एक जमाना हुआ करता था, जब हमें अपनी जरुरत की चीजें खरीदने के लिए बाजार जाना पड़ता था. अब वक्त बदला तो जमाना भी बदल गया. आजकल बाजार हमारे जेब में रहता है. इंटरनेट के बढ़ते चलन में लोग ऑनलाइन शॉपिंग करना ज्यादा पसंद करते हैं. ऐसे में यह सवाल अक्सर चर्चा में आ ही जाता है कि इसको शुरु किसने किया? इसका जवाब भी लगभग सभी के पास मिल जाता है. जी हां, भारत में बड़े पैमाने पर इसकी शुरुआत का श्रेय सचिन बंसल को जाता है.
उन्होंने ही ‘फ्लिपकार्ट’ बनाकर ऑनलाइन बाजार के क्षेत्र में क्रांति लिखने का काम किया. पर क्या आप जानते हैं कि यह कंपनी महज 4 लाख रुपए से शुरु हुई थी? ऐसे ही अन्य दिलचस्प पहलुओं के लिए पढ़िए हमारी यह खास पेशकश:
आईआईटी दिल्ली में ‘डिजिटल दुनिया’ को जाना
‘फ्लिपकार्ट’ बनाने वाले सचिन चंडीगढ़ के रहने वाले हैं. पिता कारोबारी थे, इसलिए आर्थिक रूप से कभी कोई परेशानी नहीं हुई. स्कूल के शुरुआती दिनों से ही सचिन टॉपर रहे. इस कारण उन्होंंने बारहवीं के बाद इंजीनियरिंग को चुना. आईआईटी का एंट्रेंस क्वालीफाई करने में सफल रहे तो आईआईटी दिल्ली ने उनका स्वागत किया.
आईआईटी का माहौल उनके लिए एकदम अलग था. यहीं सचिन ने डिजिटल दुनिया के तेजी से बढ़ते स्वरुप को देखा और उसको जाना. धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी बढ़ी तो वह जानने लगे कि कैसे दुनिया में टेक्नोलॉजी अपना राज कर रही है. सचिन के लिए यह दुनिया किसी सागर की तरह थी, जिसमें वह डूबते जा रहे थे. वक्त इतनी तेजी से निकला कि उन्हें पता ही नहीं चला. उनका कॉलेज ख़त्म हो चुका था. वह भी अपने अन्य दोस्तों की तरह नौकरी की खोज में निकल पड़े.
9 से 5 की नौकरी रास नहीं आई तो…
सचिन अपनी दिलचस्पी के हिसाब से नौकरी ढूंढ़ने में कामयाब रहे. ऑनलाइन शॉपिंग की एक बड़ी कंपनी ‘एमाज़ॉन.कॉम’ ने उन्हें नौकरी के लिए ऑफर किया था. एक मोटी सैलरी के साथ उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की. कुछ दिन तो सब ठीक-ठाक चला फिर उनका मन उचटने लगा. वह अपने काम से संतुष्ट नहीं थे. 9 से 5 की नौकरी उन्हें बोझ सी लगने लगी थी. दिन भर ऑफिस में बैठकर सॉफ्टवेयर पर काम करना उन्हें अब बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. वह बस इसी सोच में पड़े थे कि क्या किया जाए?
एक दिन अचानक उनके दिमाग में आया कि जो काम वह एमाज़ॉन के लिए कर रहे हैं, क्या वह खुद के लिए ऐसा काम नहीं कर सकते. हालांकि उन्होंने जल्दबाजी नहीं की और करीब साल भर तक वह एमाज़ॉन से जुड़े रहे. जब उन्हें यकीन हो गया कि वह अब खुद के लिए कुछ कर सकते हैं, तो उन्होंने एमाज़ॉन को छोड़ दिया. यह कदम उनके लिए गलत भी हो सकता था. पर उन्होंंने अंजाम के बारे में न सोचकर आगे बढ़ना उचित समझा.
Sachin Bansal Flipkart Owner Story (Pic: ibtimes.co)
दोस्त बना साथी तो बन गई ‘फ्लिपकार्ट’
एमाज़ॉन से जॉब छोड़ कर सचिन अपने सपने को पूरा करने निकल पड़े थे. यह काम अकेले का नहीं था. इसके लिए उन्हें किसी खास साथी की जरुरत थी. उन्होंने थोड़ा गौर किया तो उनका ध्यान अपने दोस्त बिन्नी बंसल पर गया. बिन्नी एमाज़ॉन में सचिन के साथी हुआ करते थे और आईआईटी दिल्ली में सहपाठी भी थे. इस लिहाज से बिन्नी सचिन के लिए परफेक्ट मैन थे. उन्होंने देर न करते हुए बिन्नी से अपने प्लान को शेयर किया. प्लान शानदार था, इसलिए बिन्नी भी साथ हो लिए.
बिन्नी के साथ से सचिन के हौसलों को एक नई उड़ान मिली. दोनों के पास बचत के कुछ रूपए थे, जिनसे वह वेबसाइट शुरू कर सकते थे. उन्होंने खूब सोचा कि आखिर हम वेबसाइट पर बेचेंगे क्या? क्योंकि पैसों की कमी थी. कोई भी महंगी चीज वह नहीं बेच सकते थे, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह शुरुआत में किताबें बेचेंगे. आखिरकार सितम्बर 2007 को सचिन और बिन्नी ने मिलकर ‘फ्लिपकार्ट’ को शुरु कर दिया.
स्ट्रगल के दिन में नहीं मानी हार
शुरुआत में इन दोनों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ी. सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि कोई भी किताब बेचने वाला फ्लिपकार्ट के साथ जुड़ने को तैयार ही नहीं था. कुछ वक़्त गुजरा और थोड़े पैसों का इंतजाम हुआ, तो उन्होंने फ्लिपकार्ट को एक कंपनी का दर्जा दिलवा दिया. हालांकि इससे कोई खास असर नहीं दिख रहा था. वह निराश होते जा रहे थे. ऐसे में उन्हें मिले पहले ऑर्डर ने उन्हें फिर से ऊर्जावान बना दिया.
फ्लिपकार्ट के पास तब तक डिलिवरी के कोई साधन नहीं थे. वह खुद ही ऑडर देने गए. इस तरह से फ्लिप्कार्ट ने अपना पहला ऑडर किया. इसी तरह चलता रहा और फ्लिप्कार्ट एक साल की हो गई थी. बावजूद इसके बाजार में वह अपनी पहचान नहीं बना पाई थी. सचिन और बिन्नी किताब विक्रेताओं के बीच अपना नाम बनाने के लिए अब कंप्यूटर के पीछे से हटकर सड़कों पर आ गए थे. उन्होंने फ्लिपकार्ट के इश्तिहार बनाए. बंगलौर की किताब की दुकानों पर जा-जाकर खुद इन इश्तिहारों को बांटा. थोड़ी निराशा के बाद दोनों की मेहनत ने रंग दिखाना शुरु कर दिया.
Sachin Bansal Flipkart Owner Story (Pic: katcentre)
मेहनत रंग लाई तो आए अच्छे दिन
सचिन और बिन्नी को अपनी मेहनत का फल थोड़े ही समय में मिल गया. उन्हें पहला निवेशक मिल गया था. यह निवेशक इनकी कंपनी में एक मिलियन लगाने को तैयार था. जैसे ही निवेशक ने पैसे लगाए तो मानो इनके दिन ही बदल गए. पैसे मिलते ही अपने पहले साल में फ्लिप्कार्ट ने उम्मीद से ज्यादा प्रॉफिट करके दिखा दिया.
2010 में फ्लिपकार्ट भारत का सबसे बड़ा ऑनलाइन बुकस्टोर बन गया. इसके बाद इनके लिए निवेशकों की लाइन लग गई. लोग पागल हो रहे थे, फ्लिपकार्ट पर अपना पैसा लगाने के लिए. देखते ही देखते फ्लिपकार्ट बड़ा होने लगा. अब इस पर किताबों के साथ-साथ मोबाइल भी बिकने लगे. फ्लिपकार्ट तेजी से बढ़ता गया और धीरे-धीरे इन्होंने कई सारी छोटी-छोटी ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइटोंं को भी खरीद लिया. इसी के साथ फ्लिपकार्ट ने अपनी वेबसाइट पर अब इलेक्ट्रॉनिक और घरेलू चीजें भी बेचनी शुरू कर दी.
सबको पीछे छोड़ आगे बढ़ते गए
किसी को पता भी नहीं चला और फ्लिपकार्ट देखते ही देखते इतनी बड़ी बन गई कि सब पीछे रह गए. अभी तक फ्लिपकार्ट ने बस छोटी-छोटी कंपनी ही खरीदी थी, लेकिन अब उसका दायरा बढ़ने लगा था. उसने अपने प्रतिद्वंदी वेबसाइट ‘मिन्त्रा’ को खरीद लिया. मिन्त्रा कपड़ों की एक बहुत बड़ी वेबसाइट थी. उसे खरीदकर फ्लिपकार्ट ने कपड़ों के मार्केट पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया.
Sachin Bansal Flipkart Owner Story (Pic: techstory.in)
किसे पता था कि सचिन बंसल का एक सपना भारत में इतना बड़ा बदलाव ला देगा. ‘फ्लिपकार्ट’ की इस कामयाबी के पीछे उनका बहुत बड़ा हाथ है. जिस समय भारत में लोग इंटरनेट से भी पूरी तरह से रूबरू नहीं हुए थे. उस वक़्त उन्होंने इसके उपयोग की कल्पना भारत में कर ली थी. वह चाहते तो आज भी एमाज़ॉन में काम कर रहे होते, लेकिन उन्होंने अपने दिल की सुनी और आज उसी के कारण इस मुकाम पर पहुंचे हैं. युवा इन प्रतिभाओं से प्रेरणा ले सकते हैं.
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