1998 की बात है. कक्षा आठवीं में कई मेरे दोस्त मूवी देखने का प्लान बना रहे थे और उस समय बॉबी देओल और प्रीति जिंटा अभिनीत ‘सोल्जर’ रिलीज हुई थी. दोस्तों ने मुझे भी बोला कि चलते हैं मूवी देखने तो मैंने मना कर दिया. इसके पीछे ऐसा नहीं था कि मुझे सोल्जर पसंद नहीं थी या मैं एक्शन मूवी नहीं देखना चाहता था, बल्कि मात्र कुछ ही दिनों बाद ‘मेहँदी’ फिल्म आ रही थी. दहेज प्रथा के ऊपर बनी इस फिल्म में नई नई स्टार बनीं रानी मुखर्जी मुख्य भूमिका में थीं.
मेहंदी देखने गए मेरे दोस्तों ने मेरा मजाक उड़ाया था, पर उसी वक्त से एक सोच ऐसी रही है कि फिल्मों में कोई न कोई सामाजिक संदेश अवश्य होना चाहिए. मनोरंजन के लिए फिल्में अवश्य होती है किंतु इतने बड़े पैमाने पर उसमें एनर्जी लगती है, निर्माण में पैसा लगता है और इतने ही बड़े पैमाने पर लोग उसे देखते भी हैं तो कहीं ना कहीं उसकी एक सोशल रिस्पांसिबिलिटी भी होती है. हालाँकि, सिर्फ सन्देश के नाम पर कई फिल्में बोर भी खूब करती हैं. शुरुआत से ही उन फिल्मों का दीवाना हो जाता हूँ, जिसमें मनोरंजन के साथ सन्देश भी हों. तब बात और ख़ास हो जाती है, जब यह सन्देश कहानी की आत्मा के साथ घुले मिले हों!
हालाँकि, फिल्मों के चलने के बारे में कहा गया है कि वह सिर्फ तीन चीजों से चलती है “एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट”. यह बात भी अपनी जगह सही है, किन्तु सार्थक सन्देश से वह फिल्म लंबे समय तक प्रभावी रहती है और कई बार तो वह ‘कालजयी’ हो जाती है.
आमिर खान की इस संदर्भ में बात की जाए तो उनकी लोकप्रियता का कोई छिपा फैक्टर नहीं है, बल्कि सामाजिक मुद्दों की बात फिल्मों के माध्यम से उठाने के लिए ही उन्हें जाना जाता है. हाल के दशक में आमिर को आप निरर्थक फिल्में करते हुए नहीं देख सकते हैं. कम से कम मुझे तो ध्यान नहीं है कि हाल के दिनों में मैंने उनकी कोई अनाप-शनाप फिल्म देखी हो. अब कोई ऐसा कहे कि आमिर की फिल्मों में एंटरटेनमेंट नहीं होता है तो यह गलत तथ्य होगा. निश्चित रुप से इंटरटेनमेंट उसमें भी होता है, पर सन्देश के साथ!
Phillauri, Film Review in Hindi, Amir Khan (Pic: upperstall.com)
एंटरटेनमेंट का मतलब मैं कुछ कुछ स्वाद से जोड़ता हूं. यदि आप कितनी भी बढ़िया रेसिपी का खाना रोज-रोज खाएं, तो उसमें आपको स्वाद आना कम हो जायेगा. यहाँ, चेंज का मतलब एंटरटेनमेंट हुआ न! बॉलीवुड में भी जो लोग सफल हुए हैं, वह चेंजिंग से ही सफल हुए हैं. आप चाहे एंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन की बात करें, चाहे राजेश खन्ना की अथवा किसी और सुपरस्टार की, सभी के दौर की फिल्मों में बदलाव हुए हैं.
सच कहूँ तो अनुष्का शर्मा का मैं कोई फैन नहीं था, लेकिन पिछले दिनों से उन्होंने मुद्दों पर आधारित फिल्मों के निर्माण में रुचि ली है. एक बढ़िया फिल्म निर्मात्री के तौर पर कहानियों का उनका चयन लाजवाब दिखता है. एन एच 10 के अलावा उनकी हालिया रिलीज फिल्म फिल्लौरी की बात करें तो यह फिल्म देखने के बाद मुझे कई ऐसे सार्थक सन्देश दिखे, जिसे फिल्लौरी की कहानी में पिरोकर दर्शकों के सामने ख़ूबसूरती से रखा गया है. यह फिल्में देखने के बाद आप जान पाएंगे कि फिल्म के राइटर, निर्देशक और निर्माताओं ने टीम मेंबर्स के साथ बढ़िया वर्क किया है. पंजाबी अभिनेता दिलजीत दोसांझ और ‘लाइफ ऑफ पाई’ के अभिनेता सूरज शर्मा सहित दुसरे कलाकारों ने सटीक अभिनय किया है और फिल्म में कोई सीन आपको फालतू नहीं लगता.
हालाँकि, शुरुआत में जब दो कहानियां स्विच करती हैं, तो वह मुझे कनेक्टेड नहीं लगा, पर जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती गयी, फिल्म मुझे रोमांचित करती गयी. इस पारिवारिक फिल्म में संदेशों की बात करूं तो पहला मुद्दा महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़ा दिखा. आज 2017 में भी अगर एक महिला शौकवश या प्रोफेशनली कुछ करना चाहती है, तो उसकी राह में कई रूढ़ियाँ रूकावट बन जाती हैं, तो 1919 की स्थितियों की सहज ही कल्पना की जा सकती है.
फिल्लौरी में ख़ूबसूरती से दिखलाया गया है कि पहले महिला छिप कर ही सही काम करती है और बाद में मशहूर भी होती है. दूसरा सन्देश इसमें हॉनर से जुड़े विवादों के प्रति भी दिया गया है. साफ़ सन्देश है कि घर की बहन बेटियों के प्रति संवेदनशील सोच रखने के बावजूद उनके परिवार वालों को उसकी सोच की कद्र करनी चाहिए. मैं फिर दुहराता हूँ कि यह सारे मेसेज इतनी ख़ूबसूरती से फिल्म में हैं कि बिना दिमाग पर ज़ोर डाले फिल्म और उसके सन्देश आपके दिल को छू लेंगे. तीसरा सन्देश दिखा कि आज के समय गाने के नाम पर हम कुछ भी हम सुन लेते हैं. गाने की गंभीरता को कम कर रहे लोगों पर फिल्म का एक महत्वपूर्ण दृश्य चोट करता है. फिल्म के क्लाइमेक्स में जिस तरह से आज़ादी की लड़ाई की चर्चा की गई है, वह दृश्य भावुक कर देने वाला है. आखिर आजादी हमें किस कीमत पर मिली, हमारी पुरानी पीढ़ियों ने हमारे लिए क्या किया, यह सारी बातें बिना बोर किये यह फिल्म बता देती है. कई लोग इस दृश्य पर रो पड़ेंगे, इस बात में दो राय नहीं! अगर हम याद नहीं रखते हैं कि हमारी पुरानी पीढ़ियों का हमारे लिए क्या योगदान है तो यह जड़ से कटने वाली बात होगी.
पूरी कहानी यहाँ बताने का कोई अर्थ नहीं है, पर एंटरटेनमेंट की खूबसूरत चासनी में जिस तरह सामाजिक मुद्दे पिरोए गए हैं, वह लाजवाब है. बाकी अनुष्का रुपी भूतनी की खूबसूरती और फिल्म की कहानी में नयापन आपको कतई हिलने नहीं देगा. अब यह मत पूछियेगा कि मैं अनुष्का का फैन हुआ कि नहीं! 🙂
Web Title: Phillauri, Film Review in Hindi
Keywords: Bollywood, Social Message, Anushka Sharma, Film Production, Film Review, Film Story, Roar Hindi Exclusive
Featured image credit / Facebook open graph: dnaindia.com