आगामी कुछ दिनों में विश्व पर्यावरण दिवस आने वाला है. उम्मीद की जा रही थी कि दुनिया के सारे देश एक पंक्ति में खड़े होकर इस दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठायेंगे. ऐसे में यह खबर दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को अलग करने का ऐलान कर दिया है. अमेरिका का इस तरह से पीछे हटना पर्यावरण संरक्षण की कोशिश को एक बड़ा झटका माना जा रहा है.
हमारी धरती ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां जीवन संभव बताया जाता है. फिर इसके लिए घातक बने कारणों को नज़रअंदाज करना कितना सही है? जवाब कुछ भी हो, पर यह निश्चित रुप से शुभ संकेत नहीं है. जरा सोचिए, अगर धरती पर जीवन का संकट आ जाए तो क्या होगा? यकीन मानिए हमारी धरती पर ऐसे संकट न केवल मौजूद हैं, बल्कि लगातार बढ़ भी रहे हैं. यकीन नहीं तो आईये ज्यादा दूर न जाते हुए देश की राजधानी दिल्ली का ही उदाहरण लेते है:
प्रदूषण में पहले पायदान पर दिल्ली
कुछ समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण को लेकर एक सर्वेक्षण किया, जिसमें विश्व भर के 1600 शहरों के सैम्पल लिए गए. इसके बाद जो सूची जारी की गई वह चौकाने वाली थी. इसमेंं देश की राजधानी दिल्ली सबसे पहले पायदान पर पाई गयी. खबरों की माने तो दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण यहां का ट्रैफिक और तेजी से बढ़ती जनसंख्या है.
इसके साथ ही साथ दूसरे राज्यों के औद्योगिक क्षेत्रों के कल-कारखानों से निकलने वाला धुंआ और जहरीली गैस भी है, जो पूरी दिल्ली के वातावरण को जहरीला बना रही है. हालांकि दिल्ली सरकार ने इस पर नियंत्रण के उद्देश्य से ‘ऑड एंड इवन जैसे फार्मूले को लागू किया, लेकिन वह महज एक शो पीस फॉर्मूला बनकर रह गया.
Pollution in Delhi (Pic: mapsofindia.com)
रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली की हवा में पीएम-10 की मात्रा 225 माइक्रोग्राम प्रति मिलीमीटर तक पहुंच गई है, जो मानक से कही अधिक है. बताते चलेंं कि पीएम 10 की मात्रा हवा में ज्यादा बढ़ती है तो इंसानों में फेफड़े के कैंसर, दिल का दौरा, स्ट्रोक और सांस की गंभीर बीमारी की आशंका बढ़ जाती है. सांस की बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए तो यह जहर जैसी है.
जलवायु परिवर्तन है बड़ी चुनौती
कहा जाता है कि अब अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो वह पानी के लिए होगा. आखिर कौन है इस स्थित के लिए जिम्मेदार? कहीं न कहीं धरती पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार मानव जाति ही है. इसने आधुनिक जीवन जीने के चक्कर में सामाजिक जिम्मेदारियों को पीछे छोड़ दिया है. आज दुनिया जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे धरती पर खतरा बढ़ता चला जा रहा है.
उद्योगों से निकने वाला मलबा और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण भूमंडलीय तापमान तेजी से बढ़ रहा है. इसके कारण प्रकृति का मौसम चक्र भी बदल गया है. अब वर्षा, सर्दी, गर्मी का कोई निश्चित समय नहीं रहा है. जाहिर तौर पर यह शुभ संकेत नहीं है.
दुनिया में बढ़ती जनसंख्या और तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण दिन प्रतिदिन प्रदूषण की समस्या बड़ी विकराल होती चली जा रही है. जिस तरह से आज ठोस अपशिष्ट पदार्थो की मात्रा बढ़ रही हैं, उससे निपटना दुनिया के विकासशील देशों के लिए मुश्किल काम हो गया है.
ग्रीन हाउस गैसों के दुष्प्रभाव से निपटने के लिए तमाम देश बैठकें तो जरूर करते हैं, पर उसका निष्कर्ष परिणाम के रूप में क्या आ रहा है. यह एक बड़ा सवाल है. क्योंकि अगर इसके सकारात्मक परिणाम होते तो, जलवायु परिवर्तन की चुनौती इस तरह न बढ़ती नजर आती.
Pollution is harmful to the Earth (Pic: times)
पॉलीथीन का प्रयोग बेहद घातक
समाज में पॉलीथीन का बढ़ती प्रयोग मानव जाति की सबसे बड़ी परेशानी बन गया है. यह नष्ट न होने के कारण भूमि की उर्वरक क्षमता को समाप्त कर रही है. इसके जलाने से निकलने वाला धुंआ वायुमंडल को बड़ा नुकसान पंहुचा रहा है. पॉलीथीन के कचरे से देश भर में हर साल लाखों जानवर मौत के मुंह में जा रहे हैं. लोगों में तरह-तरह की बीमारियां फ़ैल रही हैं.
प्लास्टिक में इस्तेमाल होने वाले कुछ ऐसे रसायन हैं, जो शरीर में डायबिटीज व लिवर एंजाइम को नुकसान पहुंचाते हैं. पॉलीथीन का इस्तेमाल करके हम सिर्फ पर्यावरण को ही नहीं बल्कि कई गंभीर बीमारियों को भी निमंत्रण दे रहे हैं. इन्हें नालियों में फेक देने से नालियां जाम हो जाती हैं. इसके परिणाम स्वरुप कालरा, टाइफाइड, डायरिया जैसी कई बीमारियां जन्म लेती हैं. जाहिर तौर पर यह विषय पर्यावरण से ही जुड़े हैं, तो इनका निदान भी हमें ही करना होगा.
यह तरीके हो सकते हैं उपयोगी
- वनों की कटाई का विरोध और वृक्षारोपण के लिए जागरुक करें.
- कम वाहनों का इस्तेमाल करें, खासकर शहरों में. .
- हम प्लास्टिक के थैलों का उपयोग को बंद कर सकते हैं.
- हमें कूड़े कचरे को एक जगह पर फेंक सकते हैं, जबकि जैविक कूड़े और अन्य वेस्टेज को अलग-अलग डस्टबिन में डाल सकते हैं.
- सड़क, पार्क और दूसरी जगहों से गंदगी हटाने में भाग ले सकते हैं.
- जागरुकता अभियानों में बढ़-चढ़कर भाग ले सकते हैं.
दिल्ली तो महज एक उदाहरण है. असल में प्रदूषण वर्तमान समय में एक बड़ी समस्या है, जिससे लगभग भारत के ज्यादातर शहर जूझ रहे हैं. हां प्रदूषण का प्रतिशत विभिन्न शहरों में कम ज्यादा जरुर हो सकता है, लेकिन शायद ही कोई देश या शहर ऐसा होगा जहां प्रदूषण ने अपने पैर न पसारे हों, किन्तु इसके बावजूद अमेरिका जैसे देशों के द्वारा लेने जाने वाले फैसले कही न कही बड़े प्रश्न चिन्ह खड़े करते हैं.
Plastic Pollution (Pic: plasticpollutioncoalition.org)
हमें चाहिए कि इस बार जब हम पर्यावरण दिवस मनाएं तो कम से कम एक ऐसा प्रण अवश्य लें, जो धरती और पर्यावरण के लिए लाभदायक हो. कुछ ऐसे ही हमारी आने वाली पीढ़ी इस धरती पर सुरक्षित रह सकेगी, अन्यथा अगर ऐसी ही लापरवाही जारी रही तो दिल्ली क्या, दुनिया के किसी भी शहर में जीवन बिताना दिन-ब-दिन कठिन होता चला जाएगा.
Web Title: Pollution is harmful to the Earth, Hindi Article
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