हिंदी भारत ही नहीं, दुनिया में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है. हिंदी साहित्य का इतिहास देखा जाए तो प्राचीन काल से ही हिंदी भाषा विभिन्न धर्मों और उसके अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण रही है. साथ ही साथ अपनी रचना के माध्यम से समाज में भाई चारा और मेल जोल को भी हिंदी ने ही आगे बढ़ाया है. इनमें भी मध्यकालीन कवियों का बड़ा योगदान गिनाया जा सकता है. आज हम आपको ऐसे ही कवियों के बारे में बताएँगे जिनका हिंदी साहित्य में अनमोल योगदान रहा है.
सूरदास
कवि सूरदास को हिंदी साहित्य में भक्तिकाल का श्रेष्ठ कवि माना जाता था. इनकी रचनाएँ हमेशा ही कृष्ण भक्ति से भरी होती थी. सूरदास को वात्सल्य रस का राजा माना जाता है. उन्होंने श्रृंगार रस का भी बड़ा सुन्दर वर्णन किया है. इनका जन्म 1478 ई को रुनकता गांव में हुआ था. इनके जन्म तिथि और जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं. हालाँकि, उनके जन्म और मृत्यु के बारे में भक्त माल और चौरासी वैष्णवन में कुछ जानकारी मिल जाती है. वहीं आईने अकबरी और मुंशियात अबुल फजल में भी सूरदास का उल्लेख किया गया है. भक्ति काल में सूरदास की भक्ति और कविता की प्रशंसा के साथ इनके अंधे होने (सूरदास) का उल्लेख किया गया है. चौरासी वैष्णवन के उल्लेख की मानें तो सूरदास मथुरा और आगरा के बीच में साधु के रूप में रहते थे. वहीं इनकी मुलाकात वल्लभाचार्य के साथ हुई और उनसे प्रभावित होकर सूरदास पदों की रचना करने लगे. इनकी मृत्यु 1580 ई में हुई थी. इनकी एक रचना देखें…
बूझत स्याम कौन तू गोरी।
कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥
The Story of Medieval Poet, Surdas (Pic: brajdiscovery)
इस रचना में सूरदास जी कहते हैं कि कृष्ण जी एक नन्ही सी सखी से पूछते हैं कि तुम कौन हो, उसकी मैया से कहते हैं काकी तेरी ये बेटी कहाँ रहती है, कभी ब्रज में देखी नहीं. क्यूँ तेरी बेटी ब्रज में आकर हमारे साथ खेलती है.
ऐसी ही अनेक रचनाओं के साथ महाकवि सूरदास ने भक्तिकाल में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये.
कबीरदास
कबीरदास मध्यकालीन के महानतम कवियों में से एक थे. इनका जन्म काशी में 1398 में हुआ था. इनके जन्म के बारे में भी मतभेद हैं. कबीरदास सफल साधक के साथ एक समाज सुधारक भी थे. वे जीवन और उसके अंदर की भावनाओं को काफी महत्वपूर्ण बनाने पर जोर दिया करते थे. इनकी रचनाओं में धर्म का कहीं भी खास ज़िक्र नहीं था. इनके नाम पर कबीर पंथ का सम्प्रदाय भी काफी प्रसिद्ध रहा है. इस समुदाय के लोग इन्हें अवतारी पुरुष मानते थे. उनका मानना था कि मनुष्य की मौत उसके कर्मों के अनुसार होती है. स्थान विशेष के कारण किसी को कुछ नहीं मिलता, इसलिए अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह मगहर चले गए थे. उस समय लोगों में यह धारणा थी कि काशी में मरने से स्वर्ग मिलता है, तो मगहर में नरक. कबीर का एक दोहा देखिये…
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
अर्थात, जब मैं इस संसार में बुराई को देखता था, तब वास्तव में मुझे कोई बुरा नहीं मिला. हाँ, जब मैंने खुद का ईमानदारी से विचार किया, तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली. इस दोहे में कबीरदास अपने भीतर की बुराई देखने की सीख देते हैं, बजाय की दूसरों की बुराई देखने के.
ऐसे अनेक प्रेरक दोहे कबीरदास के मौजूद हैं, जिन्हें अपने जीवन में हम उतार सकते हैं.
रसखान
रसखान का असली नाम सैयद इब्राहम था. इनके नाम रखने के पीछे कहा जाता है कि उन्होंने अपना नाम इस कारण रखा, जिससे वे इसका प्रयोग अपनी रचनाओं के लिए कर सकें. रसखान का भक्तिकाल के कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है. इनका जन्म 1548 ई में हुआ था. हालाँकि, इनके जन्म के बारे में भी मतभेद है. कुछ विद्वान् इनका जन्म 1615 ई मानते हैं, तो कुछ ने 1630 ई माना है. इनकी अधिकांश रचनाएँ भगवान कृष्ण को समर्पित थी और काव्य में भक्ति और श्रृंगार दोनों प्रमुख रूप से पाए जाते हैं. रसखान गोस्वामी विट्ठल नाथ के सबसे प्रिय शिष्यों में से एक थे. इन्होंने कृष्ण के लीलागान को अपने काव्य में बखूबी तरह से प्रस्तुत किया था. भगवान कृष्ण के ब्रजभूमि के प्रति मोह माया रसखान की कविताओं में अधिक मिलती है जो उनकी विशेषता थी.
धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी॥
वा छबि को रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी॥
इस मधुर कविता का अर्थ देखिये: धूल से भरे हुए श्याम बहुत सुंदर हैं वैसी ही सुंदर सर पर चोटी बनी हुई है. आँगन में खेलते खाते हुए फिरते हैं (घूम रहे हैं), पैरों में पाजेब बजती है और पीली कछोटी (नितम्ब प्रदेश ढकने के लिए पहना जाने वाला बच्चों का कपडा) है. उस छवि को रसखान देखते हैं और उस छवि पर काम कला के करोड़ों भण्डार न्यौछावर करते हैं और गोपियाँ आपस में बात करते हुए बोल रही हैं कि कौवे के भाग्य कितने बड़े हैं कि हरि (भगवान विष्णु यहाँ पर बाल कृष्ण) के हाथों की माखन और रोटी ले गया है.
मीराबाई
मीरा बाई कृष्ण भक्ति की प्रमुख कवयित्री में से एक हैं. उनकी कविताएं कृष्ण भक्ति से सराबोर हैं. इनका जन्म 1498 ई में चोकड़ी गांव में हुआ था. मीराबाई का विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोज राज के साथ हुआ था. मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी. विवाह के कुछ दिनों के बाद ही इनके पति की मृत्यु हो गई थी. भगवन कृष्ण के प्रति मीरा बाई इतनी लीन हो गई थीं कि वह अक्सर मंदिर में जाकर भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने आनंद मग्न होकर नाचती और गाती थीं. उनके इस आचरण से इनके परिवार के सदस्य बहुत नाराज रहा करते थे. कहा जाता है कि इनके इस आचरण से कई बार इन्हें विष देकर मारे जाने का भी प्रयास हुआ था, लेकिन इन पर विष का कोई असर नहीं हुआ.अंत में घर वालों के व्यवहार से दुःखी होकर मीरा बाई वृन्दावन के मंदिरों में चली गई, और वहां घूम कर भजन सुनाने लगी. इन्होंने विभिन्न पदों और गीतों की रचनाएँ की थीं. उनमें नरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद प्रमुख हैं. देखिये…
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई|
जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई|
मीरा बाई कहती हैं मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं, जिन्होंने पर्वत को ऊँगली पर उठाकर गिरधर नाम पाया. उनके अलावा मैं किसी को अपना नहीं मानती. उनके सिर पर मोर के पंख का मुकुट है वही हैं मेरे पति.
The Story of Medieval Poet, MeeraBai (Pic: hindivarta)
कुम्भनदास
कुम्भनदास अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि थे. इनका जन्म 1468 ई में गौरवा क्षत्रिय कुल में हुआ था. इन्होंने सबसे पहले वल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी. कहा जाता है कि कुम्भनदास ब्रज में गोवर्धन पर्वत के निकट “जमुनावतौ” गांव में रहते थे. इनका मन धन, मान, मर्यादा और सांसारिक इच्छाओं से बहुत दूर था. इनकी ख्याति से एक बार बादशाह अकबर ने इन्हें निमंत्रण पर फतेहपुर सिकरी बुलाया. वहां जाने के बाद अकबर ने इनका बड़ा मान सम्मान किया. पर इसका उनको दुःख भी रहा, जैसा कि उन्होंने इस पद में लिखा है:
संतन को कहा सीकरी सों काम?
आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।।
जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।।
कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।।
छीतस्वामी
छीतस्वामी का जन्म 1515 ई में मथुरा के एक चतुर्वेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. शुरू से ही इनके घर में जजमानी और पंडागिरी का काम होता था. इनके यजमानों में बीरबल जैसे लोग प्रमुख थे. पंडा होने के कारण छीतस्वामी पहले बहुत जिद्दी और नटखट स्वभाव के थे. लेकिन जैसे ही गोस्वामी विट्ठल जी कि सम्पर्क में आये और उनसे दीक्षा ली, वह जल्द ही उनके परमभक्त बन गए. दीक्षा लेने के बाद वह भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो गए. छीतस्वामी की रचनाओं में व्रज भूमि का प्रेम अधिक पाया जाता है. उनकी प्रसिद्ध रचना
भई अब गिरिधर सों पैहचान।
कपट रूप धरि छल के आयौ, परषोत्तम नहिं जान।।
छोटौ बड़ौ कछू नहिं देख्यौ, छाइ रह्यौ अभियान।
“छीतस्वामि” देखत अपनायौ, विट्ठल कृपा निधान।।
संत रैदास
प्रसिद्ध संत रैदास का जन्म 1388 को बनारस के चर्मकार कुल में हुआ था. कुछ विद्वान इनका जन्म 1398 मानते हैं. इनका असली नाम संत रविदास था. इनके पिता का नाम रग्घु और माता का नाम घुरविनिया था. रैदास ने साधु-सन्तों की संगति में रहकर व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था. जूते बनाने का काम उनका पुराना व्यवसाय था. जिसे वे बड़ी खुशी से करते थे. संत रैदास अपने काम को पूरी लगन और मेहनत से करते थे. मूर्तिपूजा तीर्थ यात्रा जैसे दिखावे में रैदास विश्वास नहीं करते थे. उनका मानना था कि आपसी भाई चारा ही सच्चा धर्म है. संत रैदास अपनी रचनाओं में सरल और व्यवहारिक भाषा का प्रयोग करते थे. उनकी रचनाओं में राजस्थानी, उर्दू फारसी और खड़ी बोली शब्द का प्रमुख मिश्रण है.
“कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।”
उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है.
The Story of Medieval Poet, Raidas (Pic:spashtawaz)
स्वामी हरिदास
स्वामी हरिदास सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे, जिसे हरिदासी सम्प्रदाय भी कहा जाता है. स्वामी हरिदास अकबर के समय के प्रसिद्ध सिद्ध भक्त माने जाते थे. वे वैष्णव भक्त होने के साथ उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी माने जाते थे. कहा जाता है कि इनके संगीत से अकबर इतना प्रभावित हुआ था कि वह इनसे मिलने वृन्दावन चला आया था. प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके प्रमुख शिष्य थे. इनके पदों में इनकी वाणी सरस और भावुक मिलती है. इनका प्रसिद्ध पद
तिनका बयारि के बस।
ज्यौं भावै त्यौं उडाइ लै जाइ आपने रस॥
ब्रह्मलोक सिवलोक और लोक अस।
कह ‘हरिदास बिचारि देख्यो, बिना बिहारी नहीं जस॥
गोविन्दस्वामी
गोविन्दस्वामी वल्लभ संप्रदाय के प्रसिद्ध कवियों में एक थे. इनका जन्म राजस्थान के आँतरी गांव में 1505 ई को हुआ था. इनके गुरु का नाम गोस्वामी विट्ठल नाथ था. इनके पदों से गोस्वामी विट्ठल नाथ जी इतना प्रभावित हुए कि इन्हें अष्टछाप में शामिल कर लिया. कहा जाता है कि गोविन्द स्वामी गोवर्धन के पर्वत पर रहते थे. वहां पर उन्होंने कदम्बों का एक उपवन लगाया था. आज भी यह ‘गोविन्दस्वमी की कदंबखडी’ के नाम से जाना जाता है. कवि होने के साथ साथ गोविन्द स्वामी अच्छा गायन भी करते थे. कहा जाता है कि इनका गायन सुनने के लिए तानसेन भी आया करता था. इनके पदों में भगवान कृष्ण की अनेक लीलाओं का वर्णन प्रमुखता से किया गया है.
“आओ मेरे गोविंद, गोकुल चंदा।
भइ बड़ि बार खेलत जमुना तट, बदन दिखाय देहु आनंदा।।
गायन कीं आवन की बिरियां, दिन मनि किरन होति अति मंदा।
आए तात मात छतियों लगे, ‘गोबिंद’ प्रभु ब्रज जन सुख कंदा।।”
हितहरिवंश
हितहरिवंश का जन्म 1502 ई में मथुरा के पास बादगाँव में हुआ था. वे राधावल्लभी सम्प्रदाय के प्रवर्तक भी थे. इनके जन्म को लेकर मतभेद बना है. राधावल्लभी सम्प्रदाय के पंडित गोपाल प्रसाद शर्मा ने 1473 ई को इनका जन्म माना है. इनके पिता का नाम केशवदास मिश्र और माता का नाम तारावती था. कहा जाता है कि हित हरिवंश पहले माध्व संप्रदाय के गोपाल भट्ट के शिष्य थे. एक दिन सपने में आकर राधिका जी ने इन्हें मंत्र दिया, जिसके बाद इन्होंने अपना एक अलग सम्प्रदाय चलाया. हित हरिवंश 1525 ई में राधाबल्लभ की मूर्ति को वृंदावन में स्थापित कर वहीं रहने लगे. वे संस्कृत के अच्छे विद्वान होने के साथ साथ काव्य के अच्छे जानकार थे. इनकी रचनाओं में ब्रजभाषा बड़ी सरस है. राधासुधानिधि, हित चौरासी इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं.
रहीम
रहीम का जन्म 1553 में बैरम खान के घर हुआ था. हिंदी के प्रसिद्ध कवि रहीम का अकबर के दरबार में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान था. वे अकबर के नवरत्नों में से एक थे. कवि होने के साथ वह एक सेना पति और विद्वान थे. साथ ही उन्हें तुर्की,अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिन्दी की भी जानकारी थी. कहा जाता है कि गुजरात के युद्ध में इनके कौशल और पराक्रम को देखकर अकबर ने इन्हें ‘ख़ानखाना’ की उपाधि प्रदान की थी. रहीम के काव्य में नीति, शृंगार और भक्ति भाव मिलते हैं. रहीम दोहावली, रहीम सतसई, मदनाश्टक, रहीम रत्नावली आदि इनकी कई रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध रही हैं. देखें एक दोहा…
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
अर्थात: जो व्यक्ति योग्य और अच्छे चरित्र का होता है. उस पर कुसंगति भी प्रभाव नहीं डाल सकती. जैसे जहरीला नाग अगर चन्दन के वृक्ष पर लिपट जाए, तब भी उसे जहरीला नहीं बना सकता.
The Story of Medieval Poet, Rahim (Pic:firkee)
इन कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से यह साबित कर दिया कि साहित्य से समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. इन कवियों ने अपनी रचनाओं का जो बीज बोया है, उसका फल वर्तमान से लेकर भविष्य तक में मिलता रहने वाला है. कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे ही संवेदनशील कवियों के बल पर ही आज हिंदी साहित्य समृद्ध है.
Web Title: The Story of Medieval poets, Hindi Article
Keywords: Surdas, KabirDas, Rahim, Raskhan, Meerabai, Kumbhandas,Chitswaami,Raidas, Swsmi Haridas, Govindswami, Hit Harivansh Poet, Hindi Literature, Lord krishna, Poem, Creation, Hindi, Bhaktikaal
Featured Image Credit / Facebook Open Graph:hindumythology /streekaal