आज के दौर में हर देश दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है. हर कोई चाहता है कि वह सबसे अव्वल रहे. आगे निकलने की इस होड़ में कई बार उनकी खुफिया जानकारी दूसरे देशों के हाथों में लगने का डर बना रहता है. यह एक ऐसी चुनौती है, जिससे हर देश पार पाना चाहता है. शायद इसीलिए ज्यादातर देशों ने अपनी-अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी बना रखी हैं. फिर चाहे वह अमेरिका की सीआईए हो या फिर भारत की रॉ.
जर्मनी भी इसमें पीछे नहीं है. उसने भी ‘बी.एन.डी’ नामक एक खुफिया तंत्र बना रखा है, जो सालों से उसकी खुफिया जानकारी को दुश्मनों की नज़र से बचा कर रखता है, तो आवश्यक जानकारी हासिल भी करता है. तो चलिए इसके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ गठन
दूसरे विश्व युद्ध ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था. अपने लीडर हिटलर की मौत के बाद जर्मनी भी एक तरह से बेसहरा सा हो गया था. हिटलर की गलती की सजा कोई भी जर्मनी को नहीं देना चाहता था. कई देशों ने उनकी तरफ मदद के हाथ तक बढ़ाए थे. यही कारण था कि जर्मनी ने धीरे-धीरे फिर से नया आकार लेना शुरु कर दिया था. इसी कड़ी में जर्मनी के सामने अपनी लचर पड़ चुकी सेना को पुन: सुदृढ़ करने की चुनौती थी. मेजर जनरल रेंहार्ड गेहलन ने इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाया.
दूसरे देशों की तरह रेंहार्ड को भी महसूस हुआ कि उसे भी ख़ुफ़िया एजेंसी का गठन करना चाहिए, ताकि वह दुश्मन देशों की नापाक नज़रों से जर्मनी को दूर रख सके. रेंहार्ड जर्मनी के लिए एक ऐसी एजेंसी चाहते थे, जो देश के बाहर के साथ-साथ सेना के लिए भी मददगार साबित हो सके. एक लंबे समय तक रेंहार्ड इसकी रुपरेखा बनाते रहे.
आखिरकार 1956 में वह एक मजबूत प्रस्ताव को सामने लाए. यह प्रस्ताव सभी को पसंद आया तो इस मसौदे को मंजूरी दे दी गई. जल्द ही यह एंजेसी बनकर तैयार हुई तो इसका नाम दिया गया Bundesnachrichtendienst या ‘बी.एन.डी’ (Link In English) या फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस.
BND German Intelligence Agency (Representative Pic: ww2colorfarbe)
अमेरिका मदद को आगे आया तो…
रेंहार्ड ने एजेंसी का गठन तो कर दिया था, लेकिन इस सुचारु रुप से चलाने के लिए उनके पास पर्याप्त स्रोत नहीं थे. जर्मनी की हालत भी अभी उतनी अच्छी नहीं हुई थी कि इसके लिए अलग से बजट बनाया जा सके. यह एक ऐसी उलझन थी, जिसको सुलझाना बहुत जरुरी थी. तभी अमेरिका ने जर्मनी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और मदद के लिए आगे आया. अमेरिका के साथ ने जर्मनी के हौसलों को उड़ान दी. रेंहार्ड की बनाई ख़ुफ़िया एजेंसी ने अपनी ताकत को बढ़ाना शुरु कर दिया. माना जाता है कि एक लंबे समय तक अमेरिका और जर्मनी दोनों देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने मिलकर काम किया.
कई अहम कामों को देती हैं अंजाम
बी.एन.डी का हिस्सा होना कोई आम बात नहीं है. यह काम बहुत ही ज्यादा मुश्किल है. चूंकि, यह देश की सबसे बड़ी ख़ुफ़िया एजेंसी है, इसलिए इसके ऊपर देश की सुरक्षा का सबसे ज्यादा भार होता है. इस एजेंसी का काम न केवल देश के आंतरिक रुप से मजबूत करना होता है, बल्कि, बाहरी खतरों से बचने के लिए भी हमेशा फुल प्रूफ प्लान के साथ सजग रहना होता है. आतंकवाद, गैरकानूनी हथियारों का लेन-देन और दंगे जैसी गतिविधियों से देश को बचाना इनके प्रमुख मिशनों में से एक होते हैं.
इसके अलावा इन सबमें जरूरी काम होता है दूसरे देशों से जानकारी लाना और अपनी जानकारी (Link In English) को उनसे बचाना. हर देश की तरह जर्मनी के पास भी अपने कई सारे सारे राज हैं, जिन्हें वह हर किसी से बचाना चाहता है. यह देश की सुरक्षा से जुड़ी बातें होती है, जो अगर दुश्मन के हाथों चली गई तो अनर्थ हो सकता है. ऐसी ही जानकारियों को ‘बी.एन.डी’ के जासूस लोगों की नजरों से बचाकर रखते हैं.
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जासूस हैं इसकी असली ताकत
वक़्त के साथ इस ख़ुफ़िया एजेंसी ने अपने कदम काफी आगे बढ़ा लिए हैं. धीरे-धीरे इसने दुनिया भर में अपना जाल बिछा दिया है. इस एजेंसी की सबसे बड़ी ताकत इसके जासूस होते हैं. अपने जासूसों के बल पर यह एजेंसी जान पाती है कि दुनिया में क्या चल रहा है? माना जाता है कि इस एजेंसी के जासूस दुनिया के कोने-कोने में मौजूद हैं. कहते हैं कि मौजूदा समय में ‘बी.एन.डी’ के पास लगभग 4000 (Link In English) जासूसों का नेटवर्क है.
हर एक जासूस इनके लिए बहुत कीमती होता है. यह जासूस न सिर्फ अपने दिमाग, बल्कि नए जमाने की तकनीक का भी खूब फायदा उठाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस एजेंसी के जासूसों को इलेक्ट्रॉनिक (Link In English) निगरानी करने में महारत हासिल होती है. उस टेक्नोलॉजी के कारण ही यह दुनिया भर से अपने काम की खबर लिया करते हैं. यह काम आसान नहीं होता. इसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है.
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इंटरनेट पर भी रखते हैं नजर!
इंटरनेट हमारी आज की जरूरत बनता जा रहा है. अधिकतर लोग इंटरनेट पर अपना काफी समय व्यतीत करते हैं. इसके बिना तो हम अपना जीवन सोच भी नहीं सकते हैं. इंटरनेट हमारी आज के ज़माने की ताकत और कमजोरी दोनों ही है. हैकर इंटरनेट से हमारी जानकारी चुराकर उसका गलत फायदा उठा सकते हैं. अभी हाल ही में ‘रैनसमवेयर’ नाम के वायरस ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था. उसने कई सारे देश के सरकारी कंप्यूटरों को हैक करके उनका काम बाधित कर दिया था.
हर देश अपनी साइबर सुरक्षा को बढ़ा रहा था. इसी कड़ी में जर्मनी ने अपनी सुरक्षा बढ़ने के लिए खुद हैकरों (Link In English) को अपने साथ जोड़ने का फैसला कर लिया था. कहते हैं कि लोहे को सिर्फ़ लोहा ही काट सकता है. इसी बात को दिमाग में लिए हुए जर्मन ख़ुफ़िया एजेंसी ने हैकर को मात देने के लिए खुद हैकर रखने की सोच ली है. माना जाता है कि उन्होंने इस बात का इश्तिहार भी दिया था. इस कदम के साथ एक बार फिर से इस एजेंसी ने दिखा दिया कि यह क्यों टेक्नोलॉजी में सबसे आगे रहते हैं.
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पार्लियामेंट ने दिए हैं विशेष अधिकार
देश सुरक्षा को जर्मनी बहुत ही गंभीरता से लेता है. वहां की सरकार भी जानती है कि उनकी ख़ुफ़िया एजेंसी किस तरह देश को बचाने के काम में जुटी हुई है. एजेंसी को जरूरी जानकारी एकत्रित करने में कोई परेशानी न तो, इसलिए उन्हें पार्लियामेंट (Link In English) ने कुछ विशेष अधिकार दिए हुए हैं. एजेंसी को अधिकार है कि वह किसी का भी फ़ोन टेप कर सकते हैं. किसी की निजी जानकारी लेने पर उन्हें किसी भी प्रकार से कोई कानूनी बाधा में फंसने की जरूरत नहीं है.
बी.एन.डी सालों से जर्मनी की रीढ़ बनकर उसके साथ रही हैं. देश की सुरक्षा के लिए यह अपना सब कुछ पीछे छोड़ आते हैं. इस एजेंसी के कारण ही जर्मनी और उसकी सेना आज फिर से दुनिया में अपना एक अलग मुकाम बनाने में कामयाब हो पाई है. यह दिन रात बस देश के लिए ही काम में लगी रहती है और अब जर्मनी का एक अहम हिस्सा बन चुकी है.
Web Title: BND German Intelligence Agency, Hindi Article
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