1947, 1965 और 1971 में लगातार हारने के बाद भी पाकिस्तान ने अपनी फितरत नहीं बदली और 1999 मेंं एक बार फिर से नापाक इरादों के साथ भारत पर हमला कर दिया था, वह भी पीठ पर वार करने की रणनीति के साथ! हालांकि इस युद्ध में भी भारतीय सेना ने उसे धूल चटा दी थी, लेकिन इसके बाबजूद इस युद्ध से बड़े पैमाने पर नुकसान झेलना पड़ा. एक ओर जहां भारतीय सेना के कई जवान शहीद हुए थे, वहीं दूसरी ओर लाहौर यात्रा के बाद भी कारगिल वापस मिलने पर उस समय के तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को भी सवालों के कटघरे मेंं खड़ा होना पड़ा था. तो आइये जानें कारगिल युद्ध से जुडे़ ऐसे ही कुछ विशेष पहलुओं को:
कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि
1999 में कश्मीर के कारगिल जिले में भारत-पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष हुआ, जिसे हम कारगिल युद्ध के नाम से जानते हैं. यह युद्ध इसलिए लड़ा गया क्योंकि पाकिस्तान की सेना ने कश्मीरी उग्रवादियों के साथ मिलकर भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की. इसमें वह कुछ हद तक कामयाब भी हो गए थे, लेकिन भारतीय सेना और वायुसेना ने मिलकर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया और जल्द ही पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर भारत का झंडा फहरा दिया. यह युद्ध परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ पहला सशस्त्र संघर्ष था.
India Pakistan Politics, Kargil War (Pic: scoopwhoop.com)
‘ऑपरेशन विजय’
मई 1999 में एक लोकल ग्वाले से मिली सूचना के बाद बटालिक सेक्टर में ले. सौरभ कालिया के पेट्रोल पर हमले ने उस इलाके में घुसपैठियों की मौजूदगी का पता दिया. शुरू में भारतीय सेना ने इन घुसपैठियों को जिहादी समझा और उन्हें खदेड़ने के लिए कम संख्या में अपने सैनिक भेजे, लेकिन प्रतिद्वंद्वियों की ओर से हुए जवाबी हमले और एक के बाद एक कई इलाकों में घुसपैठियों के मौजूद होने की खबर के बाद भारतीय सेना को समझने में देर नहीं लगी कि असल में यह एक योजनाबद्ध ढंग से और बड़े स्तर पर की गई घुसपैठ थी, जिसमें केवल जिहादी नहीं, पाकिस्तानी सेना भी शामिल थी. यह समझ में आते ही भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया, जिसमें एक बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक शामिल थे.
‘ऑपरेशन सफेद सागर’
थल सेना के सपोर्ट में भारतीय वायु सेना ने 26 मई को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ शुरू किया, जबकि जल सेना ने कराची तक पहुंचने वाले समुद्री मार्ग से सप्लाई रोकने के लिए अपने पूर्वी इलाकों के जहाजी बेड़े को अरब सागर में ला खड़ा किया. दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मार भगाया था और आखिरकार 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर भी जीत पा ली गई. यही दिन अब ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
युद्ध के ‘मास्टर माइंड’ थे मुशर्रफ
जानकार कहते हैं कि 1999 में भारत पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध के लिए पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ जिम्मेदार थे. इसका उल्लेख पाकिस्तान के एक रिटायर्ड कर्नल अशफाक हुसैन ने अपनी एक किताब ‘विटनेस टू ब्लंडरः कारगिल स्टोरी अनफोल्ड’ में किया. उन्होंने लिखा कि कारगिल युद्ध के कुछ वक्त पहले मुशर्रफ ने एक हेलिकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी और जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात बिताई थी. इसके बाद से बात साफ हो गई थी कि मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध में एक सक्रिय भूमिका निभाई थी.
बताते चलें कि लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) अजीज ने भी कारगिल युद्द के बारे में बात करते हुए कहा था कि मुशर्रफ ही भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए भी जिम्मेदार हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुशर्रफ और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पहले से इस लड़ाई के बारे में जानते थे.
Kargil War, Nawaz Sharif and Pervez Musharraf (Pic: herald.dawn.com)
अटल सरकार पर उठे सवाल
पड़ोसी होने के बावजूद पाकिस्तान से भारत के रिश्तों में हमेशा खटास ही रही. इस तनाव को कम करने के लिए कारगिल की जंग से ठीक पहले एक महत्वपूर्ण कोशिश उस समय के तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लाहौर यात्रा के रुप में की थी. इसी प्रयास के तहत 19 फ़रवरी 1999 को ‘सदा-ए-सरहद’ नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई. इस सेवा का उद्घाटन करते हुए वह प्रथम यात्री के रूप में पाकिस्तान भी गए, ताकि भारत पाक के संबंघ सुधर सके. अफसोस उनकी यह पहल बेकार रही, क्योंकि…
बाजपेयी जी के लाहौर यात्रा से लौटने के कुछ दिनों बाद ही पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाक सेना ने कारगिल क्षेत्र में हमला कर दिया. हालांकि अटल सरकार ने पाक को उसकी इस हरकत के लिए करारा जवाब दिया. इसी के साथ पाकिस्तान के साथ शुरु किए गए संबंध सुधार एक बार फिर शून्य हो गए.
कारगिल के बाद अटल जी को सवालों के कटघरे में खड़ा होना पड़ा, लोगों ने कहा कि उनको पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करना चाहिए था. उन्होंने ऐसे दुश्मन पर विश्वास किया, जो हमेशा से भारत की पीठ पर पीछे छुरा घोंपता आया है. लोगों ने यहां तक कहा कि इससे अधिक शत्रुता की भावना क्या हो सकती है कि एक ओर पाकिस्तान शांति के प्रयासों के लिए रचे ढोंग में लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर रहा था, तो दूसरी ओर वह कश्मीर को हथियाने की योजना बना रहा था.
सबसे बड़ी बात यह थी इससे पहले भी वह 1947, 1965 और 1971 में ऐसा कर चुका था, इसके बावजूद भारत दुश्मन की ढोंगभरी दोस्ती की चाल पर शिकार हो गया और मित्रता की आड़ में दुश्मन ने हम पर वार करने का दुस्साहस किया.
Atal Bihari Bajpai With Defence Minister & Indian Army (Pic: shlok.mobi)
जरा याद करो कुर्बानी
कारगिल के दौरान सेना के वीरों ने दुश्मन के हर वार का पलट कर जवाब दिया. वैसे तो इस युद्ध में शामिल हर एक जवान ने अपना सबकुछ लगा दिया, लेकिन कैप्टन अनुज नैय्यर, कैप्टन नीलकंठन जयचंद्रन नायर, ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी, गुरबचन सिंह सलारिया, ग्रिनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय, राइफ़लमैन जसवंत सिंह, कैप्टन विक्रम बत्रा, अर्जुन कुमार वैद्य, नंद सिंह, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला जैसे कुछ नाम हैं, जिनकी वीरती के किस्से आज भी लोगों की जुब़ा पर रहते हैं.
चलते-चलते…
- माना जाता है कि पाकिस्तान इस ऑपरेशन की 1998 से ही तैयारी कर रहा था. इस काम के लिए पाक सेना ने अपने 5000 जवानों को कारगिल पर चढ़ाई करने के लिए भेजा था.
- इस जंग के दौरान पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को पहले इस ऑपरेशन की खबर नहीं दी गई थी और जब इस बारे में उन्हें बताया गया तो उन्होंने इस मिशन में आर्मी का साथ देने से मना कर दिया था.
- यह युद्ध पाक सेना के लिए एक आपदा जैसा साबित हुआ था. इस युद्ध में पाकिस्तान के 2700 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे. कहा जाता है कि 1965 और 1971 की लड़ाई में भी पाकिस्तान का इतना नुकसान नहीं हुआ था.
- इस युद्ध में मिग-27 की मदद से उन स्थानों पर बम गिराए जहां पाक सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था. इसके अलावा मिग-29 करगिल में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ. इस विमान से पाक के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलें दागी गईं थीं.
- चूंकि पाकिस्तान 1998 में परमाणु हथियारों का परीक्षण कर चुका था, इसलिए खबर आई कि करगिल की लड़ाई उम्मीद से ज्यादा खतरनाक थी. कहा गया कि संभवतः पाक प्रधानमंत्री एवं सेना प्रमुख मुशर्रफ ने परमाणु हथियार के इस्तेमाल का मन बना लिया था, पर भारत की प्रतिक्रिया की कल्पना कर वह सहम गए थे.
लगातार मुंह की खाने का बाद भी समझ से परे है कि आखिर पाकिस्तान ने बार-बार भारत को युद्ध करने पर क्यों मजबूर किया? 1947, 1965, 1971 और 1999 की हार के बाद भी पाकिस्तान जिस तरह से लगातार सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करता आ रहा है, वह निश्चित तौर पर पाकिस्तान के स्वभाव को परिभाषित करता है. वह बताता है कि पाकिस्तान नहीं सुधरेगा पर शांति की बात करना भारत कैसे छोड़ दे भला?
Operation Vijay, Kargil War (Pic: newsnation.in)
Web Title: Kargil War between India and Pakistan, Hindi Article
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