हम जब अपने देश के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, तो हमें उस कालापानी की याद भी आ जाती है, जो अंग्रेजों की बर्बरता को बताने के लिए काफी है. कालापानी एक ऐसी सजा होती थी, जिसका ख्याल आने भर से उस वक्त के लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे. हालांकि अब देश में ‘सजा ए कालापानी’ का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है, फिर भी लोगों को इसके बारे में जानने की दिलचस्पी लगातार बनी हुई है. तो आइये चलते हैं कालापानी और याद करते हैं वीर शहीदों को:
अंग्रेजों का प्रमुख हथियार
अंग्रेजों के दमन चक्र के खिलाफ जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना विद्रोह तेज किया तो ब्रिटिश सरकार ने भी यातना देने के नए-नए तरीके इजाद किए. इसी में से एक था ‘कालापानी’. इसके तहत उन्होंने सेल्युलर नाम से जेल बनाई, जिसमेंं स्वतंत्रता सेनानियों को कैदी बनाकर रखा जाता था. इन जेलों मेंं प्रकाश का कोई इंतजाम नहीं किया जाता था. साथ ही समय-समय पर यातनाएं दी जाती थी. जानकारों की माने तो इन जेलों में,
भारतीय कैदियों के साथ बहुत बुरा बर्ताव होता था. उन्हें गंदे बर्तनों में खाना दिया जाता था, पीने का पानी भी सीमित मात्रा में मिलता था. यहां तक कि जबरदस्ती नंगे बदन पर कोड़े बरसाए जाते थे, और जो ज्यादा विरोध करता था उसे तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया जाता था.
The Story of Kalapani, Cellular Jail (Pic: santoshojha)
नामुमकिन होता था कैद से भागना
वैसे तो भारतीय कैदी आम जेलों से भाग निकलते थे, बावजूद इसके ब्रिटिश सरकार ने कालापानी के लिए बनाई गई जेल की चार दीवारी बहुत छोटी बनवाई थी, क्योंकि इस जेल का निर्माण जिस जगह हुआ था, वह स्थान चारों ओर से समुद्र के गहरे पानी में घिरा हुआ था. ऐसे मेंं किसी भी कैदी का भाग पाना नामुमकिन था. फिर भी भारतीय तो भारतीय थे…
238 कैदियों ने एक साथ अग्रजों को चकमा देकर वहां से भाग निकलने की कोशिश कर डाली. हालांकि अपनी इस कोशिश मेंं वह कामयाब नहीं हुए और पकड़े गए. फिर क्या होना था, उन्हें अंग्रेजों के कहर का सामना करना पड़ा था.
कहा तो यह भी जाता है कि पकड़े जाने के बाद अंग्रेजों की यातना के डर से इनमेंं से एक कैदी ने आत्महत्या कर ली थी, जिससे नाराज होकर जेल अधीक्षक वॉकर ने 87 लोगों को फांसी पर लटकाने का आदेश दे दिया था. बावजूद इसके हमारे स्वतंत्रता सेनानी ‘भारत माता की जय’ बोलने से कभी पीछे नहीं हटे.
विदेशों से भी लाए जाते थे कैदी
जानकारी के अनुसार कालापानी की इस जेल का प्रयोग अंग्रेज सिर्फ भारतीय कैदियों के लिए नहीं करते थे. यहां वर्मा और दूसरी जगहों से भी सेनानियों को कैद करके लाया जाता था. ब्रिटिश अधिकारियों के लिए यह जगह पंसदीदा थी, क्योंकि यह द्वीप एकांत और दूर था. इस कारण आसानी से कोई आ नहीं सकता था और न ही जा सकता था. अंग्रेज यहां कैदियों को लाकर उनसे विभिन तरह के काम भी करवाते थे. बताते चलें कि 200 विद्रोहियों को यहां सबसे पहले अंग्रेज अधिकारी डेविड बेरी के देख रेख में सबसे पहले लाया गया था.
The Story of Kalapani, Cellular Jail (Pic: santoshojha)
वीर सावरकर सहित तमाम वीरों ने झेला ‘दर्द’
जब देश में स्वतंत्रता का आंदोलन चरम सीमा पर था. उस समय अंग्रेजों ने बहुत सारे लोगों को कालापानी की सजा सुनाई थी.उनमे अधिकांश कैदी स्वतंत्रता सेनानी थे. इनमें सबसे बड़ा नाम था विनायक दामोदर सावरकर का. जिनके ऊपर लंदन में पढाई के दौरान क्रांतिकारी पुस्तके भेजने और एक अंग्रेज अधिकारी के हत्या की साजिश का आरोप लगाया गया था और सजा भी सुनाई गई थी. उन्हें 4 जुलाई 1911 को ‘कालापानी’ के लिए जेल भेज दिया गया था.
वीर सावरकर के आलावा उनके बड़े भाई बाबूराम सावरकर, बटुकेश्वर दत्त, डॉ दीवन सिंह,योगेन्द्र शुक्ला, मौलाना अहमदउल्ला, मौलवी अब्दुल रहीम सदिकपुरी, भाई परमानंद, मौलाना फजल-ए – हक खैराबादी, शदन चन्द्र चटर्जी, सोहन सिंह, वमन राव जोशी, नंद गोपाल, महावीर सिंह जैसे आदि वारो को ‘कालापानी’ के दंश को झेलना पड़ा था.
‘भूख हड़ताल’ के बदले मिली मौत
अंग्रेज अधिकारियो का अत्याचार बढ़ता जा रहा था. उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों पर यातना का सिलसिला बढ़ा दिया था. उनकी क्रूरता इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि अब बर्दाश्त से बाहर था. लेकिन सवाल यह था कि आखिर किया क्या जाए, ऐसे में भगत सिंह के दोस्त कहे जाने वाले महावीर सिंह जेल में भूख हड़ताल पर बैठ गए. जब अंग्रेज अधिकारियों को इसकी सूचना हुई तो उन्होंने महावीर पर जुल्म बढ़ा दिए, उनकी भूख हड़ताल को खत्म करने के सभी प्रयास किए, लेकिन
महावीर नहीं टूटे. अंत में उनके दूध में जहर मिलाकर, उन्हें जबरन पिलाया गया, जिससे उनकी तुरंत मौत हो गई थी. मौत के बाद महावीर के मृत शरीर में पत्थर बांधकर समुद्र में फेक दिया गया था…
ताकि किसी को भी इस बारे मेंं कोई खब़र न लगे, लेकिन इसकी ख़बर जल्द ही पूरे जेल मेंं फैल गई, जिसके परिणाम स्वरुप जेल के सारे कैदी भूख हड़ताल पर चले गए थे. बाद में महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के चलते 1937-1938 में इन कैदियों को वापस भारत भेज दिया गया था.
Cellular Jail, Mahaveer Singh (Pic: nishantratnakar.com)
कुछ ऐसी थी जेल की संरचना
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को पूरी तरह से नाकाम करने के इरादे से अंग्रेजों ने ‘कालापानी’ के लिए खास किस्म की यह जेल तैयार कराई थी. इस जेल के मुख्य भवन में लाल ईटों प्रयोग किया गया था, जो वर्मा से मंगाई गई थीं. जेल के बीचों-बीच एक टॉवर बनाया गया था, जहां से कैदियों पर नज़र रखी जाती थी. इस जेल में कुल 698 कोठरियां बनी थीं. प्रत्येक कोठरी में तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान हुआ करता था. जेल मेंं बेड़ियों का प्रबंध भी था, ताकि कैदियों को इनसे बांध कर रखा जाए.
आजादी के बाद नष्ट कर दी गई जेल
1942 में अंडमान पर जापानियों का अधिकार हो गया था, इसलिए जापानियों ने वहां से गोरों को मार भगाया था. साथ ही इस जेल में बने सात भांगों में से दो को नष्ट कर दिया था. बाद में आजादी के बाद भारत ने इसके दो हिस्सों को गिरा दिया था. इसके बाद बचे हुए एक हिस्से मेंं अस्पताल का निर्माण करा दिया गया और बाकी भाग को मुख्य टावर के रुप में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दे दिया था.
धन्य हैं भारत माता के वो वीर सपूत जिन्होंने ‘कालापानी’ के रुप में अंग्रेजों की प्रताड़ना को झेला, उन पर ढ़ेर सारे सितम हुए, फिर भी उन्होंने ने हिम्मत नहीं हारी और आजादी की अलख जगा के देश को गुलामी के जंजीरों से आजाद कराया.
The Story of Kalapani, Cellular Jail (Pic: kashyapkikalamse)
Web Title: The Story of Kalapani, Hindi Article
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