किसी भी देश की खूफिया एजेंसी उसकी बड़ी ताकत होती है. वह अपने देश की सुरक्षा की खातिर कुछ भी करने को तैयार रहती है. ताकि, दुश्मन को नापाक मंसूबों का मुंहतोड़ जवाब दे सके. इसी कड़ी में रुस के पास अपनी खास खुफिया एजेंसी है, जिसे ‘गरु’ कहा जाता है. यह रुस की अन्य एजेंसियों से इतर दूसरे देशों पर अपनी बारीक नजर रखती हैं. तो आईये जरा नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं इससे जुड़े हुए पहलुओं को:
सेना की मजबूती के लिए हुआ गठन
रूस जमाने से ही अपनी सेना की मजबूती के लिए काम करता रहा है. फिर चाहे आधुनिक हथियारों की बात रही हो या फिर उनके प्रशिक्षण की. यही कारण है आज रुस की सेना दुनिया की ताकतवर सेनाओं में गिनी जाती है. लेकिन कहते हैं न जो जिसकी सबसे बड़ी ताकत होती है, वह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन सकती है. रुस इस बात को अच्छे से समझता था. इसलिए सालों पहले उसने अपनी सेना को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए एक अलग संगठन बनाने का मन बनाया. इस संगठन को बनाने का बड़ा कारण यह भी था कि रुस सेना संबंधी किसी भी जानकारी को दूसरे देशों से बचाना चाहता था.
1800 के आसपास इस संगठन का मसौदा तैयार करते हुए सेना अध्यक्ष माइकल बर्कले ने सरकार के सामने अपना प्रस्ताव रखा. उनका प्रस्ताव पसंद किया गया और 1810 में एक खास खूफिया एजेंसी का गठन कर दिया. शुरुआती कुछ सालों में इसका कुछ खास उपयोग नहीं दिखा, लेकिन बाद में यह सेना की रीढ़ बनी.
धीरे-धीरे यह काम में माहिर हुई तो इसे ‘स्पेशल ब्यूरो’ कहा गया. वक्त के साथ-साथ इसके कई नाम रखे गये. 1906 में स्थाई तौर पर इसको ‘मेन इंटेलीजेंस डायरेक्टोरेट’ नाम दिया गया, जिसे ‘गरु’ के नाम से भी पुकारा जाता है. 1992 में इसे रूस के रक्षा मंत्रालय का अभिन्न अंग बना दिया गया और फिर इसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
बड़ी जिम्मेदारियों का निर्वहन
इस एजेंसी के लोगों को बहुत सी जिम्मेदारी दी जाती है. कहने को तो यह सेना की जानकारी को सुरक्षित रखती है. पर इसके अलावा भी इनके पास कई अन्य काम होते हैं, जैसे-राजनीतिक जानकारियों को सुरक्षित रखना, देश के वैज्ञानिक जानकारी को दुश्मन की नजर से बचा कर रखना आदि.
‘गरु’ ने सेना में रहकर अपनी एक अलग सेना बना ली है. इस फ़ोर्स को ‘स्पेत्सनाज़’ कहा जाता है. ‘गरु’ को कभी-कभी कुछ मुश्किल हालातों से गुजरना पड़ता है. उस समय यह अकेले सब कुछ नहीं कर सकते, ऐसे में उन्हें अपनी इस स्पेशल फ़ोर्स की मदद लेनी पड़ती है. इसे रूस की सबसे पहली स्पेशल फ़ोर्स माना जाता है. सेना से अलग यह पूरी तरह से ‘गरु’ के कहने पर ही काम करते हैं. ‘गरु’ से आया एक आदेश सुनते ही यह लोग दौड़ जाते हैं.
2010 में सेना ने इन्हें थोड़े समय के लिए अलग कर दिया था. इस फ़ोर्स को थल सेना के साथ जोड़ दिया गया था. हालांकि, यह ज्यादा दिन तक एक-दूसरे के साथी नहीं रहे थे. 2013 में दोबारा यह ‘गरु’ के साथ जोड़ दिए गए. इस फ़ोर्स को दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनाया गया था. वर्तमान में यह स्पेशल फ़ोर्स की तरह हर तरह के खुफिया मिशन में अपनी भूमिका अदा करते हैं और ‘गरु’ का अहम अंग हैं.
Russian Secret Agency, (Pic: anthropoliteia.net)
सीक्रेट और स्वतंत्र होते हैं इनके मिशन
कहा जाता है कि यह किसी भी स्थिति में अपनी जानकारी किसी से साझा नहीं करते. हालात चाहे जो हो यह अपने काम से पीछे नहीं हटते हैं. यह रुस में सक्रिय अन्य एंजेसियों जैसे ‘केजीबी’ के रास्ते में नहीं आते और न ही वह इनके काम में टांग अड़ाती है. सरकार ने इन्हें ऐसा करने की सख्त हिदायत दे रखी है. ‘गरु’ अपने काम की रिपोर्ट सिर्फ अपने राष्ट्रपति को देती है.
Russian Secret Agency, (Pic: spoilertv.com)
मुश्किल होता है ‘गरु’ का हिस्सा बनना
‘गरु’ अपने जासूस और कर्मचारियों को फ़ौज से चुनता है. अधिकतर लोगों को तो यह सेना की ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद ही अपने साथ जुड़ने का मौका दे देता है. वैसे सुनने में तो यह आसान लगता है, लेकिन हकीकत तो यह है कि ‘गरु’ का हिस्सा बनने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है.
उम्मीदवारों को अपने साथ जोड़ने की जो सबसे पहली चीज ‘गरु’ मांगता है वह है पढाई. उनका मानना है कि पढ़ने वाले व्यक्तियों में सीखने की क्षमता तेज होती है. इसलिए उन्हें पहला मौका दिया जाता है. चुनाव की प्रक्रिया के बाद चयनित लोगों को कड़ी ट्रेनिंग से होकर गुजरना पड़ता है. कहते है यह समय इतना कठिन होता है कि बहुत कम लोग आगे जा पाते हैं.
जिस समय इनकी ट्रेनिंग चल रही होती है. उसी समय ‘गरु’ के लोग किसी और काम में भी लगे होते हैं. वह लोग इन उम्मीदवारों की छानबीन करते हैं. वह यह पता लगाते हैं कि इन्होंने जो भी जानकारियां दी हैं, वह सच हैं भी या नहीं.
आखिरी पड़ाव में सभी कैंडिडेट्स को दूसरे देशों की भाषा सिखाई जाती है. रूस में अपने देश की भाषा को छोड़ कोई और भाषा कम ही बोली जाती है, इसलिए काफी सारे उम्मीदवारों के लिए नई भाषा सीखना मुश्किल होता है. विदेश जाने से महीने भर पहले इनका एक बार और टेस्ट होता है. उस टेस्ट में अगर इनमें थोड़ी सी भी कमी दिखाई पड़ती है, तो इन्हें बाहर कर दिया जाता है.
Russian Secret Agency, (Pic: euobserver.com)
यह दुनिया के शक्तिशाली देश रूस की खुफिया एजेंसी ‘गरु’ से जुड़े कुछ पहलू भर हैं. ऐसी ढ़ेर सारी चीजें और हो सकती हैं, जो इस एजेंसी को दुनिया की बेहतर एजेंसियों की सूची में खड़ा करती हैं. भारत की ‘रॉ’ की तरह यह एजेंसी भी तमाम गुप्त अभियानों को अंजाम दे चुकी है.
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