यूं तो भारत की धरती पर रहस्यों की कमी नहीं है. संत महात्माओं से लेकर अनेक ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में आम जनों की उत्सुकता बनी ही रहती है. इसी कड़ी में लंबी-लंबी जटाओं वाले अघोरी बाबाओं की रहस्यमय दुनिया को जानने समझने की दिलचस्पी स्वाभाविक ही उत्पन्न होती है.
माना जाता है कि इन अघोरी बाबाओं से बड़ा भगवान शिव का कोई दूजा भक्त नहीं होता. कई लोग तो इन्हें शिव का प्रारुप ही मान लेते हैं. उनका मानना है कि अघोरी बाबा के मुंह से निकली बात किसी के भी जीवन को बदल सकती है.
ऐसे में सवाल यह है कि कुरुप और रौद्र दिखने वाले यह लोग हैं कौन? कहां से आये हैं और इनका इतिहास क्या है? तो यह जानने के लिए इन्हें जरा नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं:
अघोरियों का इतिहास
यूं तो सब कुछ त्याग कर भगवान की खोज में जाने की रीत बहुत पुरानी मानी जाती है, लेकिन अघोरी बाबाओं की बाहर आयी कहानी 18वीं सदी में बाहर आयी मानी जाती है. तभी दुनिया ने अघोरियों के बारे में जाना था. हालांकि, इसकी आगे पुष्टि नहीं की जा सकी. सही तौर पर आज भी किसी को नहीं पता कि आखिर अघोरी बनने की प्रथा कब, कैसे और किसने शुरू की थी.
बावजूद इसके जनधाराणाओं में अधिकतर लोगों का मनना है कि दुनिया के सबसे पहले अघोरी बाबा किनाराम थे. वह सारी दुनिया की मोह-माया को छोड़कर अघोरी बन गये थे. कहते हैं, इसी कारण वह 150 सालों तक जिए थे.
अघोरी बाबाओं के बारे में कहा जाता है कि वह भगवान शिव के पक्के भक्त होते हैं. उनके ही बताए रास्तों पर चलते हैं. यहां तक की उनकी विशेष पूजा करते हैं. वह शिव की भक्ति में कुछ इस तरह लीन हो जाते हैं कि खुद को समाज से एकदम अलग कर लेते हैं. उनका मानना होता है कि इससे वह अपने शिव के नज़दीक पहुंच जाते हैं.
वह ऐसी हर चीज से दूर रहना पसंद करते हैं, जो उनका मन भटकाती हो. फिर चाहे वह इन अघोरियों का अपना परिवार ही क्यों न हो. इसके अलावा वह खान-पान, समाज, रीति-रिवाज सभी से किनारा कर लेते हैं. उनका ज्यादा से ज्यादा समय अपने शिव की आराधना में बीतता है. अपने इसी अटूट विश्वास के चलते ही वह एक कठिन जीवन को आसान बना लेते हैं.
Aghori In India (Pic: pinterest)
इंसानी मांस खाने का पूरा सच!
एक अघोरी बनना कतई आसान नहीं होता है. सिर्फ पुरानी जिंदगी को त्याग देना ही एक अघोरी के लिए काफी नहीं होता. उन्हें एक नई जिंदगी को अपनाना पड़ता है. कई सारे नई रीति-रिवाजों को पूरा करना पड़ता है. इंसान का मांस खाना इन्हीं रिवाजों का एक हिस्सा माना जाता है. अघोरियों के लिए यह बात कहीं जाती है कि वह इंसानों का मांस खाते हैं, लेकिन यह पूरा सच नहीं है.
अघोरी हर समय ही इंसान का मांस नहीं खाते हैं. ऐसा वह सिर्फ़ अपने रिवाज़ को पूरा करने के लिए ही करते हैं. पूरे चांद की रात अघोरी अपनी इस प्रथा को पूरा करते हैं. वह सिर्फ मरे हुए इंसान का ही मांस खाते हैं. जब लाश जल जाती है, या जब कोई लाश गंगा नदी से तैर कर आती है, तो वह उसको अपना भोजन बनाते हैं.
इस रिवाज के पीछे उनका तर्क दिलचस्प होता है. वह कहते हैं कि भगवान की बनाई गई हर चीज को उन्हें खाने का हक़ है और इंसान को भी भगवान ने ही बनाया है, इसलिए उसको खाने में संकोच कैसा!
Aghori In India (Pic: naukrinama)
श्मशान से है इनका पुराना नाता
अघोरी रहने के लिए श्मशान को अपना घर मानते हैं. काशी के घाटों पर इसी कारण एक बड़ी संख्या में अघोरी देखे जाते हैं. उनको आसानी से पहचाना जा सकता है. उनका हुलिया एकदम अलग होता है, साथ में वह अपने शरीर पर हर समय सफ़ेद राख लगाकर रखते हैं. असल में यह राख इंसानी लाशों के जलने के बाद की होती है.
ज्यादातर अघोरी रातों को ही बाहर आते हैं, क्योंकि दिन के सूरज में लोगों का आना जाना लगा रहता है. कहते हैं कि रात के ही समय जब कोई नहीं होता, तब अघोरी कब्रिस्तान में ध्यान लगाते हैं. जिस कब्रिस्तान में लोग रात में भूत-प्रेत के डर से नहीं जाते हैं, वहां पर अघोरी बिना किसी हिचकिचाहट के रहते हैं.
नशे की लती होते हैं, क्योंकि…
कहा जाता है कि अघोरी एक बड़ी मात्रा में गांजे और शराब का सहारा लेते हैं. इसके पीछे उनका तर्क होता है इनके नशे से उनका दिमाग शांत रहता है. साथ ही उन्हें इससे ध्यान लगाने में मदद मिलती है. अघोरियों की यह आदत उन्हें आम लोगों से दूर करती है. लोग उनके पास जाने और बात करने से डरते हैं. हालांकि, अघोरी लोगों के लिए नुकसानदायक नहीं होते. वह सिर्फ दिखने में ही डरावने लगते हैं.
अघोरियों के लिए कहा जाता है कि एक सच्चा अघोरी कभी भी अपने दिल में किसी के लिए नफरत या गुस्सा नहीं ला सकता है. अगर कोई भी अघोरी ऐसे भाव अपने मन में लाता है, तो वह ध्यान नहीं लगा पाता और अपने मार्ग से बिछड़ जाता है. शायद यही वजह है कि अघोरी हमेशा वह काम करते दिखते हैं, जो समाज नहीं करता. जैसे कि फेंके हुए खाने को जानवरों के साथ बांटना, आदि.
वह हर तरह से खुद को यूं बना लेते हैं कि किसी भी चीज़ के करने से पहले उन्हें कोई भी संकोच न हो. उनके बारे में कहा जाता है कि अघोरी इंसानी खोपड़ी का एक कंकाल हर समय अपने पास रखते हैं. ऐसा इसलिए ताकि वह उसका प्रयोग पानी पीने और खाना खाने में कर सकें. कुछ अन्य रिवाजों में यह खोपड़ी काम आती है.
Aghori In India (Pic: timesofindia)
यूं ही नहीं मिलती पहचान…
अघोरी बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है. यह कोई आम बाबा बनने की प्रक्रिया नहीं है कि जिसकी मर्ज़ी हुई वह अघोरी बन जाए. अघोरी बनने के लिए भी बकायदा ट्रेनिंग होती है. इसके अपने खुद के इंस्टीट्यूट भी हैं. 13 अखाड़े वह जगह हैं, जो पूरे देश के हर कोने में मिल ही जाती है. यहां वह लोग जाते हैं, जिनके मन में अघोरी बनने की चाह होती है.
इस अखाड़े में शामिल करने से पहले बकायदा बड़ी जांच की प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है. जब तक इस बात की पुष्टि नहीं कर ली जाती कि कोई अघोरी क्यों बनना चाहता है, तब तक एक कदम भी उसको आगे नहीं बढ़ने दिया जाता. पहले पायदान से कोई आगे बढ़ भी गया तो उसे कड़ी ट्रेनिंग से होकर गुजरना पड़ता है.
ट्रेनिंग के दौरान इन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरीकों से चेक किया जाता है. इन्हें ब्रह्मचर्य की कसम खिलाई जाती है. फिर धीरे-धीरे उन्हें सारे सांसारिक मोह से दूर कर दिया जाता है. उनके पास सिर्फ एक ही रास्ता बचता है, जो उन्हें उनके शिव के पास ले जाता है. अघोरी को पूरी तरह भगवान शिव की भक्ति में लीन होने की हिदायत दी जाती है.
परीक्षा की इस कड़ी में अघोरी को न्यूनतम 24 घंटे खड़े रहकर वैदिक मंत्रों का जाप करना पड़ता है. इसमें सफल होने के बाद उन्हें अपना खुद का ‘पिंड दान’ और ‘श्राद्ध’ करना पड़ता है. इसके बाद वह एक तरह से मुर्दा मान लिया जाता है.
आखिरी मुकाम में अघोरी को कुंभ के मेले के दौरान गंगा में पवित्र किया जाता है. इन सब कामों को करने के बाद ही कोई अघोरी बन पाता है.
Aghori In India (Pic: washingtonpost)
अघोरी सदैव ही जनता से दूर एकांत में अपनी जिंदगी व्यतीत करना पसंद करते हैं. अघोरियों से अनजान लोग अक्सर उनके बारे में गलत धारणाएं बना लेते हैं जबकि, वह इनसे पूरी तरह से विपरीत हैं.
अघोरी हमारे समाज का एक हिस्सा हैं, जो अपनी भक्ति में लीन रहते हैं. हाँ, भारतीय समाज के तमाम रहस्यों में इनकी गिनती भी की जा सकती है, जिस पर न केवल देश में बल्कि विदेश तक में रिसर्च होती रहती है.
Web Title: Aghori In India, Hindi Article
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