यूं तो खेल जगत में कीर्तिमान रचने वाले नामों की एक लंबी फ़ेहरिस्त भारत के पास है, लेकिन इस सूची में एक नाम ऐसा है, जिसकी दादी उसके पैदा होने पर सिर्फ इसलिए उसका मुंह नहीं देखना चाहती थीं, क्योंकि वह लड़की थी. हम बात कर रहे हैं हरियाणा में जन्मी साइना नेहवाल की, जिन्होंने अपने दम पर भारतीय बैडमिंटन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. उन्होंने ओलंपिक खेलों में बैडमिंटन का पहला पदक भारत के नाम किया तो दूसरी कई चैम्पियनशिप में वह देश को आगे रखने में सफल रहीं. साइना से जुड़े ऐसे अन्य पहलुओं पर एक नज़र:
पिता का मिला साथ तो जीत ली दुनिया
महज 8 साल की थीं साइना, जब स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ आंध्रप्रदेश के बैडमिंटन कोच नानी प्रसाद ने सबसे पहले उनकी प्रतिभा को पहचाना था. वो चाहते थे कि साइना बैडमिंटन सीखें, इसलिए उन्होंने साइना के पिता से बात की. शुरुआत में तो साइना के पिता अपनी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा उन पर खर्च करने से कतराएं, लेकिन कोच के भरोसे ने उन्हें आत्मबल दिया, जिसके फलस्वरूप वह बेटी साइना की कोचिंग के लिए तैयार हो गए. इस तरह साइना के लिए राह आसान होती गयी.
साइना को भी कई बार कहते सुना गया कि मेरे माता-पिता की चूंकि खेल की पृष्ठभूमि रही है, इसलिए दोनों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. वो बताती हैं कि जब वो प्रैक्टिस करती थीं तो उन्हें स्टेडियम जाने के लिए 25 किलोमीटर का फ़ासला तय करना पड़ता था, लेकिन उनके लिए यह काम उनके पापा करते थे. वह साइना को रोज सुबह 4 बजे उठाते और उसके बाद अपने स्कूटर से स्टेडियम लेकर जाते थे.
वो बताती हैं कि मेरे जल्दी उठने के कारण यह भी डर रहता था कि मैं कहीं नींद के झोकों की वजह से में स्कूटर से गिर नहीं जाऊं, इसलिए पापा मम्मी को भी साथ ले जाते थे, जो पीछे मुझे पकड़ के बैठ जाती थी. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि माता पिता की आत्मीयता ही थी कि साइना ने बुलंदियों को छूते हुए अपने खेल से बैटमिंटन की सारी दुनिया जीत ली.
Saina Nehwal with her Parents (Pic: vagabomb.com)
दादी की लाडली बनीं साइना
साइना ने अपने खेल से यह प्रमाणित कर दिया कि लड़कियां किसी मामले में लड़कों से कम नहीं हैं. जानकार बताते हैं कि हरियाणा के एक जाट परिवार में जब साइना का जन्म हुआ था, तो उनकी दादी ने अपनी पोती का चेहरा देखने से इंकार कर दिया था. कई महीनों तक उन्होंने साइना से खुद को दूर रखा. पोते की चाहत को पोती के जन्म ने आसानी से हजम नहीं किया, लेकिन आज साइना की दादी भी उनके खेल की दीवानी हैं. उन्हें साइना पर नाज है. वह फ़ख्र से कहती हैं कि साइना उनकी पोती है.
फेवरेट गेम नहीं था बैडमिंटन
साइना नेहवाल बचपन में बैडमिंटन नहीं खेलना चाहती थीं, उनका फेवरेट गेम कराटे था. कराटे में वो कई प्रतियोगिताएं भी जीत चुकी थीं, लेकिन आठ साल की उम्र में काफी मेहनत करने के बाद भी उनका शरीर कराटे के लिए फिट नहीं हो पा रहा था, इसलिए मजबूरन उन्हें कराटे को छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्होंने अपने मम्मी-पापा के फेवरेट गेम बैडमिंटन को सीखना शुरू कर दिया.
सम्मान प्रतीकों सें भरी पड़ी हैं अलमारियां
साइना को जानने वाले कहते हैं कि सायना के नाम इतने सारे सम्मान प्रतीक हैं कि घर की अलमारियों तक में अब जगह नहीं बची है और रखने के लिए, लेकिन साइना की भूख पदकों को लेकर भरने का नाम ही नहीं ले रही हैं. साइना के नाम भारत की विश्व की एक नंबर बैडमिंटन खिलाड़ी रहने के अलावा और भी बहुत सारे ऐसे रिकार्ड हैं, जिनसे न केवल उन्होंने अपने हरियाणा का नाम रोशन किया है, अपितु भारत को भी विश्वपटल पर खास पहचान दिलाई है.
साइना ओलम्पिक के खेलों में महिला एकल बैडमिंटन का कांस्य पदक जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी हैं. साइना 2006 की एशियाई सैटेलाइट प्रतियोगिता, 2009 की इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरिज़ बैडमिंटन प्रतियोगिता और दिल्ली में आयोजित किये गये राष्ट्रमंडल खेल में स्वर्ण पदक जीतने का कीर्तिमान बना चुकी हैं.
उन्हें 2010 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
Story of Saina Nehwal (Pic: andhrafriends.com)
करियर की कुछ झलकियां
- साइना ने सफलतापूर्वक 2010 उबर कप फाइनल के क्वार्टर फाइनल चरण के लिए भारतीय महिला टीम का नेतृत्व किया.
- साइना टिने रासमुसेन से हारने से पहले 2010 आल इंग्लैंड सुपर सीरीज के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं
- साइना ने मलेशिया की वोंग मिउ चू को 2010 इंडिया ओपन ग्रां प्री गोल्ड में हराकर टूर्नामेंट में अपनी शीर्ष वरीयता का प्रमाण दिया.
- 22 वर्ष की उम्र में अपने स्विस ओपन खिताब की सफलता पूर्वक रक्षा करते हुए साइना ने फाइनल में चीन की विश्व में दूसरी वरीयता प्राप्त खिलाडी वांग शिझियान को हराया.
- 2012 में जर्मनी की जुलियान को फाइनल में हराकर उन्होंने डेनमार्क ओपेन खिताब भी जीता.
- 2014 में में विश्व प्रतियोगिता की कांस्य पदक विजेता पीवी सिंधु को हराकर साइना इंडिया ओपन ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड की विजेता बनी.
- 2015 में साइना थाइलैंड की रत्चानोक को इंडियन ओपन सुपर सीरीज़ के फाइनल में हराकर विश्व की शीर्ष वरीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बन गईं.
जो समाज कोख में ही बच्चियों को मार देने का आदी हो, जिस समाज में नारी को उपभोग की वस्तु मानने की मानसिकता हो, उस समाज के लिए साइना एक मिसाल हैं. साइना ने जिस तरह से अपनी योग्यता, दक्षता, निष्ठा, दृढ़ता और संकल्प आदि गुणों के बल पर दुनिया में भारत का परचम लहराया है. उससे देश की बेटियों को सीखने की जरुरत है. निश्चित रुप से एक साथी की तरह साइना की मदद करने वाले उनके पिता भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं, जिन्होंने पुरुष प्रधान समाज की धारणा से अलग हटकर अपनी बेटी के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया.
Saina Nehwal with PM Narendra Modi (Pic: olyinfo.com)
Web Title: Story of Saina Nehwal, Hindi Article
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