कहते हैं कि जब कोई किसी से सच्चा प्रेम करता है, तो उसे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है. यूं तो आजकल प्रेम के किस्से आम हो चले हैं, लेकिन इसके प्रंसग हर एक काल में मिलते हैं. फिर क्या राजा, क्या प्रजा, सब किसी न किसी के प्रेम में रमे पाए गए.
आपने पृथ्वीराज सिंह चौहान का नाम सुना ही होगा, जिन्होंने बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़कर अपनी वीरता को प्रदर्शित किया था. यह वही पृथ्वीराज थे, जिन्होंने मोहम्मद गौरी को एक बार नहीं 17 बार परास्त किया और जिन्होंने अपने प्रेम के लिए दूसरे राज्य की सीमाएं लांघने में भी देरी नहीं की.
इस महान योद्धा की प्रेम कहानी सुन कर आप तड़प उठेंगे और कहेंगे कि इश्क हो तो ‘पृथ्वीराज-संयोगिता’ जैसा. आइये चलते हैं इनकी प्रेम कहानी की दुनिया में…
एक नज़र में दे बैठे एक-दूजे को दिल
सफ़र के दौरान, शादी समारोह में या फिर किसी अन्य मौके पर आज भी जब हम किसी आकर्षण से परिपूर्ण व्यक्ति विशेष को देखते हैं तो अपना दिल दे बैठते हैं. पृथ्वीराज चौहान के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
बात उन दिनों की है जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे थे. इसी समय उस समय के मशहूर चित्रकार पन्नाराय पृथ्वीराज चौहान समेत बड़े राजा-महाराजाओं के चित्र लेकर कन्नौज पहुंचे, जहां उन्होंने सभी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई.
पृथ्वीराज चौहान का चित्र इतना आकर्षक था कि सभी स्त्रियां उनके आकर्षण में बंध गयीं. सभी युवतियां उनकी सुन्दरता का बखान करते नहीं थक रहीं थीं.
Love Story of Prithviraj Chauhan and Sanyogita, (Pic: forums.com)
पृथ्वीराज के तारीफ की ये बातें संयोगिता के कानों तक पहुंची तो संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्र को देखने के लिए दौड़ी-दौड़ी चली आईं. चित्र देख पहली ही नज़़र में संयोगिता ने अपना दिल पृथ्वीराज को दे दिया. उनके दिल में घंटिया बजने लगी.
वह अब तय कर चुकी थीं कि शादी तो पृथ्वीराज चौहान से ही करेंगी. लेकिन किसी भी प्रेम कहानी में अगर विलन न हो तो वह कहानी जाने क्यों पूरी ही नहीं होती? पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी के विरोधी थे संयोगिता के पिता जयचंद.
महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में कट्टर दुश्मनी थी, इसलिए यह मिलन आसान नहीं था. पर कहते हैं कि प्यार अपना रास्ता निकाल ही लेता है. संयोगिता ने भी इस समस्या का तोड़ ढ़ूढ़ लिया था. उनके इस तोड़ का मुख्य पात्र बना चित्रकार पन्नाराय, जिसे पहले संयोगिता का एक सुंदर चित्र बनाना पड़ा, फिर उसे ले जाकर पृथ्वीराज चौहान को दिखाना पड़ा.
चित्र में संयोगिता के यौवन को देखकर पृथ्वीराज चौहान भी मोहित हो गए और उन्होंने भी एक पल में संयोगिता को अपना दिल दे दिया. संयोगिता का तीर निशाने पर लग चुका था, जिस कारण अब प्रेम की आग दोनों तरफ लगी गई थी. बस एक चिंगारी भर की देरी थी.
स्वयंवर ने डाला रंग में भंग
पृथ्वीराज चौहान के प्रेम की कहानी आगे बढ़ती, इसके पहले महाराजा जयचंद्र ने संयोगिता के लिए स्वयंवर का आयोजन करके रंग में भंग डालने का काम कर दिया. संयोगिता के स्वयंवर में विभिन्न राज्यों के राजकुमारों और महाराजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन पृथ्वीराज को आमंत्रण नहीं भेजा गया था.
पिता के इस व्यवहार से संयोगिता को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने स्वयंवर में मौजूद एक मूर्ति को पृथ्वीराज मानकर वरमाला डालने का फैसला कर लिया था.
Love Story of Prithviraj Chauhan and Sanyogita, (Pic: quora.com)
संयोगिता से पहली मुलाकात
संयोगिता और पृथ्वीराज ने कभी सोचा नहीं था कि उनकी मुलाकात कुछ इस तरह होगी. हुआ यह कि संयोगिता द्वारपाल की भांति खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति को ही वरमाला पहनाने के लिए आगे बढ़ती है वैसे ही अचानक मूर्ति की जगह पर स्वयं पृथ्वीराज चौहान आ खड़े हुए और माला उनके गले में चली गयी.
यह दृश्य देखने लायक रहा होगा! यह संयोगिता और पृथ्वीराज के प्रेम की पहली मुलाकात थी. दोनों की आंखों में प्रेम के मोती थे. यह देखकर पिता जयचंद बेटी संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़े, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कर पाते, पृथ्वीराज उनकी आंखों के सामने संयोगिता को लेकर भाग गये. आगे चलकर दोनों ने शादी कर ली.
ये इश्क नहीं आसां…
पृथ्वीराज और संयोगिता के प्रेम की कहानी बताती है कि क्यों किसी को लिखने की जरूरत पड़ी होगी कि ये इश्क नहीं आसां, इतना समझ लीजिये, एक आग का दरिया है, और डूब के जाना है… पृथ्वीराज संयोगिता को तो स्वयंवर से भगाकर ले जाने में कामयाब रहे, लेकिन इस कारण जयचंद उनके दुश्मन बन बैठे.
जयचंद ने पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए मोहम्मद गोरी से हाथ मिला लिया और उन्हें मारने की योजना बनाने लगे. पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को पहले ही युद्धों में 16 बार धूल चटायी थी, लेकिन हर बार उसे जीवित छोड़ दिया था. गोरी ने अपनी हार का और जयचंद ने अपनी दुश्मनी का बदला लेने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला लिया.
प्रेम ने बंधक तक बना डाला
संयोगिता से प्रेम विवाह के कारण जयचंद ने अपना सैन्य बल मोहम्मद गोरी को सौंप दिया, जिसके फलस्वरूप युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को बंधक बना लिया गया था.
बंधक बनाते ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को गर्म सलाखों से जला दिया और कई अमानवीय यातनाएं भी दी. अंतत: मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को मारने का फैसला कर लिया था.
Love Story of Prithviraj Chauhan and Sanyogita, (Pic: historydiscussion.net)
दोस्त ने याद दिलाया हुनर
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान.” मित्र चंदबरदाई की इन पंक्तियों ने अंतिम समय में पृथ्वीराज चौहान में जान फूंकी और वह मुहम्मद गौरी को मारने में कामयाब रहे.
हुआ यूं था कि इससे पहले कि मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज को मार डालता, राजकवि चंदबरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज की एक खूबी बतायी कि पृथ्वीराज चौहान, शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर है. वह आवाज सुन कर तीर चला सकते हैं.
यह बात सुन मोहम्मद गोरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया, जिसके फलस्वरूम वह मारा गया. गौरी के मारे जाने के बाद उसकी सेना से बचने के लिए चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे के पेट में कटार भोंक कर आत्म बलिदान कर दिया.
संयोगिता का दर्द
संयोगिता को जब तक इस सबकी जानकारी हुई, बहुत देर हो चुकी थी. वह पृथ्वीराज को खो चुकीं थी. वह इतने वियोग में थीं कि अपना दर्द किसी से बयां नहीं कर सकती थीं.
उनकी जीने की आस खत्म हो चुकी थी. जीती भी किसके लिए पिता पहले ही दुश्मन हो चुके थे और पति को उनके प्यार के चलते अपने प्राण गवांने पड़े. ऐसे में उन्होंने सती होने का फैसला करते हुए खुद का जीवन समाप्त कर लिया और इतिहास के पन्नों में अपने और पृथ्वीराज की प्रेम को कहानी के रूप में अमर कर दिया.
Love Story of Prithviraj Chauhan and Sanyogita, (Pic: exoticindiaart.com)
संयोगिता और पृथ्वीराज जैसे प्यार के किस्से इस जहाँ में मिलने मुश्किल हैं. अक्सर महान योद्धा अपने जीवन के अधिकतर हिस्से युद्ध में गुजार देते हैं, किन्तु पृथ्वीराज चौहान ने प्रेम के मामले में लाभ हानि की परवाह किये वगैर नारी सम्मान और उसके प्रेम की खातिर खुद की बलि दे दी.
हालाँकि, जयचंद को इतिहास ने माफ़ नहीं किया और आज भी किसी गद्दार को ‘जयचंद’ कहकर ही बुलाया जाता है.
Web Title: Love Story of Prithviraj Chauhan and Sanyogita, Hindi Article
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