने हैं.
भारत जैसे देश में जहां सरकारों की पहली जिम्मेदारी गरीबी उन्मूलन से लेकर मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराने की होती है, वहां खेल पर एक साल के भीतर 253 करोड़ रुपए का बढ़ाया जाना संतोषजनक कहा जा सकता है.
किन्तु इसमें दो राय नहीं कि इतने भर से भारत के एथलीटों का काम चलने वाला नहीं है!
बहरहाल, इतनी कठिनाइयों के बाद भी हिमा दास, डिंको सिंह, कर्णम मल्लेश्वरी, अंजू बॉबी जोर्ज और पीटी ऊषा जैसे नामों ने समय-समय पर भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया है.
इसके लिए इनका सम्मान किया जाना चाहिए!
Web Title: Why India Is Unable To Produce World Class Atheletes, Hindi Article
Feature Image Credit: DNA India