हर वर्ष 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है. इस दिन पूरा विश्व उन रक्तदाताओं को शुक्रिया अदा करता है, जिन्होंने स्वेच्छा से अपना रक्त दान करके दूसरों को नया जीवन प्रदान किया.
किन्तु, क्या आपको मालूम है कि यह दिवस हर साल 14 जून को क्यों मनाया जाता है.
असल में इसी दिन दुनिया के एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर का जन्म हुआ था. कार्ल ही थे, जिन्होंने यह पता लगाया कि मनुष्य के शारीर में जो खून बहता है, वो अलग-अलग समूहों से वास्ता रखता है.
बताते चलें कि उनकी इसी खोज के कारण एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में खून का आदान-प्रदान संभव हो पाया.
तो आईए जानते हैं कि डॉक्टर कार्ल लैंडस्टीनर ने यह कैसे संभव बनाया-
महज 6 की उम्र में छूटा पिता का साया
डॉक्टर कार्ल लैंडस्टीनर का जन्म 14 जून 1868 को विएना, ऑस्ट्रिया में हुआ था.
उनके पिता ऑस्ट्रिया के ख्याति प्राप्त पत्रकार और वकील थे. उनका नाम लियोपोल्ड लैंडस्टीनर था, जिन्होंने हमेशा से अपने बेटे को मानवता की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित किया.
कहते हैं कार्ल जब केवल छः साल के थे, तब उनके पिता की हृदयघात से मौत हो गई. इसके बाद कार्ल के जीवन में तो जैसे अँधेरा छा गया. उनके घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी, लेकिन एक प्रबुद्ध पिता की कमी कोई भी रकम पूरी नहीं कर सकती है.
आगे इनकी मां फैनी हेस ने उन्हें पाला-पोषा. इसके साथ फैनी इन्हें अपने पिता की समाज सेवा वाली बात को लगातार याद दिलाती रहीं. इनके पिता ने इनसे कहा था कि जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य असहाय और लाचार मनुष्यों की मदद करना है.
अपने पिता की इसी सीख के कारण वे जीवन में आगे बढ़ पाए. चूंकि वह छोटी उम्र से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, इसलिए 17 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उन्हें ऑस्ट्रिया विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया.
पढ़ाई के लिए करना पड़ा धर्म परिवर्तन
रसायन विज्ञान में उनकी रूचि बहुत अधिक थी, इसलिए वहाँ उन्होंने आयुर्विज्ञान की पढ़ाई की. उस समय ऑस्ट्रिया में एक नियम था कि कोई भी यहूदी स्नातक से आगे की पढ़ाई नहीं कर सकता था, इसलिए 1890 में उन्होंने ईसाई धर्म में अपना धर्म- परिवर्तन कर लिया.
इसके साथ ही ऑस्ट्रिया में एक नियम और था कि प्रत्येक नवयुवक को एक साल सैन्य प्रशिक्षण लेना जरूरी था. इस कारण से उन्हें एक साल पढ़ाई से दूर रहना पड़ा. खैर, इन सब परेशानियों के बावजूद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई चालू रखी और आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान शुरू किया. जल्द ही उन्हें कामयाबी भी मिली.
1891 में उन्होंने अपना पहला वैज्ञानिक काम पूरा किया. इस साल उन्होंने बताया कि कैसे हमारा खान-पान हमारे खून के प्रवाह को प्रभावित करता है. उस समय के हिसाब से यह बहुत बड़ी खोज थी. इस खोज के बाद मिली प्रशंसा ने डॉक्टर कार्ल को कुछ और नया खोजने के लिए प्रोत्साहित किया. इसलिए उन्होंने अपने अध्यन का क्षेत्र और विस्तृत कर लिया.
उनके इसी अध्ययन का ही परिणाम था कि 1896 में उन्हें उस समय के मशहूर आयुर्विज्ञानी मैक्स वोन ग्रूबर का सहयोगी बनने का मौक़ा मिला. मैक्स तब हाईजीन इंस्टिट्यूट ऑफ़ विएना में कार्यरत थे. उनके साथ काम करते हुए कार्ल ने यहाँ पर प्रतिरक्षा और रोग प्रतिरोधक जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर वृहद अध्ययन किया.
इस समय उन्होंने आयुर्विज्ञान से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण लेख भी लिखे.
जल्द ही उन्हें एंटन वीसेल्बम के साथ काम करने का मौक़ा मिला. एंटन तब विकृति विज्ञान के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम थे. इनके साथ काम करते हुए ही कार्ल की रूचि पैथोलॉजी के क्षेत्र में बढ़ी.
...और फिर जीवन की सबसे बड़ी खोज
आगे 1901 में कार्ल ने अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण खोज की. उन्होंने बताया कि मनुष्य के शरीर में जो खून बहता है, वो एक सामान नहीं है, बल्कि इस खून के चार अलग-अलग समूह हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि एक रक्त समूह वाले व्यक्ति को अलग रक्त समूह वाले व्यक्ति का खून नहीं दिया जा सकता है. ये चार रक्त समूह ‘ए’, ‘बी’ , ‘ओ’ और ‘एबी’ हैं.
इससे पहले 1628 में अंग्रेजी भौतिकविद विलियम हार्वी ने बताया कि मनुष्य के शरीर में खून का बहाव होता है. इस सिद्धांत के बाद 1665 में पहला सफल ट्रांसफ्यूजन हुआ. इस साल एक अंग्रेजी वैज्ञानिक रिचर्ड लोअर ने एक कुत्ते से दूसरे घायल कुत्ते को खून देकर उसे बचा लिया. इसके बाद इस प्रक्रिया में मनुष्यों को भी शामिल किया गया.
कालांतर में विभिन्न देशों के अलग-अलग वैज्ञानिकों ने इसमें अनेक स्तर तक सफलता भी पाई. लेकिन कार्ल से पहले कोई भी यह नहीं पता लगा पाया था कि मनुष्य का खून अलग-अलग समूहों में बटा हुआ है.
इस हिसाब से कार्ल की खोज बहुत ज्यादा क्रांतिकारी साबित हुई. कार्ल ने जिस समय यह खोज की, उस समय चारों तरफ युद्ध छिडे हुए थे. ऐसे में यह खोज युद्ध पर जाने वाले सैनिकों के बड़े काम आई. अब अगर वे युद्ध करते समय घायल होते थे, तो उन्हें समय पर जरूरी खून उपलब्ध करा दिया जाता था. इस प्रकार कार्ल की खोज ने कई सैनिकों को मरने से बचाया.
कार्ल की इस खोज ने पुलिस और दूसरी एजेंसियों के द्वारा आपराधिक मामलों में की जाने वाली खोजबीन को भी बल प्रदान किया. अब अपराधी को हत्या वाले स्थान से प्राप्त खून की जांच करके पकड़ पाना ज्यादा आसान हो गया.
दर्ज हैं दूसरी कई महत्वपूर्ण आविष्कार
आगे डॉक्टर कार्ल लैंडस्टीनर ने इस क्षेत्र से इतर दूसरे क्षेत्रों में भी कई महत्वपूर्ण खोजें की. उन्होंने एक विकलांग बच्चे के शव का परीक्षण किया और पोलियो का टीका बनाने में सफलता पाई.
आज पोलियो के टीके से न जाने कितने बच्चे विकलांग होने से बच जाते हैं.
आगे उन्होंने 1919 से 1922 तक एक बार फिर से रसायन विज्ञान में अपना ध्यान लगाया. इस बार उन्होंने त्वचा संबंधी संक्रमणों और बीमारियों के कारणों का पता लगाया और उनका हल खोजा.
आगे 1922 में डॉक्टर कार्ल लैंडस्टीनर हमेशा के लिए अमेरिका में बस गए. यहाँ उन्हें रॉकफेलर इंस्टिट्यूट में नौकरी मिल गई. आगे उन्होंने अलेक्जेन्डर वाइनर के साथ मिलकर 'आर एच फैक्टर' की खोज की.
इस खोज ने गर्भवती औरतों को अपना और अपने गर्भ का ख्याल रखने में बहुत सहायता प्रदान की. 1901 में की गई उनकी खोज इतनी क्रांतिकारी थी कि इसके लिए इन्हें 1939 में आयुर्विज्ञान का नोबेल मिला. 26 जून 1943 को इनकी मृत्यु हो गई.
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि डॉक्टर कार्ल लैंडस्टीनर ने अपनी खोजों के द्वारा सच्चे अर्थों में मानवता की सेवा की. यही उनके जीवन का अंतिम और एकमात्र लक्ष्य था, जिसके लिए इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा.
Web Title: World Blood Donor Day: Story Of Dr. Karl Landsteiner, Hindi Article
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